परिवार अदालतः सर्वोच्च न्यायालय में बढ़ते पारिवारिक मुकदमों को देखते हुए परिवार न्यायालय अध्निनिम 1984 पारित किया गया। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर एक परिवार न्यायालय के गठन का उल्लेख किया गया है। परिवार न्यायालय मुख्यतः पारिवारिक विवादों यथा- विवाह विच्छेद, पारिवारिक देखभाल, गुजारा भत्ता, बच्चे का संरक्षण इत्यादि मामलों की सुनवाई को देखती है। इस प्रकार के न्यायालयों को गठित किए जाने से मुकदमों में बड़ी संख्या में शामिल पारिवारिक मुकदमों को इन न्यायालयों में भेजने से सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमों की संख्या को कम करने में मदद मिलने की संभावना है।
भारत में परिवार न्यायालयों को गठित किए जाने के पीछे मुख्य उद्देश्य पारिवारिक मुश्किलों को कम करना है। भारत की पहली परिवार अदालत बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स, मुम्बई में स्थापित की गई थी।
मोबाइल अदालतः भारत की पहली मोबाइल कोर्ट का उद्घाटन सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने 5 अगस्त, 2007 को हरियाणा के मेवात जिले में किया। देश के पिछड़े और दूरदराज क्षेत्रों में लोगों को सस्ता और उनके निकट न्याय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इस प्रकार की चलायमान अदालतों का गठन किया गया है, ताकि लोगों को उनके निकट ही सस्ता न्याय मिल सके।
जनहित याचिका (PIL): भारत के सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली जनहित याचिका (PIL) को ऐसा माना जाता है कि यह अमेरिकी लोक जनहित याचिका का ही सुधरा हुआ रूप है। भारत में जनहित याचिका का पहला मामला 1979 में सामने आया। लेकिन तब इसे कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं थी। वर्ष 1981 में पी.एन. भगवती ने एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ के मामले से भारत में जनहित याचिका की संकल्पना को अभिव्यक्ति प्रदान की।
न्यायाधीश पर महाभियोग
भारतीय संसद के उच्च सदन, राज्यसभा में पहली बार 18 अगस्त, 2011 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के विरूद्ध महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ। न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव के पक्ष में 189 और विपक्ष में 17 सदस्यों ने मतदान किया। यह प्रस्ताव लोकसभा से पारित होता, उसके पहले ही न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन ने अपना हस्तलिखित इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। इसके पहले वर्ष 1993 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था लेकिन वह पारित नहीं हो सका था और न ही राज्यसभा में पेश किया गया था।