किसी भी अर्थव्यवस्था की तरह भारत में भी मोटे तौर पर मुद्रास्फीति की माप करने के दो आधार हैं। पहला है थोक बाजार की कीमतें अथवा थोक मूल्य सूचकांक। दूसरा है फुटकर बाजार सूचकांक अथवा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक।
मुद्रा आपूर्ति मुद्रा आपूर्ति के उपायों में से चार प्रमुख मौद्रिक योग, जो मौद्रिक क्षेत्र को दर्शाते हैं, इस प्रकार हैं. Mo (प्रारक्षित मुद्रा) = जनता में चलन+ RBI के पास बैंकों का जमा+ RBI के पास अन्य जमा। M1 = लोगों के पास करेंन्सी तथा बैंकों के पास हाथ में नकदी+सभी व्यापारिक तथा सहकारी बैंकों के पास मांग जमाएं+ RBI के पास अन्य जमाएं। M2= M1+पोस्ट ऑफिस में बचत बैंक जमाएं। M3= M1+बैंकों तथा सहकारी बैंकों की समय जमाएं। एम3 अथवा मुद्रा प्रसार की गणना देश के पास मौजूद मुद्रा, बैंकों की सावधि जमा, उनके बचत व चालू खातों की कुल राशि और रिजर्व बैंक की अन्य जमा को मिलाकर होती है। वर्ष 2010.11 के दौरान एम3 में 16.0% तक वृद्धि हुई। ज्यादा जमा और कम ऋण वितरण से एम3 में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति बढ़ती है। इसे विस्तृत मुद्रा भी कहते हैं। जहां M3 की धारणा संपूर्ण बैंकिंग क्षेत्र के निवल मौद्रिक दायित्व को प्रदर्शित करती है वहीं डवरिजर्व बैंक के निवल मौद्रिक दायित्व को प्रदर्शित करता है। |
भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की गणना तीन समूहों से संबंधित है। ये समूह हैं.औद्योगिक श्रमिक, शहरी गैर.शारीरिक श्रम करने वाले कर्मचारी और खेतिहर मजदूर।
मुद्रास्फीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव होते हैं। आरंभ में मुद्रास्फीति से अर्थव्यवस्था सक्रिय होती है क्योंकि मांग का पूर्ति से अधिक होने के कारण उत्पादकों को वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। इससे रोजगार के अवसर और श्रमिकों तथा उत्पादन के कारकों की आपूर्ति करने वालों की आय में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन निर्वाह व्यय में साधारण सी वृद्धि भी होती है। इस प्रक्रिया से उत्पादक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ाते हैं जिससे दीर्घकाल में मांग और पूर्ति के बीच संतुलन कायम हो जाता है और मुद्रास्फीति की स्थिति पर विराम लग जाता है। परंतु यदि मुद्रास्फीति का क्रम जारी रहता है, यानी उत्पादन, मांग की तुलना में कम होता है तो इससे धन एवं आय के वितरण में विषमता बढ़ जाती है।
जीवन स्तर गिरेगा और भुखमरी तथा तंगहाली की स्थिति आ जाएगी। कालक्रमेण सामाजिक असंतोष बढ़ने के साथ आर्थिक एवं राजनैतिक स्थिरता का भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। मुद्रास्फीति से जिन लोगों को सर्वाधिक कष्ट होता है वे स्थिर आय वाले व्यक्ति हैं जिनका वेतन, पेंशन तथा वार्षिक अथवा मासिक आय की राशि स्थिर रहती है। जिन लोगों के पास सरकारी बांडों, जीवन बीमा पॉलिसियां व नकदी हैं अथवा सावधि जमाएं जो बैंकों में होती है उनको हानि उठानी पड़ती है। यदि स्फीति की दर बैंकों से प्राप्त होने वाली ब्याज की दर से अधिक है तो बचत की वास्तविक राशि घटेगी।
मुद्रास्फीति में यदि निरंतरता बनी रहती है तो ऐसी स्थिति में मुद्रा का मूल्य घटकर बहुत कम हो जाता है। ट्टणी लोग ऐसे समय में मूल्यहीन मुद्रा अपने ऋणदाताओं को देकर ऋण से मुक्त हो जाते हैं। मुद्रास्फीति से ऋणदाता को हानि और ट्टणी को लाभ होता है। दूसरी तरफ मुद्रास्फीति से कालाबाजारी और वस्तुओं की अवैध रूप से भंडारण की प्रवृत्ति बढ़ती है इससे कीमतों में वृद्धि को और प्रोत्साहन मिलता है। इस स्थिति में जमीन. जायदाद और सोने.चांदी की कीमतों में भारी इजाफा होता है। क्योंकि लोग अपनी बचत उनमें लगाने लगते हैं। इस तरह की प्रक्रिया से कुछ लोग अपेक्षाकृत अधिक धनाढ्य और कुछ लोग गरीब हो जाते हैं। गरीब और वंचित तबका सामान्यतः असंगठित क्षेत्र से जुड़ा होता है। असंगठित क्षेत्र से अभिप्राय ऐसे क्षेत्र से है जहां लोगों की आय अनिश्चित होती है।