नौ न्यायाधीशों वाली उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस ए.एम. सप्रे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे। पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। इस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 को और विस्तारित किया।
अनुच्छेद 21 संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकार का एक भाग है। इसमें जीने के अधिकार की स्वतंत्रता दी गयी है। संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को जीवन जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जाएगा। मेनका गांधी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद अनुच्छेद 21 की समय समय पर उदारवादी तरीके से व्याख्या की जा चुकी है।
यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण व पर्यावरण संतुलन संबंधी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इस मामले में खनन (गैरकानूनी खनन) को रोकने के निर्देश दिए थे। वहीं एमसी मेहता बनाम भारतीय संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन जीने के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के मौलिक अधिकार के अंग के रूप में माना था।
अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। पीए जैकब बनाम कोट्टायम पुलिस अधीक्षक के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि भारतीय संविधान में अनु्च्छेद 19 (1) (a) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी भी नागरिक को तेज आवाज में लाउड स्पीकर व अन्य शोर-शराबा करने वाले उपकरण आदि बजाने की इजाजत नहीं देता है। इस प्रकार अब शोर-शराबे, लाउड स्पीकर आदि से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को अनु्च्छेद 19 (1) (a) के तहत नियंत्रित किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि मूल संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मुख्य रुप से 7 मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया था, लेकिन 44 वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार को कानूनी अधिकार बना दिया गया, जिससे मौलिक अधिकारों की संख्या 6 रह गयी । मौलिक अधिकारों के संबंध विधि बनाने का अधिकार केवल संसद को दिया गया है।
अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
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अनुच्छेद 21 में स्पष्ट किया गया है कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को अपनाएं बिना व्यक्ति को उसके जीवन का अधिकार या उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नहीं छीना जा सकता है। कार्यपालिका को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करें तथा जब तक कि वह कानूनन अपराधी न माना जाए।