भारतीय कृषि आज भी मानसून पर निर्भर है। ‘ला निना’ के साल में अनुकूल बारिश होने से देश में अच्छी पैदावार होती है। इस स्थिति में मांग और आपूर्ति में अच्छे तालमेल की वजह से खाद्य मुद्रास्फीति (Food Inflation) की स्थिति नहीं बनती। वहीं ‘एल निनो’ के वर्ष में सूखा की उपस्थिति से खाद्य मुद्रास्फीति अपने चरम पर पहुंच जाती है। व्यापक अर्थों में खाद्य मुद्रास्फीति के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनाें के आलोक में देखा जाना चाहिए। उदारीकरण के बाद से घरेलू कीमतें अंतरराष्ट्रीय मूल्यों से बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगी हैं। लेकिन वर्ष 2006 के बाद से भारत में खाद्यान्न पदार्थाें की कीमतें उस तरह प्रभावित नहीं हुईं जैसी अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुई।
भारत जो खाने.पीने की वस्तुओं के मामले में आत्मनिर्भर है, कीमतों में मध्यम और लंबी अवधि की प्रवृत्ति निर्धारित करने में अंतरराष्ट्रीय कारणों के मुकाबले घरेलू कारकों का ज्यादा महत्व है। ये कारक घरेलू मांग, पूर्ति, खाद्य प्रशासन, सरकारी हस्तक्षेप और बाजार की स्थितियों में परिवर्तन से संबंधित है। इसके अलावा आय वृद्धि, आय वितरण, खाद्यानन वस्तुओं का विविधीकरण, शहरीकरण, मुद्रा आपूर्ति, ऋण, प्रौद्योगिकी और मौसम संबंधी कारक भी मांग और आपूर्ति को प्रभावित करते हैं। हाल के दिनों में देखा गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति के प्रमुख संचालक दूध, अंडे, मांस, मछली और खाद्य तेल थे। खाद्य पदार्थों के भीतर, चिंता के प्रमुख विषय खाद्यान्नों से हटकर अन्य वस्तुएं हो गई हैं।