वर्तमान भारतीय बैंकिंग व्यवस्था सुधार के दौर से गुजर रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था, बाजार आधारित विश्व अर्थव्यवस्था से तेजी से जुड़ रही है अतः भारतीय बैंकों से व्यावसायिक कुशलता के मापदंडों पर खरा उतरने की आशा सरकार व केंद्रीय बैंक कर रहे हैं। वर्तमान में देश में लगभग 1,30,000 बैंक शाखाएं हैं जिनमें सर्वाधिक हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की है। इसी प्रकार अधिकांश बैंकिंग बाजार पर भी सार्वजानिक क्षेत्र का नियंत्रण रहा है। दिसंबर 2016 के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न प्रकार के अनुसूचित बैंकों की बाजार हिस्सेदारी अग्रलििखत है-
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गैर-निष्पादित आस्तियों की समस्या: गैर-निष्पादित आस्तियां भारतीय बैंकिंग जगत की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण पर ब्याज आय या किश्त से प्राप्त होने वाली वसूली आय बंद हो जाने की स्थिति में इस प्रकार की ऋण आस्ति को आर बी आई की प्रुडेंशियल नॉर्म्स के आधार पर गैर-निष्पादित आस्तियों के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है जो कि बैंकिंग व्यवसाय में एक नकारात्मक पक्ष है। गैर-निष्पादित आस्तियों का एक सीमा से अधिक हो जाने पर बैंक के डूबने का खतरा रहता है। यदि यह प्रवृत्ति अधिकतर बैंकों में व्याप्त हो तो पूरे बैंकिंग उद्योग के डूबने की आशंका रहती है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ‘केयर’ के ताजा अध्ययन के अनुसार मार्च 2017 में भारतीय बैंकों की कुल गैर-निष्पादित आस्तियां 7,11,312 करोड़ रुपये थी जो कि कुल ऋण पोर्टफोलियो का 9.06% थीं, जो जून 2017 को कुल गैर-सम्पादित आस्तियां बढ़कर 8,29,338 करोड़ रुपये हो गयी तथा छच्। अनुपात बढ़कर 10.21% के स्तर पर पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष 20 बड़ी NPA राशियों वाले बैंकों में 19 सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक हैं।
सर्वाधिक NPA अनुपात वाला बैंक IDBI बैंक है जिसकी कुल ऋण परिसंपत्तियों का 24.11% गैर-सम्पादित श्रेणी में वर्गीकृत है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में इंडियन बैंक का प्रदर्शन इस मामले में श्रेष्ठतम है जिसका NPA स्तर 7.21% है वहीं निजी क्षेत्र के सबसे बड़े ऋणदाता आईसीआईसीआई बैंक का NPA अनुपात निजी क्षेत्र में सर्वाधिक 7.99% पर है जबकि यस बैंक ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए NPA अनुपात को मात्र 0.97% पर बनाये रखा है। गैर-सम्पादित आस्तियों में यह अप्रत्याशित वृद्धि विगत दो वर्षों में तीव्र गति से हुयी है। वित्तीय वर्ष 2017 में 1,39,471 करोड़ रुपए की वृद्धि हुयी है। यद्यपि की इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की NPA वृद्धि दर 20% सालाना रही जबकि आश्चर्यजनक रूप से निजी क्षेत्र के बैंकों की NPA वृद्धि दर 70% सालाना रही। |
बैंकों के विलय की बहसः केंद्र सरकार की यह योजना है कि सभी बैंक अपनी पूंजी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं के संसाधनों से करने की क्षमता पैदा करें ताकि उनकी सरकार पर पूंजी हेतु निर्भरता कम हो सके। सरकार का यह मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों मेंकार्य कुशलता का अभाव है तथा इन बैंकों में ग्राहक संतुष्टि का स्तर निम्न है। यदि कुछ छोटे व कम कार्यकुशल बैंकों का बड़े व कुशल बैंकों के साथ विलय किया जायेगा तो नया बैंक अधिक कार्यकुशल व प्रतियोगी होगा। यह तथ्य सत्य है कि बड़े बैंकों की जोिखम उठाने की क्षमता अधिक होती है तथा वे बाजार प्रतियोगिता के समक्ष टिक पाते हैं। हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक के पांच सहयोगी बैंकों तथा भारतीय महिला बैंक का एसबीआई में विलय हो जाने से यह बैंक विश्व के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल हो गया। अतः सरकार की यह योजना कि विलय के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े आकार के बैंक निर्मित किये जाये तथा इनकी संख्या 10 के आस-पास रखी जाय। बाद में इनकी संख्या कम करके दीर्घकाल में 5 से 6 विश्वस्तरीय बैंकों का निर्माण किया जाये।
इससे पूर्व भी इस प्रकार के विलय हुए हैं जैसे वर्ष 1993-94 में पंजाब नेशनल बैंक में न्यू बैंक ऑफ इंडिया का, वर्ष 2002 में बैंक ऑफ बड़ौदा में बनारस स्टेट बैंक लिमिटेड का तथा वर्ष 2004 में ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का विलय हुआ। इन तीनों विलयों में एक बात यह उभयनिष्ठ रही कि अपेक्षाकृत बड़े और सुदृढ़ बैंकों के द्वारा छोटे व कमजोर पूंजी आधार वाले बैंकों का विलय किया गया।
वर्तमान में केंद्र सरकार की नीति यह है कि वह कुछ ऐसे बैंकों का जिनकी परिचालन कुशलता ठीक नहीं है साथ ही उनका पूंजी आधार भी कमजोर है, को सुदृढ़ बैंकों में विलय कर दिया जाय। इस सन्दर्भ में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 23 अगस्त, 2017 को बैंकों के विलय हेतु सैद्धांतिक मंजूरी दे दी तथा इसके लिए एक वैकल्पिक कार्ययोजना (अल्टरनेटिव मैकेनिज्म) के आधार पर वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिसमूह का गठन करने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि विलय की प्रक्रिया किसी भी बैंक के लिए बाध्यकारी नहीं होगी तथा बैंक कर्मचारियों की नौकरियां सुरक्षित रहेंगी।
भारतीय बैंकिंग जगत इस समय चुनौतियों से घिरा हुआ है तथा इसका प्रभाव संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अतः बैंकिंग क्षेत्र को सुदृढ़ करने हेतु बैंक का विलय एक महत्वपूर्ण सुधार होगा जहां एक ओर इस प्रयास से सुदृढ़ और प्रतियोगी बैंकों का निर्माण होगा वहीं दूसरी ओर आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक प्रभाव देखने को भी मिलेगा।