उच्चतम न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्ति के क्षेत्रधिकार का विस्तार दुनिया भर के अन्य न्यायिक संस्थाओं की तुलना मेंअद्वितीय है। लेकिन यह अधिक शक्ति अत्यधिक जिम्मेदारी के साथ प्रदान की गयी है। उच्चतम न्यायालयने वर्षों से न्यायिक समीक्षा में मील के पत्थर बनाए, जिसके परिणामस्वरूप ऐतिहासिक बदलाव हुए। गरीबों की आवाज को सुनने और गरीबों की न्याय तक पहुंच को सुनिश्चित करने हेतु जनहित याचिका की उत्पत्ति हुई। बंधुआ श्रम, उपेक्षित बच्चों, श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान न करने, श्रम कानूनों का उल्लंघन, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, पुलिस हिरासत में उत्पीड़न जैसे कुछ उदाहरण हैं जहां अदालत ने रचनात्मक हस्तक्षेप किया है। ये कुछ ऐसे सकारात्मक उदाहरण हैं जहाँ उच्चतम न्यायालय ने अपनी भूमिका का निष्पादन किया।
हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रीय और राज्य के राजमार्गों के 500 मीटर के भीतर प्रतिष्ठानों, रेस्तरां, वेंडर आदि में शराब की बिक्री पर रोक लगाने से एक सवाल उठता है कि क्या उच्चतम न्यायालय की यहाँ कोई भूमिका है? होटल, रेस्तरां या वेंडर्स का स्थान तय करना तथा शराब की बिक्री एक शुद्ध नीति निर्णय है, जो कि सरकारों द्वारा लिया जाना चाहिए। यहाँ एक संवैधानिक मुद्दा भी उत्पन्न होता है क्या सर्वाेच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा के जरिये कोई ऐसा फैसला दे सकता जो राज्य विधानसभा का विषय वस्तु है। उल्लेखनीय है कि शराब की बिक्री राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है। इस न्यायिक निर्णय के परिणाम भी नकरात्मक हो सकते हैं। इसका परिणाम यह हो सकता है कि शराब व्यवसाय से जुड़े लाखों लोग अपनी नौकरी खो देंगे। शराब राज्य राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इस निर्णय से राज्यों में शराब व्यवसाय को नुकसान पहुंचेगा जिससे राज्यों को राजस्व का भी नुकसान होगा।
यदि नीति निर्णय के विषयों पर भी न्यायपालिका निर्णय देगी तो इससे सत्ता के पृथक्करण की संवैधानिक अवधारणा का रूप धूमिल हो जाएगा। वहीं अनुच्छेद 142 के उपयोग में आर्थिक परिणाम निहित हैं जो अर्थव्यवस्था को अस्थिर करते हैं। जैसे पूर्व मेंकोयला खानों के सभी आवंटन रद्द करने के परिणामों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बैलेंस शीटों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इससे बैंकों का एनपीए भी बढ़ा जिससे अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुआ। ठीक ऐसे ही 2000 सीसी और ऊपर की एक इंजन क्षमता वाले डीजल कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय अभी तक न्यायिक सक्रियताका एक और उदाहरण है। इसने, वास्तव में, विदेशी निवेश की संभावना को खतरे में डाल दिया। हालाँकि निर्णय का बाद में समीक्षा किया गया। ऐसे निर्णय विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में यह पाया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत व्यापक और पूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इन सांविधिक प्रावधानों को सीमित करने की जरूरत नहीं है। इस संदर्भ में मोहम्मद अनीस बनाम भारत सरकार का मामला काफी चर्चित हुआ। यूनियन कार्बाइड बनाम भारत सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह प्रावधान दिया कि अनुच्छेद 142 के तहत कोई प्रावधान या सीमा अथवा सामान्य कानून के दूसरे प्रावधान उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक अधिकारों को सीमित नहीं कर सकते। फिर भी, नीलाबती बेहरा बनाम उड़ीसा सरकार के मामले में सबसे व्यापक विचार व्यक्त किया गया, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया कि न्यायालय लाचार नहीं है और अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। यह खुद एक मौलिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिए गए अधिकार भी प्रासंगिक हैं।