इस खंड में वर्ष 2017-18 के उन 100 महत्वपूर्ण मुद्दों को प्रस्तुत किया गया जिसकी प्रासंगिकता न सिर्फ इन वर्षों में ही बल्कि आगे आने वाले वर्षों में भी बनी रहेगी। इन विषयों का सारगर्भित विश्लेषण का उद्देश्य यह है कि इनके संबंध में न सिर्फ जानकारी उपलब्ध कराई जाए, बल्कि एक आधारभूत समझ भी विकसित की जा सके।
सामाजिक सुरक्षा न केवल अपने उपभोक्ताओं को, बल्कि उसके संपूर्ण परिवार को भी वित्तीय एवं स्वास्थ्य सुरक्षा का लाभ प्रदान करती है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का निर्माण परिवार के कमाने वाले सदस्य के सेवानिवृत होने पर, या उसकी मृत्यु हो जाने पर, या किसी अक्षमता का शिकार हो जाने की स्थिति में दीर्घकालीन सहायता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
वंचित समूहों के लिए शिक्षा में गैर सरकारी संस्थानों का प्रावधान व योगदान
19 जुलाई, 2016 को राज्य सभा ने बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) संशोधन विधेयक, 2016 पारित कर दिया है। एक दशक के बाद 12 जून, 2016 को ‘बाल श्रम के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की गई। मई 2015 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रमाशंकर कठेरिया पर बाल मजदूरी कराने का आरोप लगा। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कुल बाल श्रमिकों की 1/4 भाग केवल भारत में हैं।
बाल लिंगानुपात
जुलाई 2016 को भारत सरकार ने 100 ऐसे जिलों को चिन्हित किया है जिसमें बाल लिंग अनुपात लगातार कम होता जा रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' की शुरुआत जनवरी, 2015 में की। नए आंकड़ों के अनुसार 0-6 वर्ष के बच्चों के बीच पिछले 50 वर्षो में बाल लिंगानुपात प्रति हजार बच्चों में 1961 में 976 से गिरकर 2011 में 918 हो जाना राष्ट्रीय चिंता का विषय है।
राष्ट्रीय समस्या
राज्यों की स्थिति
देश में केवल केरल और पुडुचेरी ही ऐसे राज्य हैं जहां लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं। हरियाणा-830, पंजाब-846, दिल्ली-871, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे विकसित राज्य का औसत काफी कम है।
विकलांगता
प्रधानमंत्री ने दिसंबर, 2015 को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात' में विकलांगों के लिए ‘दिव्यांग’ शब्द के प्रयोग की बात कही।
भारत में 2001 से 2011 के बीच विकलांगों की संख्या में 22.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वृद्धि की दर शहरी क्षेत्रें में एवं शहरी महिलाओं में अधिक। समूचे दशक के दौरान शहरी क्षेत्रें में 48.2 प्रतिशत और शहरी महिलाओं में 55 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई।
विकलांग कौन है?
ऐसा व्यक्ति जिसकी पारिभाषिक विकलांगता 40 प्रतिशत से कम न हो। जिसे चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अक्षमता के तीन आयाम होते हैं-
नक्सलवाद
22 जुलाई, 2016 को बिहार के औरंगाबाद जिले के कसमा थाना क्षेत्र में हथियारबंद अज्ञात नक्सलियों ने एक सोलर कंपनी के शिविर पर हमला कर दस वाहनों तथा मशीनों को आग लगा दी। 18 जुलाई, 2016 को बिहार के ही औरंगाबाद जिले में नक्सलियों द्वारा किए गए आईईडी विस्फोट में सीआरपीएफ के 10 जवान शहीद और पांच जवान घायल हो गए। जम्मू कश्मीर के पंपोर जिले में 25 जून, 2016 को सीआरपीएफ के वाहन पर नक्सली हमले में 8 जवान शहीद हुए तथा 20 अन्य घायल हुए।
13 जून, 2016 को छत्तीसगढ़ के कोंडागांव एवं नरायनपुर जिले की सीमा पर पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुआ। 30 मई, 2016 को झारखंड के गुमला जिले में नक्सलियों ने पुलिस अधिकारी को अगवा कर हत्या कर दी। राज्य के 18 जिले नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं।
नक्सलवाद क्या है?
बाल अपराध
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार गिरफ्रतार किए गए 16 से 18 आयु वर्ग के नाबालिगों की संख्या वर्ष 2003 से 2013 के बीच बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई है।
इन दस सालों में दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्रतार किए गए नाबालिगों में 288 प्रतिशत तथा चोरी के आरोप में गिरफ्रतार किए गए नाबालिगों की संख्या में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आईपीसी के तहत पंजीकृत किशोर अपराधों में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत में अनाथ व फ़ुटपाथी बच्चे
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में 45,000 बच्चे लापता हो जाते हैं और उनमें से 11,000 बच्चे कभी नहीं मिलते।
गृह मंत्रलय की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 16 राज्यों में आंतरिक संघर्ष के चलते इससे पीडि़त बच्चे बहुत ही कठिन परिस्थितियों में संघर्ष कर रहे हैं। पिछले वर्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने ‘स्ट्रीट टू स्कूल अभियान’ शुरू किया था।
इसका उद्देश्य अनाथ, बेसहारा, फुटपाथी, कचरा बीनने, भीख मांगने वाले बच्चों की पहचान कर उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुमान के मुताबिक भारत में करीब एक करोड़ 80 लाख बच्चे सड़कों पर रहते या काम करते हैं। इनमें ज्यादातर बच्चे अपराधों, यौन विकृतियों, सामूहिक हिंसा तथा नशीले पदार्थो के शिकार हैं।
वेश्यावृत्ति
2005-06 से 9 वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 76 प्रतिशत बढ़ा है। इसके साथ वे नकारात्मक बदलाव छिप गए हैं जो इस आर्थिक कायापलट के साथ उभरे थे। इनमें से एक मानव तस्करी में 20 प्रतिशत की वृद्धि है जो ‘वेश्यावृत्ति के उद्देश्यो' से संबंधित है।
जून, 2016 को दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010 में भाग ले चुके राष्ट्रीय पैरा एथलीट ‘एडम कामिस’ को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के जरिए महिलाओं को वेश्यावृत्ति की ओर धकेलने का दोषी पाया गया है। NCRB के अनुसार देशभर में तस्करों द्वारा बंधक बनाई गई अवयस्क लड़कियों में से 42 प्रतिशत पश्चिम बंगाल से हैं।
महिला कुपोषण
दिसंबर, 2015 को स्वास्थ्य मंत्रलय ने देश के किशोर-किशोरियों में अनीमिया के स्तर में कमी लाने के लिए आधिकारिक रूप से एक कार्यक्रम प्रारंभ किया। इस कार्यक्रम का नाम ‘साप्ताहिक लौह एवं फोलिक अम्ल पूरकता' है। छत्तीसगढ़ में ‘महजारी जतन योजना' की शुरूआत की गई है_ जिसके अंतर्गत राज्य की गरीब गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक भोजन निःशुल्क प्रदान किया जाएगा। जुलाई 2016 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ‘हौसला पोषण योजना' की शुरुआत की। इसके अंतर्गत प्रदेश भर की 10 लाख गर्भवती महिलाओं और 14 लाख कुपोषित बच्चों को पौष्टिक आहार मुहैया करवाया जाएगा।
महिला अपराध
मार्च 2016 को राजस्थान के डूंगरपुर जिले के आसपुर थाना क्षेत्र में दूसरी जाति के लड़के से विवाह करने वाली लड़की को उसके परिजनों ने गांव के चौराहे पर मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया।
फरवरी 2016 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में छेड़-छाड़ का विरोध करने पर एक नाबालिग लड़की की गोली मार कर हत्या कर दी गई। दिल्ली में जुलाई 2015 को आनंदपर्वत इलाके में एक मिनाक्षी नाम की लड़की की निर्मम हत्या कर दी गई। इस घटना के बाद दिल्ली सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध अपराध की जांच के लिए ‘जांच आयोग’ गठित की है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में महिलाओं के विरुद्ध अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं।
दहेज हत्या
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार देश में हर घंटे एक महिला की हत्या दहेज कारणों से होती है। हाल ही में बसपा सांसद नरेंद्र कश्यप, बेटे तथा पत्नी को बहू की दहेज हत्या के मामले में गिरफ्रतार किया गया है। मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर एक महिला तथा उसकी एक साल की बेटी को जलाकर मार दिया।
समस्या
उच्च जातियों तथा मध्यम वर्ग में दहेज की समस्या एक गंभीर सामाजिक बुराई के रूप में उभरी है, यह समस्या गांवों, कस्बों तथा शहरों में है। दिल्ली तथा देश के अन्य मेट्रोपॉलिज शहरों में दहेज हत्या एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है, दहेज हत्या वैसे तो समाज के हर तबके में है किन्तु शिक्षित मध्यम वर्ग में यह एक विकट समस्या के रूप में उभरा है, महिला संगठनों, स्वैच्छिक संगठनों, बुद्धिजीवी वर्ग तथा मीडिया ने इस समस्या के प्रभावी हल के लिए आवाज उठाते रहे हैं।
यौन उत्पीड़न
जुलाई 2016 को यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराने वाली केंद्र सरकार की महिला कर्मचारियों को जांच लंबित रहने के दौरान अब तीन महीने का वैतनिक अवकाश मिलेगा। यह अवकाश केंद्र सरकार के कर्मचारियों को पहले से मिलने वाले अवकाश के अतिरिक्त होगा। अप्रैल, 2016 में एक महिला ने केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। अभी कुछ माह पूर्व टेरी के निर्देशक आर-के- पचौरी के विरुद्ध यौन उत्पीड़न का मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है।
कन्या भ्रूण हत्या
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा है कि लिंग जांच को अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि जिन महिलाओं के गर्भ में लड़की है उनका ध्यान रखा जा सके और इस तरह कन्या भ्रूण हत्या रोकी जा सकेगी। कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लगाने के इरादे से सरकार ने 1994 में ही भ्रूण परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद चोरी-छिपे ये सिलसिला जारी है।
घरेलू हिंसा
मई 2016 को मानव संसाधन विकास मंत्रलय से संबंद्ध संसदीय समिति द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के प्रति पुलिस के उपेक्षापूर्ण व्यवहार की 5407 और उनके खिलाफ हिंसा की 2208 शिकायतें दर्ज कराई गई। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के सर्वाधिक 11819 मामले दर्ज हुए, जबकि दिल्ली में 2301, हरियाणा में 1013 और राजस्थान में 814 शिकायतें दर्ज कराई गई।
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग में महिलाएं जो शिकायतें दर्ज कराती हैं, उनमें अधिकतर दहेज या हिंसा की नहीं बल्कि सम्मान के साथ जीने के अधिकार की अस्वीकृति से जुड़ी होती है।
घरेलू हिंसा क्या है?
देवदासी प्रथा
केंद्रीय गृह मंत्रलय ने हाल ही में राज्यों को एक आदेश जारी कर देवदासी प्रथा को पूरी तरह से रोकने को कहा है। कानूनी तौर पर इस पर रोक के बावजूद कई इलाकों में इसके जारी रहने की खबरें आती रहती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ माह पूर्व कर्नाटक सरकार को इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के निर्देश दिए थे। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी जारी है।
क्या है देवदासी प्रथा?
इसकी शुरुआत छठी सदी में हुई थी। इस प्रथा के तहत कुंआरी लड़कियों को धर्म के नाम पर कुछ मंदिरों को दान कर दिया जाता था। माता-पिता अपनी बेटी का विवाह देवता या मंदिर के साथ कर देते थे।
डायन कुप्रथा
असम सरकार ने ‘डायन शिकार विधेयक, 2015’ पारित किया है। फरवरी 2016 में ओडिशा में डायन कु-प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से ‘ज्योति अभियान' शुरु किया गया। 7 अगस्त, 2015 की रात को झारखंड के कोझिया माराएतोली गांव में पांच महिलाओं को डायन घोषित कर और उन्हें निर्वस्त्र करके मार दिया गया। आरोप था कि ये पांचों महिलाएं बच्चों पर काला जादू करती थी।
एसोसिएशन फॉर सोशल एंड “यूमन अवेयरनेस (आशा) के अनुसार झारखंड में 2016 से अब तक 19 महिलाओं की हत्या डायन होने के आरोप में कर दी गई है।
ट्रांसजेंडर
हाल ही में ट्रांसजेंडर्स के लिए नीति बनाने वाला केरल देश का पहला राज्य बना है। यहां इनके कल्याण के लिए ‘जस्टिस बोर्ड' की स्थापना की गई है।
जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स अधिकार संरक्षण विधेयक, 2016 को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी है। इस विधेयक का उद्देश्य ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सशक्तीकरण करना है। जून, 2016 को ओडिशा सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय को सशक्त बनाने की पहल के तहत केंद्र सरकार की ओर से शुरू की गई पांच उप-योजनाओं को लागू करने का निर्णय लिया है।
ट्रांसजेंडर क्या है?
वे लोग जो सामाजिक लिंग मानदंडों का अतिक्रमण करते हैं अर्थात् वे खुद को जैविक सेक्स के ‘विपरीत' लिंग की पहचान करते हैं और इस प्रकार है-
किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा सामाजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होता है। जिस तीव्र गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि हम देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहन अवलोकन करें। लगभग पिछले 200 वर्षों की भारतीय शिक्षा प्रणाली के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह शिक्षा नगर तथा उच्च वर्ग केंद्रित, श्रम तथा बौद्धिक कार्यों से रहित थी। इसकी बुराइयों को सर्वप्रथम गांधीजी ने 1917 ई- में गुजरात एजुकेशन सोसायटी के सम्मेलन में उजागर किया तथा शिक्षा में मातृभाषा के स्थान और हिंदी के पक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर तार्किक ढंग से रखा।
भारत में शिक्षा
भारत में वर्तमान परिदृश्य में सबसे पहले शिक्षा पद्धति और पाठ्यक्रम में बदलाव बहुत आवश्यक है। हमारे देश की प्रणालियां सर्वश्रेष्ठ रही हैं चाहे वह शासन प्रणाली हो, शिक्षा प्रणाली हो, निर्माण प्रणाली हो या फिर अन्य सृजनात्मक प्रणालियां। इन सभी में भारत ने सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। ह्नेनसांग, फाह्यान जैसे विदेशी छात्रें ने यहां आकर तक्षशिला और नालंदा जैसी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त की है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। हमारे देश की तकनीकी शिक्षा भी उत्कृष्ट कोटि की रही है। इसके उदाहरण रणथम्बौर, जयपुर, उदयपुर, खजुराहो, धुबेला, लखनऊ आदि स्थानों पर आज भी मौजूद हैं। खजुराहो की वास्तुकला वहां वेदों की ऋचाओं पर आधारित आकृतियां हमारी शिक्षा पद्धति के ही उदाहरण हैं।
किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा उसके राजनैतिक लचीलेपन एवं परिपक्वता, मानव संसाधन, आर्थिक ढाँचे एवं क्षमता, तकनीकी दक्षता, औद्योगिक आधार एवं संसाधनों की उपलब्धता, तथा अंत में सैन्य शक्ति के समुचित व आक्रामक सम्मिश्रण से प्रवाहित होती है।‘ राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा अंतर्निहित है। देश की असुरक्षित सीमाओं और साथ-साथ देश के भीतर पल रहे असंतोष के मद्देनजर राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल इन दिनों बहुत महत्वपूर्ण हो गया। भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा को हानि पहुंचाने वाले तत्त्वों की जानकारी आम नागरिक को नहीं है। आज के हालात में बाहरी और आंतरिक सुरक्षा में भेद करना कठिन हो गया है। हमारी सुरक्षा को वास्तविक खतरा गुप्त कार्रवाइयों, विद्रोही और आतंककारी गतिविधियों से है।
आंतरिक सुरक्षा
किसी भी देश की संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए उस देश की बाहरी सीमाओं की सुरक्षा जितनी महत्वपूर्ण होती है, उतनी ही जरूरी उस देश की सीमाओं के अंदर स्थित भूमि की सुरक्षा अर्थात् देश की आंतरिक सुरक्षा होती है। भारत में जहां बाह्य सुरक्षा का दायित्व रक्षा मंत्रलय पर होता है, वहीं देश की आंतरिक सुरक्षा का उत्तरदायित्व गृह मंत्रलय पर होता है। गृह मंत्रलय के अंतर्गत ही एक ‘आंतरिक सुरक्षा’ विभाग होता है, जो आंतरिक सुरक्षा की सभी जरूरतों को पूरा करता है।
ऐसा माना जाता है कि बदलता बाह्य परिवेश भी हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार में होने वाली घटनाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। इसलिए आज के डिजिटल युग में देश की सुरक्षा के आंतरिक अथवा बाह्य खतरे दोनों एक-दूसरे से आपस में जुड़े हैं और इन्हें एक-दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
पिछले कुछ वर्षों से हमारी आंतरिक सुरक्षा का खतरा कई गुना बढ़ गया है। आंतरिक सुरक्षा की समस्या ने हमारे देश की प्रगति एवं विकास को प्रभावित करना प्रारंभ कर दिया है और यह अब सरकार की मुख्य चिंताओं में से एक है।
मनी लॉन्डरिंग
अवैध रूप से प्राप्त धन के स्रोतों को छिपाने की कला मनी लॉन्डरिंग है। अंत्तः यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आपराधिक आय को वैध बनाकर दिखाया जाता है। इसमें शामिल धन को नशीली दवाओं की सौदेबाजी, भ्रष्टाचार, लेखांकन और अन्य प्रकार की धोखाधड़ी और कर चोरी सहित अनेक प्रकार की आपराधिक गतिविधियों के जरिये प्राप्त किया जा सकता है। काले धन को वैध बनाने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं और इसका विस्तार सरल से लेकर जटिल आधुनिकतम तकनीकों के रूप में हो सकता है।
कई विनियामक और सरकारी प्राधिकरण दुनिया भर में या अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के भीतर वैध बनाए गए काले धन की मात्र के लिए हर साल अनुमान जारी करते हैं। 1996 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया था कि दुनिया भर में वैश्विक अर्थव्यवस्था के दो से पांच प्रतिशत हिस्से में काले धन को वैध बनाने का मामला शामिल था।
हालांकि काले धन को वैध बनाने की प्रक्रिया का मुकाबला करने के लिए एक अंतः सरकारी निकाय, एफएटीएफ का गठन किया गया था जिसने यह स्वीकार किया कि ‘‘कुल मिलाकर वैध बनाए गए काले धन की मात्र का एक विश्वसनीय अनुमान प्रस्तुत करना पूरी तरह से असंभव है और इसलिए एफएटीएफ द्वारा इस संदर्भ में कोई आंकड़ा प्रकाशित नहीं किया जाता है।
इसी प्रकार शैक्षिक टिप्पणीकार भी स्वीकृति के किसी भी स्तर तक इस धन की मात्र का अनुमान लगाने में असमर्थ रहे हैं। मापन में कठिनाई के बावजूद हर साल वैध बनाए जाने वाले काले धन की राशि अरबों में है और यह सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण नीति संबंधी चिंता का विषय बन गया है। इसके परिणाम स्वरूप सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा काले धन को वैध बनाने वालों को डराने, रोकने और पकड़ने के प्रयास किए गए हैं। इसी तरह वित्तीय संस्थानों द्वारा सरकार की आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप और इसमें शामिल प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम से बचने दोनों के लिए काले धन से संबंधित लेनदेन का पता लगाने और इन्हें रोकने के लिए प्रयास किए गए हैं।
भारतीय सीमाएं एवं सीमा प्रबंधन
भारत की निरपेक्ष अवस्थिति 08° 04° उ. से 37°’ उ. अक्षांश तक और 68° 07° पू. से 97° 25° पू. देशान्तर के मध्य है। इसकी उत्तर से दक्षिण लम्बाई 3,214 किमी और पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 2933 किमी है।
वित्तीय सुरक्षा
भारत की वित्तीय सुरक्षा के समक्ष वर्तमान में निम्नलििखत तीन मुद्दे प्रमुख चिंता का विषय हैं:
यहूदी-फिलीस्तीन समस्या की भांति कश्मीर भी उन अनसुलझी समस्या में से एक है, जिसके हल निकाले जाने के अभी तक के सारे प्रयास असफल ही रहे हैं। अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता एवं विभाजन की दो घटनाओं ने द- एशिया में भारत एवं पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्रों को जन्म दिया तथा यहीं से शुरू हुई अभी तक न समाप्त होने वाली शत्रुता। भारत-पाक के मध्य 1947 से ही कश्मीर को लेकर विवाद आरंभ हुआ तथा दोनों के मध्य अभी तक 1965, 1971, 1999 में युद्ध हो चुके हैं, जिनमें पाक सभी युद्धों में पराजित हुआ।
1971 के युद्ध की समाप्ति के पश्चात् हुआ ‘शिमला समझौता’ दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों के आधार के रूप में प्रसिद्ध है।
भारत-पाकिस्तान
यहूदी-फिलीस्तीन समस्या की भांति कश्मीर भी उन अनसुलझी समस्या में से एक है, जिसके हल निकाले जाने के अभी तक के सारे प्रयास असफल ही रहे हैं। अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता एवं विभाजन की दो घटनाओं ने द- एशिया में भारत एवं पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्रों को जन्म दिया तथा यहीं से शुरू हुई अभी तक न समाप्त होने वाली शत्रुता। भारत-पाक के मध्य 1947 से ही कश्मीर को लेकर विवाद आरंभ हुआ तथा दोनों के मध्य अभी तक 1965, 1971, 1999 में युद्ध हो चुके हैं, जिनमें पाक सभी युद्धों में पराजित हुआ।
1971 के युद्ध की समाप्ति के पश्चात् हुआ ‘शिमला समझौता’ दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय संबंधों के आधार के रूप में प्रसिद्ध है।
शिमला समझौता
भारत-चीन
चीन एशियाई महाशक्ति है एवं सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है साथ ही P5+1 समूह का सदस्य है। वहीं भारत एक उपक्षेत्रीय शक्ति है एवं अर्द्ध परमाणु शस्त्र संपन्न राष्ट्र है। भारत-चीन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़कर आजाद हुए एवं आरंभ में दोनों देशों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व विद्यमान था। 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध ने दोनों देशों के मध्य संदेह का वातावरण निर्मित कर दिया।
वर्ष 1988 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा अपने चीन दौरे पर इन संबंधों में जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश की गयी। 1971 के भारत-पाक युद्ध एवं 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद यह संबंध पुनः ठंडे पड़ गए। 2003 के बाद से भारत-चीन के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किए जाने का प्रयास किया गया। दोनों देशों के मध्य संबंधों में समन्वय स्थापित करने हेतु 1954 में ‘पंचशील सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया गया था।
भारत-बांग्लादेश
विश्व में शायद ही कोई ऐसा उदाहरण हो, जहां एक देश से विभाजन स्वरूप बने देश के हिस्से को पुनः मूल देश स्वतंत्र कराने में सहायता करे। भारत-बांग्लादेश इसी प्रकार का उदहारण है। बांग्लादेश जो 1947 में भारत से विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में था, उसे भारत ने सहायता प्रदान कर 1971 में एक स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में स्थापित किया। भारत पहला देश था, जिसने बांग्लादेश की स्थायी सरकार बनने से पहले ही उसे 6 दिसंबर 1971 को मान्यता प्रदान की। साथ ही भारत ने न केवल बांग्लादेश स्वतंत्र सेना ‘मुक्तिवाहिनी’ को सशस्त्र सहायता दी, वरन् करोड़ों शरणार्थियों का भरण-पोषण भी किया। 10 दिसंबर, 1971 को भारत सरकार ने बांग्लादेश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के साथ समझौता किया, जिसमें नागरिक सेवाएं बहाल करना, विदेश नीति, शरणार्थी संकट समेत कई मुद्दों पर बात हुई।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के नायक रहे मुजीर्बुर रहमान बांग्लादेश के प्रधानमंत्री बने। भारत ने उनके साथ सहयोगात्मक रुख बनाए रखा। यह समय (1971-75) दोनाें देशों के संबंधों का स्वर्ण काल माना जाता है। फिर शेख मुजीर्बुर रहमान की हत्या तथा बांग्लादेश में कट्टर पंथी सरकारों के स्थापित होने से इन रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर (1976-95 तक) बना रहा। बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद पर बैठने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक नवीन उमंग देखी जा सकती है जो खालिदा जिया सरकार के समय अपने निम्न स्तर पर पहुंच गयी थी।
भारत-नेपाल
भारत एवं नेपाल के मध्य सांस्कृतिक प्रगाढ़ता, ऐतिहासिक साझी विरासत, व्यक्तिगत स्तर पर संबंधों की मजबूती विद्यमान है। 1816 में ब्रिटिश द्वारा नेपाल को जीतकर अपने नियंत्रण में ले लिया गया, किंतु भारत के स्वतंत्रता के पश्चात् चीन के प्रभाव को नेपाल में बढ़ने से रोकने हेतु भारत-नेपाल संबंधों को ब्रिटिश नीति का भी समर्थन मिला। नेपाल में 1950 के दशक में लोकतांत्रिक आंदोलन चल रहा था, किंतु नेपाल के राजा महेंद्र इसे भारत द्वारा एवं भारत द्वारा नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानते थे। इसी वजह से राजा महेंद्र ने चीन के साथ सहयोग आरंभ कर दिया।
भारत की अनेक कूटनीतिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारत एवं नेपाल के संबंधों को चीनी प्रभाव से दूर भारतीय हित में साधा जा सका। भारत द्वारा नेपाल की अर्थव्यवस्था को सहारा देने हेतु व्यापार एवं पारगमन संधि (जुलाई, 1950) में की गयी। इसके तहत भारत ने नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक वस्तुओं की जिम्मेदारी ले ली। जिन वस्तुओं का उत्पादन नेपाल में हो रहा है और भारत में निर्यात हो रहा है, उन उत्पादों पर नेपाल निर्यात शुल्क भी लगा सकता था। हालांकि यह नीति पहले 1960 में नवीनीकृत, फिर 1989 में समाप्त कर दी गयी, किंतु नेपाल के आग्रह पर इसे पुनः 1996 में लागू किया गया।
भारत-श्रीलंका
अशोक के काल से ही भारत एवं श्रीलंका के मध्य सांस्कृतिक संबंध बन गए थे। फिर आगे चोल काल एवं पूर्व मध्य काल में व्यापारिक संबंधों के भी साक्ष्य मिलते हैं। ब्रिटिश काल में भारत से लोगों को श्रीलंका में बगानी खेती हेतु करने मजदूर ‘गिरमिटिया’ बनाकर ले जाया गया, जिनमें तमिल लोग अत्यधिक मात्र में थे।
दोनों देशों के मध्य संबंधों में समय-सयम पर उतार-चढ़ाव विद्यमान रहा। वर्ष 1948-1955 के मध्य कई मुद्दों पर दोनों देशों के मध्य मतभेद की स्थिति बनी रही, वहीं 1956-76 के मध्य सहयोगात्मक एवं परस्पर सम्मान रखने वाला दृष्टिकोण युक्त संबंध विद्यमान रहे थे।
1977 में प्रेमदासा की सरकार के समय तमिल-सिंहली विवाद ने जन्म लिया। भारतीय शांति सेना का श्रीलंका जाना और फिर उसकी वापसी, राजीव गांधी की हत्या में तमिल हाथ होने से 1993 तक भारत-श्रीलंका संबंध निचले स्तर पर चले गए। भारत के बडे़ भाई वाले रवैये (Big Brother Attitude) की वजह से राजपक्षे के काल में श्रीलंका चीन की तरफ झुक गया तथा श्रीलंका द्वारा चीन को कई प्रकार की सामरिक सैन्य रियायतें प्रदान की गई। फिर भारत द्वारा भी संयुक्त राष्ट्र संघ में श्रीलंका में मानवाधिकारों के हनन हेतु श्रीलंका के विरुद्ध मत देने से श्रीलंका और अधिक चीन के निकट चला गया।
भारत-अफ़गानिस्तान
भौगोलिक दृष्टि से अफगानिस्तान एक भू-आबद्ध (Land Looked) देश है। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान वृहद भारत का एक भाग था। वैसे देखा जाए, तो 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। अफगानिस्तान को खुरासान, आर्याना आदि नामों से जाना जाता था। 19वीं सदी में आंग्ल-अफगान युद्धों के कारण अफगानिस्तान पर यूरोपीय प्रभाव बढ़ता गया।
भारत-म्यांमार
भारत और म्यांमार के बीच लगभग 1600 किमी- से अधिक लंबी भू-सीमा तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा है। म्यांमार-भारत के चार उत्तर-पूर्वी राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर एवं मिजोरम से सीमा बनाता है। म्यांमार जिसे पहले बर्मा के नाम से जाना जाता था, भारत के साथ औपनिवेशिक विरासत का साझीदार भी रहा है। अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर को अंग्रेजों ने कैद कर बर्मा की राजधानी रंगून में रखा था। ब्रिटिश द्वारा बर्मा/पेगू विजय के द्वारा इसे भारत में मिला लिया गया था, जिसे 1935 के भारत शासन अधिनियम के माध्यम से पुनः भारत से पृथक कर दिया गया था।
नेहरू-वांगचुक सांस्कृतिक केंद्र दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान बहुत जीवंत हैं। थिंपू स्थित नेहरू-वांगचुक सांस्कृतिक केंद्र पूरे साल सांस्कृतिक गतिविधियों से परिपूर्ण रहता है। यहां भारतीय शास्त्रीय संगीत, तबला एवं योग की नियमित कक्षाएं संचालित की जाती हैं। इस केंद्र में प्रदर्शनी, बॉलीवुड मूवी शो, सेमिनार आदि का आयोजन समय-समय पर किया जाता है। |
म्यांमार में स्वतंत्रता के बाद से अधिकांश समय तक सैन्य शासन रहा। म्यांमार में पिछले पांच दशकों से सैनिक नेतृत्व, जिसे जुंटा शासन भी कहा जाता है, ने लोकतांत्रिक आंदोलन को दबाए रखा। एक प्रकार से देखा जाए तो म्यांमार में सैन्य शासन होने के वजह से भारत को म्यांमार के साथ संबंध नहीं रखने चाहिए थे, किंतु चीन की मौजूदगी एवं म्यांमार की महत्ता के कारण भारत-म्यांमार के संबंध लगभग मधुर ही बने रहे।
सांस्कृतिक रूप से भी म्यांमार एवं भारत का एक साझा इतिहास रहा है। म्यांमार में बौद्ध धर्म का प्रसार भारत की भूमि से ही हुआ है।
पर्यावरण में उन सारे तत्वों का समावेश है जो जीव-जन्तु, पेड़-पौधे एवं मानव जगत का संचालन करते हैं। हमारा प्रत्येक कार्यकलाप पर्यावरण द्वारा प्रभावित होता है। पर्यावरण शब्द ‘परि’ और ‘आवरण’ से मिलकर बना है जिसका अर्थ है चारों तरफ का घेरा या कवच। पर्यावरण को अंग्रेजी में एनवायरमेंट (Environment) कहा गया है जिसे फ्रेंच से लिया गया है जिसका अर्थ घेरना अर्थात् जो घेरे हुए हैं। हमारे संविधान में मूल अधिकारों का वर्णन करते समय पर्यावरण के अधिकार को भी परिभाषित किया गया है। निस्सरण (Emanation) के सिद्धांत के अनुसार संविधान के भाग तीन मेें प्रमाणित मूलाधिकारों के साथ इन्हें भी मूल अधिकार माना गया है। भारतीय न्यायालयों ने स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रत्याभूत प्राण के अधिकार का भाग माना है। प्राण का मूल अधिकार एवं पर्यावरण का अधिकार- भारतीय न्यायालयों ने स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रत्याभूत प्राण के अधिकार का भाग माना है।
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन का अर्थ जलवायु में आने वाले व्यापक बदलाव से है। मौसम के स्वरूप में बदलाव खाद्य उत्पादन के लिए चुनौती पैदा कर सकता है, जबकि समुद्री स्तर में बढ़ोतरी तटीय जल भंडारों को दूषित कर सकती है और भयंकर बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकती है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रें में चट्टान एवं हिमस्खलन और कुछ आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वनस्पति और प्राणी समूहों में बदलाव जैसे अन्य प्रभाव भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो भागों में बांटा जा सकता है- प्राकृतिक व मानव निर्मित।
मौसम, किसी भी स्थान की औसत जलवायु होती है जिसे कुछ समयावधि के लिए वहां अनुभव किया जाता है। इस मौसम को तय करने वाले मानकों में वर्षा, सूर्य प्रकाश, हवा, नमी व तापमान प्रमुख हैं। मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है और इसलिए ये कम दिखाई देते हैं। इस समय पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और सभी जीवित प्राणियों ने इस बदलाव के साथ सामंजस्य भी बैठा लिया है। परंतु, पिछले 150-200 वर्षों में ये जलवायु परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है कि प्राणी व वनस्पति जगत को इस बदलाव के साथ सामंजस्य बैठा पाने में मुश्किल हो रहा है। इस परिवर्तन के लिए एक प्रकार से मानवीय क्रिया-कलाप ही जिम्मेदार है।
पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन अनादिकाल से होता आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से तो इसमें जबरदस्त परिवर्तन हो रहे हैं। इन परिवर्तनों के कारण सारी दुनिया के जलवायु वैज्ञानिक परेशान हैं, वह पृथ्वी में होने वाली हर गतिविधियों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए हर संभव आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करते हुए कई प्रकार के आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं। इन आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिक तथ्यों को समझना आसान हो जाता है।
जैव विविधता
जैव विविधता के अन्तर्गत पौधे, पशुओं एवं सूक्ष्म जीवों की विभिन्न प्रजातियां शामिल होती हैं, जो पारिस्थितिकी एवं तत्संबंधी अनेक प्रक्रियाओं से जुड़ी रहती हैं। ये पृथ्वी के वैसे संसाधन हैं, जिनका सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्त्व होता है। वनों एवं जल में पायी जाने वाली विभिन्न वनस्पतिक प्रजातियों का कृषि, उद्योग एवं चिकित्सा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। साथ ही अनेक प्रजातियां ऐसी हैं, जो जलवायु को स्थायित्व प्रदान करती हैं तथा जल विभाजकों एवं भूमि को संरक्षण प्रदान करती हैं। परन्तु, आज औद्योगिक विकास, संकरित कृषि एवं जंगलों की लगातार कटाई के कारण जन्तु व वनस्पतियां लुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी हैं। जीव विज्ञानी ‘ई-ओ- विल्सन’ के अनुसार वनों की कटाई से प्रतिवर्ष 50,000 अर्थात् प्रतिदिन 140 बिना रीढ़ वाले जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। इन संकटग्रस्त जीवों के महत्त्व को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम चलाये गये हैं तथा कई प्राणी उद्यानों व अभ्यारण्यों का निर्माण किया गया है।
प्रदूषण
प्रदूषण की समस्या आज मानव समाज के सामने खड़ी सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। पिछले कुछ दशकों में प्रदूषण जिस तेजी से बढ़ा है उसने भविष्य में जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर दिया है। संसार के सारे देश इससे होने वाली हानियों को लेकर चिंतित है। संसार भर के वैज्ञानिक आए दिन प्रदूषण से संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित करते रहते हैं और आने वाले खतरे के प्रति हमें आगाह करते रहते हैं। पर्यावरण प्रदूषण आज विभिन्न घातक स्वरूपों में विद्यमान है जो मानव सभ्यता के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। स्थिति यहाँ तक आ गई है कि सृष्टि का भविष्य संकटग्रस्त है। पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख स्वरूप निम्न प्रकार हैं-
चक्रवात
चक्रवात कम वायुमण्डलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज आँधी को कहा जाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन गर्म हवाओं को ‘चक्रवात’ के नाम से जानते हैं और ये घड़ी की सुई के चलने की दिशा में चलती हैं। जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में इन गर्म हवाओं को ‘हरिकेन’ या ‘टाइफून’ कहा जाता है। ये घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में चलती है। चक्रवात का कारण गर्म क्षेत्रें के समुद्र में सूर्य की भयंकर गर्मी से हवा गर्म होकर कम वायुदाब का क्षेत्र बना देती है। हवा गर्म होकर तेजी से ऊपर जाती है।
मानसून
मानसून मूलतः हिन्द महासागर एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती हैं। इस शब्द का प्रथम प्रयोग ब्रिटिश भारत में (वर्तमान भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश) एवं पड़ोसी देशों के संदर्भ में किया गया था। ये बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिये प्रयोग हुआ था, जो दक्षिण-पश्चिम से चलकर इस क्षेत्र में भारी वर्षाएं लाती थीं। हाइड्रोलोजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही अधिकांश वर्षा कराती है। उल्लेखनीय है, कि मॉनसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिये। इस परिभाषा की दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये शब्द हिन्दी व उर्दु के मौसम शब्द का अपभ्रंश है। मॉनसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आम हवाएं जब अपनी दिशा बदल लेती हैं तब मॉनसून आता है। जब ये ठंडे से गर्म क्षेत्रें की तरफ बहती हैं तो उनमें नमी की मात्र बढ़ जाती है जिसके कारण वर्षा होती है।
भारत की नदियां
भारत की नदियों का देश के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सिन्धु तथा गंगा नदियों की घाटियों में ही विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यताओं - सिन्धु घाटी तथा आर्य सभ्यता का आर्विभाव हुआ। आज भी देश की सर्वाधिक जनसंख्या एवं कृषि का संकेन्द्रण नदी घाटी क्षेत्रें में पाया जाता है। प्राचीन काल में व्यापारिक एवं यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नगर नदियों के किनारे ही विकसित हुए थे तथा आज भी देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से सम्बद्ध हैं।
नदियों के देश कहे जाने वाले भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, मध्य भारत में गंगा, उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा कावेरी महानदी आदि नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं।
अपशिष्ट प्रबंधन
अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन (transport), संसाधन (processing), पुनर्चक्रण या अपशिष्ट के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। यह शब्द आम तौर पर उस सामग्री को इंगित करता है जो मानव गतिविधियों से बनती हैं और ये इसलिए किया जाता है ताकि मानव पर उस के स्वस्थ, पर्यावरण या सौंदर्यशास्त्र पर इसका प्रभाव कम हो। अपशिष्ट प्रबंधन संसाधन निकालने के लिए भी होता है। अपशिष्ट प्रबंधन में शामिल होते हैं ठोस, तरल, गैस या रेडियोधर्मी पदार्थ प्रत्येक पदार्थ के साथ, अलग अलग तरीकों और विशेषज्ञता का प्रयोग किया जाता है।
अपशिष्ट प्रबंधन का तरीका विकसित और विकासशील देशों में गांव और शहर में और आवासीय और औद्योगिक, निर्माताओं के लिए अलग-अलग होता है। महानगरीय क्षेत्रें में गैर -खतरनाक आवासीय और संस्थागत अपशिष्ट प्रबंधन की जिम्म्मेदारी स्थानीय सरकार अधिकारियों, की होती है जबकि गैर-खतरनाक वाणिज्यिक और औद्योगिक अपशिष्ट की जिम्मेदारी आमतौर पर जनरेटर की होती है।
आपदा एवं आपदा प्रबंधन
आपदा प्रबंधन वह प्रक्रिया है जो आपदा के पूर्व की समस्त तैयारियों, चेतावनी, पहचान, प्रशासन, बचाव राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण तथा आपदा से बचने के लिए अपनायी जाने वाली तत्पर अनुक्रियाशीलता इत्यादि के उपायों को इंगित करती है।
वर्तमान युग विज्ञान का युग है। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान। विज्ञान के अनगिनत आविष्कारों के कारण मनुष्य का जीवन पहले से अधिक आरामदायक हो गया है। मोबाइल, इंटरनेट, ई-मेल, 4जी और इंटरनेट के माध्यम से फेसबुक, ट्विटर ने तो मनुष्य की जिंदगी को बदल कर ही रख दिया है। जितनी जल्दी वह सोच सकता है लगभग उतनी ही देर में जिस व्यक्ति को चाहे संदेश भेज सकता है, उससे बातें कर सकता है। चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो। चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान ने हमारे लिए बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं। आज कई असाध्य बीमारियों का ईलाज संभव है। कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ लगातार प्रयासरत हैं। नई-नई कोशिकाओं के निर्माण में भी सफलता प्राप्त कर ली गई है। रोबोट के विकास एवं हाल के दिनों में उसके बढ़ते प्रयोग ने विज्ञान के क्षेत्र में एक नया आयाम जोड़ दिया है।
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
मानव जाति की विरासत केवल पृथ्वी नहीं है, बल्कि पूरा ब्रह्मांड है - पियरे बोउल
मानव जीवन में दैनिक रूप से प्रयोग में लायी जाने वाली प्रौद्योगिकियां यथा मौसम की भविष्यवाणी, सुदूर संवेदन, जीपीएस सिस्टम, सेटेलाइट टीवी और कुछ लम्बी दूरी की संचार प्रणाली वस्तुतः अंतरिक्ष आधारित संरचना पर आधारित है। विज्ञान के क्षेत्र में विशेषकर खगोल विज्ञान और पृथ्वी विज्ञान अधिकांश रूप से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लाभान्वित होती है।
पिछले चार दशकों में, भारत ने अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन, विकास और संचालन, साथ ही साथ, दूरसंचार जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं, टेलीविजन प्रसारण, मौसम विज्ञान, आपदा चेतावनी के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के सर्वेक्षण और प्रबंधन में उन्हें उपयोग करने में एक उल्लेखनीय प्रगति की है। अंतरिक्ष कार्यक्रम अंतरिक्ष सेवाएं प्रदान करने के लिए उपग्रहों का डिजाइन करने और निर्माण करने की क्षमता के साथ और स्वदेश विकसित लॉन्च वाहन से उन्हें लॉन्च करने में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो गया है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की दृष्टि अंतरिक्षप्रौद्योगिकी का इस्तेमाल राष्ट्रीय विकास के लिए करना है। देश में अंतरिक्ष नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने और कार्यान्वित करने के लिए अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना 1972 में की गयी थी।
जैव प्रौद्योगिकी
जैव प्रौद्योगिकी की वैश्विक पहचान, त्वरित रूप से उभरती, व्यापक विस्तार वाली प्रौद्योगिकी के रूप में हुई है। यह विज्ञान का अग्रणी क्षेत्र है जो राष्ट्र की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका आशय किसी भी प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग से है जो जैव-विज्ञानी रूपों का उपयोग करता और प्रणालियों का प्रयोग करता है वह भी नियंत्रण योग्य तरीके से, जिससे कि नए और उपयोगी उत्पादों और प्रक्रियाओं का उत्पादन किया जा सके तथा विद्यमान उत्पादों को परिवर्तित किया जा सके। यह न केवल मानव जाति को लाभ पहुंचाना चाहता है अपितु अन्य जीवों कोे भी लाभ पहुंचाता है जैसा कि सूक्ष्म जीव। यह पर्यावरण में हानिकारक हाइड्रोकार्बन कम करके, प्रदूषण नियंत्रण करके अनुकूल पारिस्थितिकी संतुलन कायम रखने में सहायता करता है।
परमाणु प्रौद्योगिकी
उन सभी प्रौद्योगिकी को परमाणु प्रौद्योगिकी कहते हैं, जिनमें कोई नाभिकीय अभिक्रिया सम्मिलित हो। नाभिकीय ऊर्जा, नाभिकीय औषधि, परमाणु हथियार आदि नाभिकीय प्रौद्योगिकी के प्रमुख उदाहरण हैं। वास्तव में नाभिकीय प्रौद्योगिकी का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो चुका है तथा यह धूम्र संसूचक (smoke detectors) से लेकर नाभिकीय रिएक्टर और परमाणु अस्त्रें तक फैली हुई है।
सामान्य विज्ञान
विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है।
भारतीय वैज्ञानिक
राष्ट्र हमेशा उन वैज्ञानिकों का अभारी रहेगा जिन्होंने अपनी दृष्टि, श्रम और नेतृत्व के जरिए हमारे समाज को सशक्त बनाने के लिए अथक परिश्रम किया है।
भारत की अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्र सम्मिलित हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद और समाजवाद का मिश्रण होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था होने के कारण सरकारी और गैर-सरकारी कम्पनियाँ दोनों मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों की स्वतंत्रता होती है। लेकिन समाज के हितों की रक्षा के लिए सरकार हस्तक्षेप भी करती है। वर्ष 1991 से भारत की आर्थिक प्रगति में तेज आई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है। हांलाकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुआ है।
निर्धनता
निर्धनता की माप निरपेक्ष और सापेक्ष रूप में की जाती है। एक व्यक्ति की निरपेक्ष निर्धनता से आशय है उसकी आय या उपभोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण-पोषण स्तर से नीचे स्तर पर रह रहा है। भारत में निर्धनता से अर्थ निरपेक्ष निर्धनता से ही लिया जाता है। सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय आय की असमानताओं से होता है। इस विधि का प्रयोग विश्व के देशों की आय को तुलनात्मक दृष्टि से मापने के लिए किया जाता है। भारत में निर्धनता की स्थिति का अनुमान प्रतिदिन न्यूनतम कैलोरी उपभोग, आय एवं रहने के स्थान के आधार पर किया जाता है। इस परिभाषा के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को गांव में 2400 कैलोरी प्रतिदिन और शहर में 2100 कैलोरी प्रतिदिन नहीं मिलता है तो उसे निर्धनता रेखा के नीचे माना जाता है। भारत में निर्धनता के स्तर में गिरावट तो आ रही है लेकिन समावेशी विकास के अभाव में यह अभी भी मौजूद है। योजना आयोग (लकड़ावाला समिति) के अनुसार वर्ष 2004-05 में निर्धनता का अनुपात पूरे देश में 27.5 प्रतिशत के स्तर पर था जो पहले की अपेक्षा कम है। तेंदुलकर समिति के अनुसार 2004-05 में भारत में निर्धनता का स्तर 37.2 प्रतिशत आंका गया था। तेंदुलकर समिति के अनुसार वर्ष 2004-05 में निर्धनता का अनुपात ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रें में क्रमशः 41.8% एवं 25-7% है। रंगराजन समिति के नए आंकड़े के हिसाब से 2011.12 में गरीबी अनुपात 29.5% है। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता का स्तर शहरी क्षेत्र के निर्धनता स्तर से अधिक है।
बेरोजगारी
ऐसे व्यक्ति जो मानसिक एवं शारीरिक रूप से कार्य करने के योग्य और इच्छुक होते हैं लेकिन प्रचलित मजदूरी पर उन्हें काम नहीं मिलता, को बेरोजगारी कहते हैं। बेरोजगारी श्रम की मांग और उसकी पूर्ति के बीच उपजे असंतुलन का फलन है। आर्थिक मंदी के दौरान इस तरह की स्थिति प्रायः देखने में आती है। भारत में ग्रामीण क्षेत्र में प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी पाई जाती है। प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें वास्तविक जरूरत की तुलना में अधिक व्यक्ति किसी उत्पादन कार्य में लगे हुए होते हैं।
प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है जिसकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है। कारण, लोगों की खेती में उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति का उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मौसमी बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें किसी विशेष मौसम में काम नहीं होने के फलस्वरूप श्रमिकों को रोजगार नहीं मिलता जबकि शहरी क्षेत्र में औद्योगिक एवं शिक्षित बेरोजगारी देखने को मिलती है।
कराधान
भारत एक सुविकसित कर.संरचना वाला देश है। भारतीय संविधान में कर एवं शुल्क के उद्ग्रहण की शक्ति को केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के बीच तीन स्तर पर विभाजित किया गया है। वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद से भारत की कर प्रणाली में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं। इस दिशा में सरकार द्वारा मूल्य वर्धित कर को लागू किया जाना, सीमा शुल्क की दर को आसियान देशों के स्तर तक लाए जाने का प्रयास करना, कर.आधार में वृद्धि करना और कर.कानून को सरलीकृत किए जाने जैसे अनेक कदम उठाए गए हैं। भारत अभी अपने कुल GDP का मात्र 15.5% भाग कर राजस्व से प्राप्त करता है। जो तुलनात्मक रूप से कम है।
पूंजी बाजार
पूंजी बाजर एक ऐसा बाजार है जहां कंपनियों का दीर्घकालिक निधियों की जरूरतों को पूरा किया जाता है। यह निधि उधार लेने और उधार देने की सभी सुविधाओं से संबंधित है। दूसरे शब्दों में, यह दीर्घावधि निवेश करने के उद्देश्यों के लिए पूंजी जुटाने के कार्य से जुड़ा है। इसके माध्यम से प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार में प्रतिभूतियों और बांडों का व्यापार किया जाता है। दीर्घ अवधि के लिए पूंजी की मांग मुख्य रूप से निजी क्षेत्र, विनिर्माण उद्योग, कृषि क्षेत्र, व्यापार या सरकारी एजेंसियों की ओर से की जाती है। जबकि पूंजी बाजार के लिए निधियों की आपूर्ति अधिकांशतः व्यक्तिगत और कॉरपोरेट बचतों, बैंकों, बीमा कंपनियां, विशेष वित्त पोषित करने वाली एजेंसियों और सरकार के अधिशेषों से होती है।
भारतीय पूंजी बाजार मुख्य रूप से गिल्ट एज्ड मार्केट और औद्योगिक प्रतिभूति मार्केट में बंटा हुआ है। गिल्ट एज्ड बाजार, सरकार और अर्ध.सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक का समर्थन प्राप्त है। सरकारी प्रतिभूतियां सरकार द्वारा जारी किए गए बिक्री योग्य ऋण होते हैं, जो इसकी वित्तीय जरूरतों को पूरा करती हैं। सरकारी प्रतिभूतियों को कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता और इनसे काफी मात्र में ंनकदी प्राप्त होती है, क्योंकि इसे बाजार में चालू मूल्यों पर बड़ी आसानी से बेचा जा सकता है। औद्योगिक प्रतिभूति बाजार एक ऐसा बाजार है जहां कंपनियों की इक्विटियों और ऋण.पत्रें (Debentures) का लेन.देन किया जाता है। इस प्रक्रिया को प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार में विभक्त किया गया है।
आउटसोर्सिंग
‘आउटसो²सग’ किसी दूसरी कंपनी अथवा व्यक्ति से किसी विशेष कार्य को संपनन करने के लिए की गईएक संविदा है। आजकल प्रायः सभी संगठन किसी न किसी तरह से आउटसो²सग संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं। बाहरी फर्में जो आउटसो²सग सेवाएं मुहैया कराती हैं उन्हें ‘थर्ड पार्टी’ की संज्ञा दी जाती है। आज आउटसो²सग के कई स्वरूप हैं। कुछ संगठन व्यवसाय प्रक्रिया को संभालने के लिए यह सेवा मुहैया करने वालों को वेतन पर रखती हैं जबकि कुछेक संगठन पूरा का पूरा कार्य संपनन कराने हेतु आउटसो²सग का सहारा लेती हैं। इसे मोटे तौर पर सूचना प्रौद्योगिकी मानव संसाधन, ग्राहक सेवा, इंजीनियरी, ज्ञान सेवाएं, विधिक, अनुसंधान और विकास आउटसो²सग इत्यादि के रूप में श्रेणीकृत किया जा सकता है। अपने लाभप्रद घटकों जैसे विश्व के उत्कृष्ट बौद्धिक तथा इंटरनेट संसाधनों की विद्यमानता, निम्न लागत संरचना, बहुभाषाई सक्षमताएं इत्यादि के कारण भारत 21वीं सदी के सॉफ्रटवेयर विद्युतगृह के रूप में उभरा है जिसमें विशेष रूप से आईटी समर्थित सेवा (आईटीईएस) तथा व्यवसाय प्रक्रिया आउटसो²सग (बीपीओ) विशेष रूप से चर्चित हैं।
आउटसो²सग के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि इससे कंपनी की गुणता तथा प्रतिष्ठा गंवाए बिना कोर क्रियाशील मदों में अधिक समय, धन तथा मानव संसाधनों का अधिक निवेश करने की संभावनाएं प्राप्त हो जाती हैं। ज्ञान.प्रक्रिया आउटसो²सग (केपीओ), बीपीओ से एक कदम आगे का विस्तार है तथा इस उच्च मूल्यवर्धित प्रक्रियाशृंखला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जहां उद्देश्यों की प्राप्ति इस कार्य को करने वाले लोगों के कौशल तथा अनुभव पर अधिक निर्भर रहती है। प्रौद्योगिकीय विकास द्वारा अर्थव्यवस्थाओं का वैश्वीकरण होना भारत के आउटसो²सग उद्योग के विकास में अहम साबित हुआ। 2000 के दशक के वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के समृद्ध होने के पश्चात, आउटसो²सग भारतीय राज्यों में फैल गया। अमेरिकी कंपनियों ने सूचना प्रौद्योगिकी की आउटसो²सग भारत में निम्न लागत स्थलों पर करना आरंभ कर दिया।
इंटरनेट व्यवसाय में विस्तार इसकी सफलता का मुख्य कारण है। विशेष रूप से दो एशियाई देश चीन और भारत अमेरिकी उद्योगों के लिए आउटसो²सग सेवाओं की व्यवस्था करने में अग्रणी हैं।
भारत अपने विशाल योग्यता पूल के लिए सुविख्यात रहा है तथा यह वैश्विक कंपनियों के लिए अपने बैंक ऑफिस की आउटसो²सग करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण गंतव्य स्थल सिद्ध हुआ है। पिछले दिनों उद्योग ने बाजार अनुसंधानकर्ताओं से लेकर लेखाकारों व चिकित्सा व्यवसाय तक हरेक को इस प्रक्रिया में शामिल कर लिया है। भारत को सर्वाधिक वांछनीय गंतव्यों में से एक माना जाता है। भारत की वरीयता के कारण उसके कुशल मानव संसाधन, सर्वोत्तम मूल संरचना तथा जलवायु दशाओं में सिÂहित है जो ग्राहकों के व्यवसाय कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
भारत को आउटसो²सग करना विश्व के अन्य स्थलों को आउटसो²सग करने की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ता है तथा कंपनियों द्वारा अपने व्यवसाय क्रियाकलाप भारत को आउटसो²सग करने का यही मुख्य कारण है। आज आउटसोर्स उद्योग सामान्य प्रक्रिया कार्यों से प्रमुख प्रक्रिया कार्यों की ओर विशेषज्ञता के अधिक प्रतिस्पर्धी स्तर की ओर संचालन कर रहा है। इससे वर्धित राजस्व, उत्पाद नवाचार तथा आर्थिक संवृद्धि के अर्थ में विश्वव्यापी अवसरों का सृजन किया है।
बीमा क्षेत्र
भारत में बीमा एक संघीय विषय है। भारत में बीमा का व्यापार चार तरह से किया जाता है जिसमें जीवन बीमा, अग्निबीमा, समुद्री बीमा और विविध बीमा शामिल हैं। जीवन बीमाकर्ता जीवन बीमा का व्यापार करते हैं जबकि सामान्य बीमाकर्ता शेष अन्य बीमा का व्यापार करते हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना 1 सितंबर, 1956 को हुई थी जिसका उद्देश्य था जीवन बीमा को बड़े पैमाने पर फैलाना, खास तौर पर गांव में ताकि भारत के हर नागरिक को पर्याप्त आर्थिक सहायताउचित दरों पर उपलब्ध करवाई जा सके। जीवन बीमा निगम का मुख्यालय मुंबई में है। यह भारत में बीमा की सबसे बड़ी कंपनी है जो सरकार के स्वामित्व में है साथ ही यह देश का सबसे बड़ा निवेशक भी है। भारतीय साधारण बीमा निगम की स्थापना 22 नवंबर 1972 में हुई। साधारण बीमा निगम की स्थापना साधारण बीमा व्यवसाय एवं प्रबंधन करने हेतु की गई थी। इसका स्वामित्व भारत सरकार के पास है।
1991 में भारत सरकार ने बीमा क्षेत्र में निजी क्षेत्रें की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए इसमें 26 प्रतिशत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की थी जिसे हाल ही में बढ़ाकर 49% कर दिया गया है।
विनिवेश
विनिवेश के रास्ते पर सरकार एक बार फिर बढ़ चुकी है, जो देश की वित्तीय स्थिति में सुधार का संकेत है। इसमें कंपनियों का ग्लोबल स्तर पर विस्तार होता है और अधिक से अधिक धन कंपनियों के विस्तार, रोजगार सृजन आदि में किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में विनिवेश प्रक्रिया सरकार द्वारा 1991.92 में शुरू की गई थी। विनिवेश प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य बजट के लिए गैर.स्फीतिकारी वित्तीय साधन जुटाना है। सरकार ने अब तक विनिवेश करने हेतु तीन विधियों का प्रयोग किया है.
विनिवेश प्रक्रिया, निवेश प्रक्रिया की विलोम स्थिति है। निवेश से आशय किसी कारोबार, संस्था या परियोजना में धन लगाना होता है जबकि विनिवेश में उस धन को वापस निकाल लिया जाता है। सरकार को निवेश करने से अनेक कंपनियों में शेयर प्राप्त हुए हैं। शेयर एक तरह के कंपनी में हिस्सेदारी के प्रमाण होते हैं। विनिवेश प्रक्रिया के जरिए सरकार अपने शेयर किसी और पक्ष को बेचकर संबंधित कंपनी की हिस्सेदारी से बाहर हो जाती है आैर उसे दूसरी योजनाओं पर खर्च के लिए धन मिल जाता है। विनिवेश का उद्देश्य कंपनी का बेहतर प्रबंधन होता है। उदारीकरण की प्रक्रिया के दौरान यह अवधारणा सामने आई कि सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान सिर्फ मुनाफे को ध्यान में रखकर काम नहीं करते इसलिए उनके कामकाज में मुनाफा ज्यादा नहीं होता। फिर यह बात भी समझ में आई कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं अपितु देश चलाना है, इसलिए सरकार को सार्वजनिक कंपनियों का विनिवेश करके उनसे अलग हट जाना चाहिए। विनिवेश या तो किसी निजी कंपनी के हाथ किया जा सकता है या फिर उनके शेयर पब्लिक में जारी किए जा सकते हैं। पर उद्देश्य यही होता है कि सरकार उस कंपनी से अपने हाथ खींच ले और अपना पैसा बाहर निकाल ले।
निजीकरण में सरकार अपने 51 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है जबकि विनिवेश की प्रक्रिया में वह अपना कुछ हिस्सा निकालती है लेकिन उसकी परिसंपत्ति बनी रहती है। अन्य शब्दों में, विनिवेश किसी कंपनी का आंशिक निजीकरण होता है। मिसाल के तौर पर मारुति उद्योग लि. में भारत सरकार और सुजुकी मोटर्स की साझा संपत्ति थी लेकिन अब सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बेच दी है तो सुजुकी मोटर्स के पास 54 प्रतिशत शेयर आ गए और इस तरह मारुति अबएक निजी कंपनी बन गई है। भारत में विनिवेश प्रक्रिया को अपनाए जाने से प्रतिष्ठानों के शेयर मार्केट, लागत ढांचा, लाभ और काम करने के तरीके में अनेक बदलाव आए हैं। इससे भारतीय प्रतिष्ठान और प्रतिस्पर्धी होने के साथ अपनी बेहतर वैश्विक उपस्थिति दर्ज कराई है। दूसरी तरफ विनिवेश प्रक्रिया के कतिपय नुकसान भी हैं.जैसे घाटे पर शेयर बिक्री, परिसंपत्ति विक्रय द्वारा घाटे को पूरा करना, श्रमिकों की छंटनी व भ्रष्टाचार बढ़ना इत्यादि।
विदेश व्यापार
एक देश का अन्य देशों के साथ वस्तुओं और सेवाओं का आयात और निर्यात किए जाने को विदेश व्यापार कहा जाता है। व्यापार संतुलन में दृश्य मदों अर्थात् वस्तुओं का आयात और निर्यात किया जाता है। यदि किसी देश के आयातों का मूल्य कम और निर्यातों का मूल्य अधिक होता है तो ऐसी स्थिति में अनुकूल व्यापार संतुलन होता है। वहीं आयातों का मूल्य अधिक और निर्यातों का मूल्य कम होने पर एक देश के लिए प्रतिकूल व्यापार संतुलन होगा। भुगतान संतुलन में दृश्य (वस्तुओं) एवं अदृश्य (सेवाओं.पर्यटन, बैंकिंग, जहाजरानी आदि) दोनों मदों का व्यापार होता है। इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के साथ पूंजी व स्वर्ण आदि का भी आयात. निर्यात किया जाता है। भुगतान संतुलन से अभिप्राय एक देश के निवासियों का अन्य देश के निवासियों से हुए उस मौद्रिक लेन.देन से है जो एक निश्चित अवधि में हुए हैं। व्यापार संतुलन, अनुकूल या प्रतिकूल हो सकते हैं लेकिन भुगतान संतुलन सदैव संतुलित होता है। व्यापार संतुलन, भुगतान संतुलन का एक अंग है।
भारत में भूमि सुधार
भारत में अंतिम बार भूमि का मापन वर्ष 2011 में किया गया था। विश्व बैंक के अनुसार भारत में कुल भूमि क्षेत्रफल 2973190 वर्ग किलोमीटर था। जिसमें 0.13 (हेक्टेअर प्रति व्यक्ति) कृषि योग्य भूमि है।
कृषि योग्य भूमि वह भूमि होती है जिसमें अस्थायी फसलें, अस्थायी घास के मैदान, बाजार के प्रयोग में लाई जाने वाली भूमि, किचेन गार्डेन शामिल होते हैं। भारत में वन का क्षेत्रफल 685790 हेक्टेयर किलोमीटर है। वन क्षेत्र उसे कहते हैं जहां प्राकृतिक या बोई गई वृक्षों की ऊचाई कम से कम पांच मीटर होती है। इनलैण्ड वाटर बॉडीज, महाद्वीपीय चट्टानों तथा आर्थिक जोन को छोड़कर शेष समस्त भूमि देश के भूमि क्षेत्रफल में शामिल की जाती है। नदी तथा तालाब, इनलैण्ड वाटर बॉडीज में शामिल किए जाते हैं।
जैविक कृषि
सामान्यतया जैविक खाद के प्रयोग से की जानेवाली खेती को जैविक खेती कहा जाता है। वृहत अर्थों में जैविक खेती, खेती की वह विधि है जो जैविक खाद, फसल चक्र परिवर्तन तथा उन गैर.रासायनियक उपायों पर आधारित है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती हैं। भारत दुनिया में कपास का सबसे बड़ा जैविक उत्पादक देश है, और दुनिया में जैविक कपास के कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत भारत में होता है।
सिंचाई
सिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्र में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रें या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है-
जो कृषि अपनी जल आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है उसे वर्षा-आधारित कृषि कहते हैं। सिंचाई का अध्ययन अक्सर जल निकासी, जो पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से किसी क्षेत्र की पृष्ठ (सतह) या उपपृष्ट (उपसतह) से हटाने को कहते हैं के साथ किया जाता है।
किसान के लिए ई-तकनीक
विदेशों की तर्ज पर अब भारत में भी कृषि क्षेत्र में नई क्रांति का सूत्रपात हो गया है। हरित क्रांति के बाद भारत के किसान अब ई-खेती के जरिए नई मिसाल कायम कर रहे हैं। भारत के गांवों में यह नया ही नहीं बल्कि एक अनोखा प्रयोग है और यह प्रयोग साकार हो सका है- हरित क्रांति और संचार क्रांति के एकसूत्र में पिरोने के बाद। इन दोनों क्रांतियों के युग्म के रूप में अब ई-खेती की शुरुआत हुई है। भारत सरकार की ओर से ई-खेती को बढ़ावा देने की भरसक कोशिश की जा रही है। सरकार की ओर से ई-खेती से जुड़े किसानों को समुचित सुविधाएं वरीयता के आधार पर उपलब्ध कराई जा रही हैं वहीं विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक भी भारत में हो रहे इस नए प्रयोग को लेकर उत्साहित हैं। वे ई-खेती से जुड़े किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं। पंजाब में बड़ी संख्या में किसान ई-खेती से जुड़ चुके हैं, जबकि दूसरे राज्यों में भी यह प्रयोग शुरू हो चुका है। यह अलग बात है कि अभी पंजाब जैसी सफलता नहीं मिल पाई है, लेकिन ई-खेती को लेकर जिस तरह से किसानों में उत्साह है, उससे भविष्य में इसके काफी लाभ होने की संभावना है।
भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कृषि क्षेत्र में हो रहे इस नए प्रयोग को बेहतरीन तरीके से प्रभावी बनाने की दिशा में निरंतर प्रयास हो रहा है। किसानों को सूचनाओं से लैस कर, उनमें खेती के प्रति ललक पैदा करने और जो किसान खेती से जुड़े हैं, उन्हें अधिक लाभ दिलाने की दिशा में ई-खेती बेहद महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार की ओर से भी मशीनों से की जाने वाली खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।इन योजनाओं में कृषि का व्यापक प्रबंध, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शामिल हैं। इसके अलावा इन योजनाओं से हितधारकों को मशीनीकरण के बारे में जागरूक बनाना और समुचित कृषि मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए किसानों और अन्य लाभार्थियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना शामिल है। इसी के तहत कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई गई है कि वे किसी भी स्थान से फोन करके कृषि संबंधी जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कंप्यूटर आधारित इंटरनेट के जरिए भी कृषि संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।
देश की 68 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है और कृषि जनसंख्या का 58 फीसदी आजीविका का मुख्य स्रोत है, इसलिए भारत में डिजिटल कृषि की भूमिका पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। सुरक्षित, पौष्टिक और किफायती भोजन उपलब्ध कराने के साथ ही खेती को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी यानी आईटी का इस्तेमाल करना ही डिजिटल कृषि कहलाता है। फिलहाल पूरे विश्व के सामने एक बड़ी समस्या है और वह है खाद्य सुरक्षा यानी दुनिया के हर व्यक्ति को आहार मुहैया कराना। कुछ साल पहले तक किसान पुराने पारंपरिक तरीकों से खेती करते रहते थे। उनके पास इतने साधन और सुविधाएं नहीं थीं कि वे खेती में नए प्रयोग कर पाएं या खेती में होने वाली समस्याओं से निपट पाएं लेकिन पिछले कुछ समय में जिस तरह किसान डिजिटली सक्षम हुए हैं उससे कृषि क्षेत्र का काफी विकास हुआ है। हाल ही में एक नया टर्म डिजिटल एग्रीकल्चर चलन में आया है।
कृषि विपणन
किसानों द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाने की सभी क्रियाओं एवं नीतियों को कृषि विपणन कहा जाता है। भारत में एक व्यवस्थित कृषि विपणन प्रणाली की कमी है। संयुक्त राष्ट्र की ‘अंतर राष्ट्रीय खाद्य अपव्यय 2013 रिपोर्ट’ के अनुसार इसकी वजह से 40 प्रतिशत कृषि उत्पाद नष्ट हो जाते हैं। भारत में कृषि विपणन में सुधार की जरूरतः
जैसे कि मध्यप्रदेश में 2016 में टमाटर की अधिक उपज हुई पर उसे देश के दूसरे भागों में नहीं पहुंचाया जा सका, जिससे उसकी कीमत सिर्फ 2 रुपए प्रति किलोग्राम हो गयी और किसानों को उनकी लागत मूल्य की भी प्राप्ति नहीं हो सकी।
पशुपालन
पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का विशेष महत्व है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28.30 प्रतिशत का योगदान सराहनीय है जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें एवं 55 प्रतिशत भैंसें है और देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 53 प्रतिशत भैंसों व 43 प्रतिशत गायों से प्राप्त होता है।
भारत देश के निरंतर विकास में सुचारू और समन्वित परिवहन प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्तमान प्रणाली में यातायात के अनेक साधन, जैसे- रेल, सड़क, तटवर्ती नौ-संचालन, वायु परिवहन इत्यादि शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ इसका विस्तार हुआ है और क्षमता भी बढ़ी है। जहाजरानी, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, रेल और नागर विमानन को छोड़कर परिवहन के विभिन्न साधनों के विकास के लिए नीतिगत कार्यक्रम बनाने और उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी निभाता है।
भारत का संविधान एक जड़ दस्तावेज न होकर भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर, 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। 26 नवंबर, भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान के इतिहास में नियमों और सरकारों और महत्वपूर्ण घटनाओं में परिवर्तन व्यापक बिंदुओं और उनके स्पष्टीकरण के साथ शामिल हैं।
संविधान का विकास
भारत में संविधान निर्माण हेतु अनेक चरणों से गुजरना पड़ा। भारत में संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के प्रस्तावों के अनुसार किया गया। संविधान सभा के गठन के लिए नवम्बर 1946 में चुनाव हुआ। दस लाख लोगों के पीछे एक सदस्य चुना जाने का प्रावधान किया गया।संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें 292 प्रान्तों से तथा 93 देशी रियासतों से चुने जाने थे व 4 कमिशनरी क्षेत्रों से थे।प्रत्येक प्रान्त और देशी रियासत को अपनी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आवंटित किए गए थे।
3 जून, 1947 की योजना के अधीन पाकिस्तान के लिए पृथक् संविधान सभा गठित की गई। विभाजन के परिणामस्वरूप जो संविधान सभा पूर्व में अविभाजित भारत के लिए संगठित की गई थी, उसमें से कुछ सदस्य कम हो गए। 3 जून, 1947 की योजना के अधीन विभाजन के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के लिए पृथक् संविधान सभा गठित की गई। बंगाल, पंजाब, सिन्ध, परिचमोत्तर सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले (जो जनमत संग्रह द्वारा पाकिस्तान में सम्मिलित हुए थे) के प्रतिनिधि भारत की संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे। पश्चिमी बंगाल और पूर्वी पंजाब के प्रान्तों में नए निर्वाचन किए गए। 31 अक्टूबर, 1947 को सभा की सदस्यता घटकर 299 रह गई। इन सदस्यों में से 26 नवम्बर, 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थे जिन्होंने संविधान पर हस्ताक्षर किए। कुल महिला सदस्य संख्या 8 थी।
संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई और इस बैठक में डा. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा की अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार के पद पर बी. एन. राव को नियुक्त किया गया। 3 जून, 1947 के भारत संविधान की योजना की घोषणा के बाद संविधान सभा का का पुनर्गठन किया गया। 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया। संविधान निर्माण का कार्य 13 दिसम्बर, 1946 को शुरू हुआ, जब जवाहर लाल नेहरू ने ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत किया।
यह प्रस्ताव संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी, 1947 को पारित कर दिया।संविधान सभा के प्रथम वक्ता डॉ. राधा कृष्णन थे। संविधान निर्माण के लिए विभिन्न समितियाँ जैसे-प्रक्रिया समिति, वार्ता समिति, संचालन समिति, कार्य समिति, संविधान समिति, झंडा समिति, संविधान समिति आदि का निर्माण किया गया। विभिन्न समितियों में से प्रमुख प्रारूप समिति थी जो कि 19 अगस्त, 1947 को गठित की गई थी, के अध्यक्ष डॉ. बी- आर- अम्बेडकर को बनाया गया।
इस समिति के अन्य सदस्य थे-एन- गोपाल स्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, मोहम्मद सादुल्ला, के. एम. मुंशी बी. एल. मित्तल और डी. पी. खेतान। कुछ समय पश्चात् बी. एल. मित्तल के स्थान पर एन. माधव राव को तथा डी. पी.खेतान की मृत्यु 1948 में हो जाने के पश्चात् टी. टी. कृष्णामाचारी को इस समिति में सम्मिलित कर लिया गया।
नागरिकता
संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से 11 के बीच नागरिकता के संबंध में विभिन्न मानदण्ड निर्धारित किये गये हैं। भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है। नागरिकता प्राप्त करने योग्य वे लोग हैं जो भारत में रहते आ रहे हों, पाकिस्तान से शरणार्थी के रूप में आये हों तथा वे भारतीय जो अन्य देशों में रह रहे हों। भारत में निवास कर रहे व्यक्तियों में वे हैं जिनके यहां स्थायी आवास हों, जिनके माता या पिता भारत में जन्म से हों और जो संविधान लागू होने के पांच वर्ष पूर्व से भारत में रह रहे हों। 1955 के नागरिकता अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता की प्राप्ति एवं अंत के संबंध में नियम निर्धारित किये गये हैं। इसके अनुसार कोई व्यक्ति जन्म, उत्तराधिकार, राष्ट्रीयकरण तथा किसी भू-भाग के भारत में समाहित होने के परिणामस्वरूप नागरिकता प्राप्त कर सकता है।
नागरिकता के अंत के संबंध में इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित किया गया है कि (क) कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नागरिकता का परित्याग कर सकता है, (ख) किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे देश की नागरिकता ले लेने पर इसका अंत हो सकता है तथा (ग) कोई व्यक्ति नागरिकता से वंचित किया जा सकता है, यदि उसने जालसाजी से नागरिकता प्राप्त की है, वह संविधान के प्रति निष्ठाहीनता प्रदर्शित करता है, युद्ध के दौरान वह शत्रु राष्ट्रों से संबंध रखता है, 1986 में नागरिकता अधिनियम को संशोधित कर इसकी शर्तें कड़ी कर दी गईं। इसके अंतर्गत 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात् भारत में जन्मे व्यक्तियों को यहां की जन्मजात नागरिकता तभी प्राप्त होगी, जब उनके माता या पिता भारतीय नागरिक होंगे। इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने की अवधि को छह महीने से बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया है।
1992 में पारित हुए नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत यह व्यवस्था की गयी है कि भारत से बाहर पैदा होने वाले बच्चे को यदि उसकी मां भारत की नागरिक है, तो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, इससे पूर्व भारत से बाहर पैदा हुए बच्चे को केवल उसी दशा में भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी, यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो।
संघ की कार्यपालिका
भारत की संघीय व्यवस्थापिका संसद है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा आते हैं। लोकसभा प्रत्यक्षतः चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा निर्मित है। इसकी अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गयी है, जिसमें राज्यों से 530 प्रतिनिधि एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के 20 प्रतिनिधि होते हैं तथा राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय से दो प्रतिनिधि मनोनीत किये जा सकते हैं। वर्तमान में लोक सभा में 545 सदस्य ही हैं, जिनमें से 543 का निर्वाचन 2 का मनोनयन होता है। लोकसभा सदस्यों द्वारा अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है, जो लोकसभा के कार्यों का संचालन करता है तथा इसकी अध्यक्षता करता है। 16वीं लोकसभा की वर्तमान अध्यक्षा भारतीय जनता पार्टी की सांसद श्रीमति सुमित्र महाजन हैं, जबकि उपाध्यक्ष पद पर एम. थंबीदुरई विराजमान हैं।
उपाध्यक्ष का भी निर्वाचन लोकसभा द्वारा किया जाता है। प्रधानमंत्री को लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है। इसी तरह संसद में प्रतिपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के संसदीय दल के नेता को विपक्ष का नेता कहा जाता है। उसे कैबिनेट मंत्री की सारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। सदन में विपक्षी पार्टी की मान्यता प्राप्त करने के लिए कम से कम 10 प्रतिशत सदस्यों का संबंध उस पार्टी से होना आवश्यक है। राज्यसभा या संसद का उच्च सदन भारतीय संघीय व्यवस्था के अंतर्गत राज्यों की प्रतिनिधि संस्था है। इसकी सदस्य संख्या 250 है, जिसमें 238 सदस्य राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों से आते हैं तथा 12 राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान एवं समाज सेवा के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं। वर्तमान में राज्य सभा में कुल सदस्य संख्या 245 है, जिसमें 233 सदस्यों का निर्वाचन और 12 का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा होता है। राज्यों से इसके निर्वाचित सदस्य वहां की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा निर्वाचित किये जाते हैं। राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसके सदस्य छह वर्षों के लिए चुने जाते हैं, जिनमें से एक-तिहाई प्रति दो वर्ष पर सदस्यता से मुक्त होते हैं। राज्यसभा की बैठक की अध्यक्षता के लिए एक सभापति और एक उपसभापति होता है।
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है, जबकि उपसभापति का चुनाव राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अपने सदस्यों में से ही होता है। संसद के सत्र राष्ट्रपति द्वारा आहूत किये जाते हैं पर संविधान के अनुसार संसद के सत्रों के बीच छः महीने से अधिक की अवधि नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन तब बुलाये जाते हैं, जब किसी गैर-धन विधेयक पर दोनों सदनों में असहमति उत्पन्न हो जाती है।
संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है। धन विधेयक की शुरुआत लोकसभा में ही हो सकती है। इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक है। किसी विधेयक का धन विधेयक होना लोकसभाध्यक्ष द्वारा प्रमाणित किया जाता है। संविधान के अंतर्गत राज्यसभा के कुछ विशेष अधिकार उल्लिखित हैं, जो लोकसभा के नहीं हैं। सर्वप्रथम अनुच्छेद 249 के अंतर्गत राज्यसभा द्वारा संसद को राष्ट्रीय हित में, राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बनाने के लिए अधिकृत किया जा सकता है। दूसरे, अनुच्छेद 312 के अंतर्गत राज्यसभा नयी अखिल भारतीय सेवाओं की रचना का प्रस्ताव रख सकती है।
संघ की न्यायपालिका
यद्यपि भारत में इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली को आधार बनाकर संसदीय सरकार की स्थापना की गयी है, परंतु इंग्लैंड के संसदीय सर्वोच्चता के सिद्धान्त के बजाय भारत में संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है। भारतीय संविधान के अधीन संघ एवं राज्य दोनों के लिए न्याय की एक ही प्रणाली है, जिसके शीर्ष पर भारत का उच्चतम न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय है। उच्चतम न्यायालय के नीचे विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय हैं और प्रत्येक उच्च न्यायालय के नीचे अन्य न्यायालयों का सोपान क्रम है, जिन्हें संविधान में अधीनस्थ न्यायालय कहा जाता है।
मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, जो इस संदर्भ में आवश्यक समझने पर सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की सलाह ले सकता है। किसी व्यक्ति के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए आवश्यक है कि वह उच्च न्यायालय या अन्य दो ऐसे न्यायालयों का निरंतर पांच वर्षों तक न्यायाधीश रहा हो अथवा किसी उच्च न्यायालय का दस वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो एवं राष्ट्रपति की दृष्टि में एक ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता हो। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रह सकते हैं। वे अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को दे सकते हैं। उनकी पदच्युति साबित कदाचार एवं अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा पारित एक महाभियोग प्रस्ताव के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है। संसद को उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता तथा शक्तियों का विनियमन करने के लिए विधि बनाने की शक्ति है।
राज्य की कार्यपालिका
राज्यपालः भारतीय संविधान की संघात्मक प्रवृत्ति के मद्देनजर इसके छठे भाग में राज्य शासन के लिए अलग से प्रावधान किया गया है। संविधान के अंतर्गत राज्यों के लिए भी संसदीय ढांचा निर्धारित किया गया है, जिसमें कार्यपालिका संबंधी शक्तियां राज्यपाल में निहित होती हैं। वह इनका प्रयोग राज्य मंत्रिपरिषद एवं मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है।
राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है तथा उसके प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। उसका कार्यकाल सामान्यतः पांच वर्षों का है। राज्य की कार्यपालिका का प्रधान होने के कारण राज्य के समस्त कार्यकारी कार्य राज्यपाल के नाम से ही संपन्न होते हैं। वह विधानसभा में बहुमत दल के नेता को राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त करता है एवं उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। अपनी विधायी शक्तियों के अंतर्गत राज्यपाल राज्य विधानपालिका के सदनों की बैठक आहूत कर सकता है, सत्रवसान कर सकता है तथा विधानसभा को भंग कर सकता है। वह राज्य विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या के छठे हिस्से के बराबर सदस्यों को मनोनीत कर सकता है तथा विधानसभा के लिए भी एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक सदस्य का मनोनयन कर सकता है, यदि उसके विचार से उनका उचित प्रतिनिधित्व विधानसभा में नहीं हो रहा हो। राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक के कानून बनने के पूर्व उस पर राज्यपाल की सम्मति आवश्यक है। राज्यपाल प्रतिवर्ष राज्य का वार्षिक बजट विधायिका के समक्ष प्रस्तुत करता है। धन-विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही विधानसभा में प्रारंभ किया जा सकता है। राज्यपाल की न्यायिक शक्तियों के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा राज्य के उच्च न्यायाधीशों की नियुक्ति के पूर्व उससे परामर्श लिया जाता है। राज्यपाल जिला एवं सत्र न्यायालयों के न्यायाधीशों को नियुक्त करता है।
मुख्यमंत्री एवं राज्य की मंत्रिपरिषदः राज्यपाल वस्तुतः राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है, परंतु व्यावहारिक तौर पर उसे अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर ही करना होता है। राज्य की मंत्रिपरिषद का प्रधान मुख्यमंत्री होता है, जिसकी नियुक्ति राज्यपाल करता है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाती है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा के प्रति तथा व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होती है। कोई भी व्यक्ति मंत्री नियुक्त किया जा सकता है, किंतु यदि वह लगातार छह मास की अवधि तक राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं रहता, तो वह मंत्री नहीं रहेगा।मंत्री के वेतन एवं भत्ते विधानमंडल द्वारा बनायी गयी विधि से शासित होते हैं। मुख्यमंत्री राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान है। वह मंत्रिपरिषद के सदस्यों के बीच विभागों का वितरण करता है।
केंद्र-राज्य संबंध
भारत में केंद्र-राज्य संबंध संघवाद की ओर उन्मुख है। संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा से ग्रहण किया गया है। भारतीय संविधान में केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी, प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियों का विभाजन किया गया है, लेकिन न्यायपालिका को विभाजन की परिधि से बाहर रखा गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में यह कहा गया है कि, "भारत, राज्यों का एक संघ (Union) होगा।" यद्यपि संविधान की संरचना परिसंघात्मक (Federal) है, परंतु प्रारूप समिति (Drafting Committee) ने संघ (Union) शब्द का ही प्रयोग किया है, क्योंकि भारतीय परिसंघ इकाइयों के बीच किसी करार अथवा समझौते के परिणामस्वरूप नहीं बना है तथा संघटक इकाइयों को इस परिसंघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान द्वारा एक संघीय ढांचा निर्धारित करते हुए संघवाद की कुछ मुख्य प्रवृत्तियों को अपनाया गया है, जो इस प्रकार हैं- (क) केन्द्र एवं संघीय इकाइयों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन, (ख) एक लिखित एवं कठोर संविधान तथा (ग) संविधान की व्याख्या करने और केन्द्र एवं राज्यों के मध्य विवादों का समाधान करने हेतु एक स्वतंत्र एवं सर्वोच्च न्यायपालिका।
विधायी संबंधः केन्द्र एवं राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों के अंतर्गत किया गया है। संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के 97 विषय हैं, जैसे विदेश संबंध, रक्षा, रेलवे, डाक-तार आदि जिन पर सिर्फ संसद को कानून बनाने का अधिकार है। राज्य की सूची के अंतर्गत 66 विषय हैं, जिन पर राज्य विधानपालिका को कानून बनाने का अधिकार है। इन विषयों में लोक व्यवस्था एवं पुलिस, स्थानीय शासन, कृषि, वन संपदा, मत्स्य-पालन आदि हैं। यदि संघ सूची एवं राज्य सूची के विषयों में टकराव की स्थिति आ जाये तो उसमें संघ सूची के विषय को प्रमुखता दी जाती है। समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर केन्द्र एवं राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं, पर इसके पूर्व वे एक-दूसरे को सूचित कर देते हैं। इस सूची में 47 विषय हैं, जिनमें आपराधिक विधि एवं प्रक्रिया, विवाह, अनुबंध ट्रस्ट, श्रम कल्याण आदि हैं। यहां भी किसी विषय पर कानून बनाने में केन्द्र एवं राज्य के बीच द्वन्द की स्थिति में केन्द्र को प्रमुखता दी जाती है। इन तीनों सूचियों के अतिरिक्त अवशिष्ट शक्तियां, जो किसी भी सूची में उल्लिखित नहीं हैं, संविधान द्वारा केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में रखी गयी हैं।
प्रशासनिक संबंधः अपने निर्णयों एवं नीतियों के कार्यान्वयन के लिए केन्द्र मुख्यतः राज्य के ही प्रशासन तंत्र पर निर्भर रहता है। साथ ही, अखिल भारतीय सेवाओं के अंतर्गत चुने गये प्रशासकों की नियुक्ति के माध्यम से केन्द्र राज्यों के प्रशासन तंत्र पर नियंत्रण भी रखता है। समय-समय पर केन्द्र द्वारा राज्यों को प्रशासनिक निर्देश भेजे जाते हैं।इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति द्वारा सलाहकारी अंतरराज्यीय परिषद की भी स्थापना की जा सकती है, जो केन्द्र-राज्य से संबंधित विवादों की जांच करेगी एवं केन्द्र व राज्यों के बीच सामान्य हित के विषयों पर विचार करेगी।
वित्तीय संबंधः वित्त आयोग केन्द्र एवं राज्य के बीच विभाज्य करों के वितरण के संबंध में अनुशंसाएं करता है, जो केन्द्र द्वारा राज्य को किये गये विधिसम्मत अंतरण का एक महत्वपूर्ण अंग है। केन्द्र एवं राज्यों के बीच राजस्व का वितरण विभिन्न रूपों में होता है जो इस प्रकार हैं-
(क) केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कर, जैसे-सीमा- शुल्क, निगम कर, आयकर पर अधिशुल्क आदि। (ख) राज्य के अधिकार क्षेत्र में आने वाले कर, जैसे-भू-राजस्व, स्टाम्प, जानवरों, नावों, वाहनों आदि पर कर तथा भवनों, खनिज संबंधी अधिकारों एवं बिक्री पर कर। (ग) वैसे कर, जो केन्द्र द्वारा लगाये जाते हैं पर राज्यों द्वारा वसूले एवं रखे जाते हैं जैसे-विनिमय बिलों पर स्टाम्प ड्यूटी, (घ) क्रेन्द्र द्वारा लगाये एवं वसूले गये, पर केन्द्र एवं राज्यों के बीच विभाजित किये जाने वाले कर, जैसे कृषि-आय के अतिरिक्त आय पर लगाये गये कर, संघ-सूची में वर्णित आबकारी विषयों पर लगाये गये कर इत्यादि।
(घ) वैसे कर, जो केन्द्र द्वारा लगाये और वसूले जाते हैं, पर राज्यों को दे दिये जाते हैं, जैसे-टर्मिनल टैक्स, पत्रिकाओं में विज्ञापन पर कर इत्यादि।
भारत में ऐडमिनिस्ट्रेशन या प्रशासन का सामान्य अर्थ ‘प्रबन्धन’ से सम्बन्धित कार्य करना है। यूरोप में भी यह शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है। किन्तु संयुक्त राज्य अमेरिका में यह उस अर्थ में प्रयुक्त होता है जिस अर्थ में भारत में ‘सरकार’ कहा जाता है। भारत और ब्रिटेन सहित यूरोप के अन्य देशों में ‘सरकार’ के अर्थ में ‘गवर्नमेन्ट’ का इस्तेमाल होता है, न कि ‘ऐडमिनिस्ट्रेशन’ का।
मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह सदैव समाज में रहता है। प्रत्येक समाज को बनाये रखने के लिए कोई न कोई राजनीतिक व्यवस्था अवश्य होती है इसलिये यह माना जा सकता है कि उसके लिये समाज तथा राजनीतिक व्यवस्था अनादि काल से अनिवार्य रही है। अरस्तू ने कहा है कि "यदि कोई मनुष्य ऐसा है, जो समाज में न रह सकता हो, या जिसे समाज की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है, तो वह अवश्य ही एक जंगली जानवर या देवता होगा।" प्रत्येक समाज में व्यवस्था बनाये रखने के लिये कोई न कोई निकाय या संस्था होती है, चाहे उसे नगर-राज्य कहें अथवा राष्ट्र-राज्य। राज्य, सरकार और प्रशासन के माध्यम से कार्य करता है। राज्य के उद्देश्य और नीतियाँ कितनी भी प्रभावशाली, आकर्षक और उपयोगी क्यों न हों, उनसे उस समय तक कोई लाभ नहीं हो सकता, जब तक कि उनको प्रशासन के द्वारा कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाये। इसलिये प्रशासन के संगठन, व्यवहार और प्रक्रियाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
प्रशासनिक सुधार
किसी भी राजनीतिक व्यवस्था की सरकारी प्रशासनिक मशीनरी में सुधार की आवश्यकता को विश्वभर में स्वीकार किया गया है। प्रशासनिक अभिकरण की स्थापना कुछ विशिष्ट हितों की सेवा, कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति तथा कुछ सेवाओं को संचालित करने के मन्तव्य से की जाती है। प्रत्येक प्रशासक को प्रायः एक मुख्य चुनौती का सामना करना पड़ता है। क्या उसके अभिकरण का कार्य वर्तमान की अपेक्षा अधिक कार्यकुशलता से सम्पन्न किया जा सकता है? प्रत्येक देश के लोक प्रशासन के समक्ष यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है कि सीमित स्रोतों से अधिकतम लाभ किस प्रकार उठाया जाए तथा लोक सेवाओं का उत्पादन व जनहित में योगदान कैसे बढ़ाया जाए। यह भारत के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां शासकीय अभिकरणों की कार्य संचालन प्रणाली से लोग असंतुष्ट हैं। प्रत्येक धनी व गरीब शिक्षित व अशिक्षित, वृद्ध व युवा पुरुष व महिला, शहरी व ग्रामीण अधिकारी व गैर-अधिकारी वर्तमान में प्रचलित प्रशासन से असंतुष्ट हैं एवं अधिक और स्पष्ट आलोचक है। यहां तक कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रियों ने प्रशासन की इस कमी की ओर अपना ध्यान आकृष्ट किया है। केंद्र तथा राज्य सरकारों की योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बावजूद भी देश की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे रह रही है।
पंचायती राज व्यवस्था
ग्रामीण शासन और सामाजिक आर्थिक विकास में पंचायतों की भूमिका के महत्व को 1950 के दशक से ही स्वीकार किया जाने लगा था। वर्तमान संदर्भ में समाज कल्याण और समावेशन कार्यक्रमों पर खर्च में वृद्धि को देखते हुए पंचायतों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता अधिक महसूस की जा रही है, क्योंकि कार्यक्रमों का लाभ लोगों तक पहुंचना सुनिश्चित करने, स्थानीय संस्थानों के प्रबंधन में सुधार लाने और जवाबदेही बढ़ाने में पंचायतों की अहम भूमिका है। पंचायतों को समुचित तकनीकी और प्रशासनिक सहायता मुहैया कराने, उनके बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और उन्हें इलेक्ट्रॉनिक दृष्टि से सक्षम बनाने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, सत्ता के हस्तांतरण को प्रोत्साहित करने, पंचायतों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने अर्थात् पंचायतों की लोकतांत्रिक बैठकें नियमित रूप से आयोजित किए जाने, उनसे संबंधित स्थानीय समितियों की समुचित कार्यप्रणाली, ग्राम सभा के स्वैच्छिक प्रकटीकरण और जवाबदेही, उसके खातों का समुचित रख रखाव आदि उपाय अनिवार्य है।
ई-गवर्नेंस
ई गवर्नेंस का अर्थ है सभी सरकारी कार्यों को ऑनलाइन सर्विस के माध्यम से जनता तक आसानी से पहुंचाना। जिससे सरकारी कार्योलयों और जनता दोनों के पैसे और समय की बचत हो सके, और जनता को बार बार विभिन्न दफ्रतरों के चक्कर न लगाना पड़े। सीधे शब्दों में कहें तो ई गवर्नेंस के तहत सभी सरकारी कामकाजों को ऑनलाइन कर दिया गया है जिससे जनता घर बैठे विभिन्न कार्यों के लिए ऑनलाइन ही अप्लाई कर सके।
सरकार की आम नागरिकों के लिए उपलब्ध सुविधाओं को इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध कराना ई-गवर्नेंस या ई-शासन कहलाता है। इसके अंतर्गत शासकीय सेवाएं और सूचनाएं ऑनलाइन उपलब्ध होती हैं। भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक विभाग की स्थापना 1970 में की और 1977 में नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर की स्थापना ई-शासन की दिशा में पहला कदम था। हाल के दिनों में सर्वत्र एक नई अवधारणा गुंजायमान हो रही है और वह है ‘ई-प्रशासन’ (E-Governance) ‘इलेक्ट्रॉनिक प्रशासन’ अथवा ‘आई टी एडमिनिस्ट्रेशन’ (IT Administration)। ई-गवर्नेंस वैकल्पिक प्रशासन (E-Governance is the alternative government) है। ई-प्रशासन ऐसा शासन है जो कहीं भी किसी भी समय (E-Government is government any time, any where) उपलब्ध है। ई-गवर्नेंस सक्षम सरकार, सर्वश्रेष्ठ सरकार और प्रभावी सरकार (E-Governance is really E-nabled government Exellent-Government and effective government) है।
नैस्कॉम के अध्यक्ष स्व. देवांग मेहता के अनुसार ई-प्रशासन से तात्पर्य स्मार्ट गवर्नमेंट से है। स्मार्ट अर्थात एस से सिम्पल, एम से मॉडल, ए से एकाउन्टेबल, आर से रिस्पोन्सिबल तथा टी से ट्रांसपेरेंट। तात्पर्य यह है कि सूचना तकनीकी के प्रयोग से सरकार स्मार्ट हो जाएगी।
‘‘सूचना प्रौद्योगिकी से संचालित प्रशासन ई-प्रशासन है।’’
‘‘ई-प्रशासन ऑनलाइन प्रशासन है’’ (The objective will be to fofer all government related services and utilities on line)।
ई-प्रशासन के वस्तुतः दो रूप हैं। एक रूप है सरकार और विभागों के आपने आंतरिक कामकाज संबंधी। दूसरा सरकार या विभाग के आम जनता से सीधे संपर्क संबंधी। दोनों ही रूप महत्वपूर्ण हैं। पहले स्वरूप से सरकार के अपने फसले लेने का काम सरल, तेज और भ्रष्टाचार विहीन हो सकता है। आम जनता उससे केवल अप्रत्यक्ष रूप से ही लाभान्वित हो सकती है। दूसरे स्वरूप में आम जनता को उसके कामकाज संबंधी सूचनाएं एवं प्रक्रियाएं ऑनलाइन मिलने लगती हैं। उसके समय में बचत होती है तथा व्यय भी कम होती है इसलिए जनता उससे अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होती है। रेल रिजर्वेशन की ई-व्यवस्था इसका अनुपम उदाहरण है।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार का मतलब होता है, भ्रष्ट आचरण। दूसरे शब्दों में वह काम जो गलत हो। भारत में भ्रष्टाचार चारों तरफ महामारी की तरह फैल गया है।सरकारी तन्त्र में यह ऊपर से नीचे तक फैल चुका है। जबकि निजी स्वामित्व वाले क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रह गए हैं। यह कहना अतिश्योक्ति बिल्कुल नहीं होगी, कि भ्रष्टाचार घर-घर में फैल गया है। भ्रष्टाचार का अर्थ है कोई भी कार्य को नियम के खिलाफ या गलत तरीके से अपने फायदे के लिए करना। चाहे वो काम छोटा हो या पुरे देश के लिया किया गया हो। अक्सर लोग पद, सत्ता और संपत्ति के लालच में भ्रष्टाचार करते हैं जो की पुरे देश के लिये एक नुकसान है। भ्रष्टाचारी लोग अक्सर देश के कानून के साथ बेईमानी और धोखेबाजी करते हैं।
सूचना का अधिकार
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार उसकी सेवा के लिए बनाई गई है वह क्या, कहां और कैसे कार्य कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक इस सरकार को चलाने के लिए टैक्स देता है, इसलिए भी नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है। जनता के यह जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है। 1976 में राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश मामले में उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 में विर्णत सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। अनुच्छेद 19 के अनुसार हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्त करने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनता जब तक जानेगी नहीं तब तक अभिव्यक्त नहीं कर सकती। 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में व्यवस्था की गई है कि किस प्रकार नागरिक सरकार से सूचना मांगेंगे और किस प्रकार सरकार जवाबदेह होगी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission - CVC) भारत की एक परामर्शदात्री संस्था है। इसकी स्थापना केन्द्र सरकार के विभागों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार की जाँच करने के उद्देश्य से ‘संथानम समिति’ की अनुशंसा पर सन 1964 में कार्यपालिका के एक संकल्प के द्वारा की गई थी। प्रारम्भ में यह कोई संवैधानिक संस्था नहीं थी, परन्तु बाद में 23 अगस्त, 1998 को जारी राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा इसे संवैधानिक और बहुसदस्यीय बना दिया गया। संसद द्वारा 2003 में सीवीसी को एक सांविधिक निकाय के रूप में मान्यता प्रदान की गई। इसके लिए संसद द्वारा एक विधेयक को पारित किया गया। 11 सितम्बर, 2003 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमति प्रदान कर दिये जाने के साथ ही केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 प्रभावी हो गया।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय है। इसमें एक केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त (चौयरपर्सन) और दो अन्य सतर्कता आयुक्त सदस्य के रूप में होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तीन सदस्यीय समिति, जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), केन्द्रीय गृहमंत्री तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं, कि सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आजादी प्राप्ति के पश्चात विगत 67 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। साथ ही यह उन कुछ देशों में भी शुमार हो गया है, जिनके कदम चांद तक पहुंच चुके हैं।
संस्कृति किसी भी देश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह साझा दृष्टिकोण, मूल्यों, लक्ष्यों और प्रथाओं का सम्मिलित रूप से प्रतिनिधित्व करती है। संस्कृति और रचनात्मकता लगभग सभी आर्थिक, सामाजिक और अन्य गतिविधियों में स्वयं को प्रकट करता है। भारतीय संस्कृति विविध रूपों में अपनी संस्कृति की बहुलता का प्रतीक है। भारत मानवता की ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में, दुनिया के सबसे बड़े गीतों के संग्रहक के रूप में, संगीत, नृत्य, रंगमंच, लोक परंपराओं, कला, संस्कार, अनुष्ठानों और पेंटिंग के प्रदर्शन के लिए जाना जाता है। भारत की संस्कृति कई चीजों को मिलाकर तैयार होती है, जिसमें भारत का लम्बा इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरूआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल है।
भारत एक राज्यों का संघ, प्रभुता संपन्न, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसमें संसदीय प्रणाली की सरकार है। राष्ट्रपति इस संघ की कार्यकारिणी के संवैधानिक प्रमुख हैं। राज्यों में सरकार की प्रणाली केन्द्र की प्रणाली से बिल्कुल भिन्न है। देश में 29 राज्य और 7 संघ राज्य क्षेत्र हैं। संघ राज्य क्षेत्रों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए प्रशासक के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। भारत के बड़े से लेकर छोटे राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की जनसांख्यिकीय, इतिहास और संस्कृति, वेश-भूषा, त्योहार, भाषा आदि वैविध्यता लिए हुए हैं। इसके एक ओर जहां हिमालय पर्वत रूपी मुकुट (उत्तर दिशा में) सुशोभित है, वहीं दूसरी तरफ सुदूर दक्षिण में हिंद महासागर इसका पदक्षालन करता है। इसके दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर है। इसका सुदूर दक्षिणी हिस्सा ‘इंदिरा प्वाइंट’ (बड़ा निकोबार में स्थित) है, जो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित है।
राज्यों का डाटाबेस परिचय | |||||
क्र. | जन. का % | क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) | जनघनत्व | थ्लंगानुपात | साक्षरता का प्रतिशत |
1. | उत्तर प्रदेश (16.50) | राजस्थान (3,42,239) | बिहार (1,102) | केरल (1078) | केरल (94) |
2. | महाराष्ट्र (9.28) | मध्य प्रदेश (3,08,245) | प. बंगाल (1028) | तमिलनाडु (996) | मिजोरम (91.33) |
3. | बिहार (8.60) | महाराष्ट्र (3,07,713) | केरल (860) | आंध्र प्रदेश (993) | त्रिपुरा (87.22) |
4. | प. बंगाल (7.54) | आंध्र प्रदेश (160,205) | उत्तर प्रदेश (829) | छत्तीसगढ़ (991) | गोवा (88.70) |
5. | आंध्र प्रदेश (4.08) | उत्तर प्रदेश (2,40,928) | हरियाणा (573) | मणिपुर (992) | हिमाचल प्र. (82.80) |
6. | मध्य प्रदेश (6.00) | ज.-कश्मीर (2,22,236) | तमिलनाडु (555) | मेघालय (989) | महाराष्ट्र (82.34) |
7. | तमिलनाडु (5.96) | गुजरात (1,96,024) | पंजाब (551) | उड़ीसा (979) | सिक्किम (81.42) |
8. | राजस्थान (5.66) | कर्नाटक (1,91,791) | झारखंड (414) | मिजोरम (976) | तमिलनाडु (80.09) |
9. | कर्नाटक (5.05) | उड़ीसा (1,55,707) | असम (398) | हिमाचल प्रदेश (972) | नागालैंड (79.55) |
10. | गुजरात (4.99) | छत्तीसगढ़ (1,35,191) | गोवा (394) | गोवा (973) | मणिपुर (79.21) |
11. | उड़ीसा (3.47) | तमिलनाडु (1,30,058) | महाराष्ट्र (365) | कर्नाटक (973) | उत्तराखंड (78.82) |
12. | केरल (2.76) | बिहार (94,163) | त्रिपुरा (350) | उत्तराखण्ड (963) | गुजरात (78.03) |
13. | झारखंड (2.72) | प. बंगाल (88,752) | कर्नाटक (319) | त्रिपुरा (960) | प. बंगाल (76.26) |
14. | असम (2.58) | अरुणाचल (83,743) | आंध्र प्रदेश (308) | असम (958) | पंजाब (75.84) |
15. | पंजाब (2.29) | झारखंड (79,714) | गुजरात (308) | झारखंड (948) | हरियाणा (75.55) |
16. | छत्तीसगढ़ (2.11) | असम (78,438) | उड़ीसा (270) | प. बंगाल (950) | कर्नाटक (75.36) |
17. | हरियाणा (2.09) | हिमाचल (55,673) | मध्य प्रदेश (236) | नागालैंड (931) | मेघालय (74.43) |
18. | जम्मू-कश्मीर (1.04) | उत्तराखण्ड (53,483) | राजस्थान (200) | मध्य प्रदेश (931) | ओडिशा (72.87) |
19. | उत्तराखण्ड (0.83) | पंजाब (50,362) | उत्तराखण्ड (189) | राजस्थान (928) | असम (72.20) |
20. | हिमाचल (0.57) | हरियाणा (44,212) | छत्तीसगढ़ (189) | महाराष्ट्र (929) | छत्तीसगढ़ (70.28) |
21. | त्रिपुरा (0.30) | केरल (38,863) | मेघालय (132) | अरुणा. प्रदेश (938) | मध्य प्रदेश (69.32) |
22. | मेघालय (0.25) | मेघालय (22,429) | ज.-कश्मीर (124) | गुजरात (919) | उत्तर प्रदेश (67.68) |
23. | मणिपुर (0.21) | मणिपुर (22,327) | हिमाचल प्रदेश (123) | बिहार (916) | ज.-कश्मीर (67.16) |
24. | नागालैंड (0.16) | मिजोरम (21,081) | मणिपुर (115) | उत्तर प्रदेश (912) | आंध्र प्रदेश (67.02) |
25. | गोवा (0.12) | नागालैंड (16,579) | नागालैंड (119) | पंजाब (895) | झारखंड (66.41) |
26. | अरु. प्रदेश (0.11) | त्रिपुरा (10,486) | सिक्किम (86) | सिक्किम (890) | राजस्थान (66.11) |
27. | मिजोरम (0.09) | सिक्किम (7,096) | मिजोरम (52) | ज.-कश्मीर (889) | अरुणा. प्रदेश (65.38) |
28. | सिक्किम (0.05) | गोवा (3,702) | अरुणा. प्रदेश (17) | हरियाणा (879) | बिहार (63.82) |
29. | तेलंगाना (2.97) | तेलंगाना (1,14,840) | तेलंगाना (307) | तेलंगाना (988) | तेलंगाना (66.46) |