प्रधानमंत्री ने उनसे संबद्ध आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) का गठन किया है। पांच सदस्यीय परिषद में प्रतिष्ठित और विख्यात अर्थशास्त्रियों को शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि ईएसी-पीएम एक स्वतंत्र निकाय है, जो आर्थिक मुद्दों और भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री से संबंधित मुद्दों पर सलाह देती है। दरअसल, प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद भारत में प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली समिति है। इसमें एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बराबर होता है। आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सलाहकार समिति के सदस्यों की नियुक्ति होती है। प्रधानमंत्री द्वारा पदमुक्त होने के साथ ही सलाहकार समिति के सदस्य भी त्यागपत्र दे देते हैं।
विकास की धीमी रफ्तार, मुद्रास्फीति में वृद्धि की संभावना, राजस्व में कमी आने की आशंका, चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को लक्षित दायरे के भीतर रखने की चुनौती, निर्यात में गिरावट, चालू खाता घाटे में बढ़ोतरी, वैश्विक परिवेश में बदलाव के कारण भारतीय रुपए पर दबाव आदि आर्थिक चुनौतियों का सामना करने को आर्थिक सलाहकार परिषद के गठन का प्रमुख कारण माना जा रहा है। दरअसल, अभी तक आर्थिक मामलों में सरकार पूरी तरह से वित्त मंत्रलय पर निर्भर रही है, लेकिन परिषद के वजूद में आने के बाद इस निर्भरता में गुणात्मक बदलाव आएंगे। परिषद बनने से आर्थिक नीतियों को तय करने में लोकसेवकों के प्रभाव और अर्थशास्त्रियों की राय के बीच आवश्यक संतुलन भी स्थापित हो सकेगा।
आर्थिक सलाहकार परिषद की संरचना
आर्थिक सलाहकार परिषद के विचारणीय विषय इस प्रकार होंगे-
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परिषद के गठन के बाद नीति आयोग की भूमिका पर भी अहम सवाल खड़ा हुआ है। क्या आयोग को नए मॉडल पर काम करना होगा? क्योंकि अब सरकार को आर्थिक सलाह देने के लिये एक विशेषज्ञ संस्था बन चुकी है। दरअसल, आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रशासनिक एवं बजट संबंधी उद्देश्यों के लिये योजना आयोग पहले एक नोडल एजेंसी का कार्य करता था, लेकिन दोनों की भूमिकाओं में कोई दोहराव नहीं होता था। सरकार को आयोग व परिषद के दायित्यों में स्पष्टता लाना एक प्रमुख चुनौती होगा।