शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में ठंड के मौसम में बहुत से फैकल्टी व्याख्यान (लेक्चर) को छोड़ देते थे। उनकी समस्या गलत पार्किंग प्रणाली की थी। रिचर्ड थेलर ने इसका समाधान निकालने के लिए कॉलेज प्रशासन से बातकर बेसमेंट में एक पार्किंग फ्रलोर बनवाने का सुझाव दिया। प्रशासन ने ऐसा ही किया और फिर कड़ी शीतलहरी में भी लेक्चर से अनुपस्थिति की संख्या में उत्तरोतर कमी होती गयी। निर्णयन में एक प्रकार का यह व्यवहार बदलाव था जिसका परिणाम बूथ कॉलेज को मिला।
रिचर्ड थेलर को अपने इस ‘व्यवहार अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए' (For His contributions to Behavioural Economics) ही वर्ष 2017 का स्वेरिंग्स रिक्सबैंक अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका मुख्य योगदान ‘मनोविज्ञान के साथ अर्थशास्त्र को जोड़ना' (integrating economics with psycology) रहा है। उन्होंने आर्थिक निर्णयन के विश्लेषण में मनोवैज्ञानिक यथार्थ तर्कों का समावेशन किया।
रिचर्ड थेलर के प्रमुख सिद्धांत एवं योगदान इस प्रकार हैं;
सीमित तर्कसंगतता (Limited Rationality)
थेलर ने इस सिद्धांत पर भी प्रकाश डाला कि किस प्रकार लोग बौद्धिकता/तार्किकता को त्यागकर आर्थिक निर्णय लेते हैं। खुद थेलर कहते रहे हैं कि अच्छा आर्थिक निर्णय लेने से पूर्व दिमाग में यह बात रखना जरूरी है कि लोग भी मानव हैं।’ 20वीं शताब्दी के अधिकांश वर्षों में अर्थशास्त्र की मुख्यधारा यही कहती रही है कि ‘लोग तर्कसंगत ढ़ंग से व्यवहार करते हैं (people behaved rationally)। परंतु थेलर ने अर्थव्यवस्था को चिंतन की इस धारा से दूर करने में मुख्य भूमिका निभायी है। वे यह नहीं कहते कि मानव अविवेकी हैं, वरन् उन्होंने यह दर्शाया कि लोग क्रमिक रूप से तार्किकता से दूर होते रहते हैं इसलिए हम उनके व्यवहार का पूर्वानुमान कर सकते हैं।
सामाजिक प्राथमिकताएं (Social preferences)
थेलर ने यह भी पाया कि उपभोक्ताओं की न्यायोचित चिंता (fairness concerns) अत्यधिक मांग की दशा में भी कंपनियों को मूल्य बढ़ाने से रोकता है। उदाहरण के तौर पर, छाता दुकानदार वर्षा के समय अपनी छाता का मूल्य नहीं बढ़ाएगा या फिर जितना बढ़ा सकता है उतना नहीं बढ़ाएगा क्योंकि वह यह सोचता है कि यदि वह मूल्य बढ़ा दे तो लोग छाता के दुकानदार को अधिक मुद्रा देने के बजाय भींगना पसंद करेंगे।
आत्मनियंत्रण की कमी (Lack of self-control)
थेलर ने इस मान्यता पर भी नया प्रकाश डाला है कि नये वर्ष में किये गये संकल्पों को पूरा करना मुश्किल होता है। प्लानर डोअर मॉडल (planner-doer model) के आधार पर आत्मनियंत्रण समस्याओं के विश्लेषण का तरीका उन्होंने बताया। अल्पकालिक प्रलोभन के प्रति आत्मसमर्पण ही वह महत्वपूर्ण कारण है जो वृद्धायु के लिए बचत या स्वस्थ जीवन शैली प्राथमिकताओं जैसी योजनाएं को असफल करता है। थेलर ने यह भी दर्शाया कि पेंशन के लिए बचत या अन्य संदर्भों में नजिंग (nudging), जो कि उनके द्वारा गढ़ा गया शब्द है, लोगों की मदद करता है। प्लानर-डूअर मॉडल दीर्घकालिक योजना बनाम अल्पकालिक कार्य के बीच आंतरिक तनाव से संबंधित है।
नज इकोनॉमिक्स (Nudge Economics)
अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को 9 अक्टूबर, 2010 को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार से पूर्व ही मौजूदा सरकार थेलर के लोकप्रिय सिद्धांत ‘नज इकोनॉमिक्स’ (Nudge Economics) पर एक अलग इकाई स्थापित कर चुकी थी। नज इकोनॉमिक्स लोगों को किसी चीज का पालन किये बिना सरलता से लाभदायक व्यवहार बदलाव की ओर निर्देशित करता है। विगत वर्ष नीति आयोग ने व्यवहार बदलाव तथा कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने के लिए नज यूनिट स्थापना हेतु अमेरिका की बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ समझौता किया था। ज्ञातव्य है कि कुछ इस तरह की इकाई की स्थापना ब्रिटेन में वर्ष 2010 में प्रधानमंत्री कार्यालय में स्थापित की गई थी।