सड़क हादसे को कम करने के लिए पहला कदम जो उठाया जाना चाहिए, वह है मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन। यहां प्रतिवर्ष होनेवाले सड़क हादसों की संख्या लगभग 5 लाख है। वर्ष 2015 में भारत में सड़क हादसों में 1,46,133 लोगों की मृत्यु हुई थी। महाराष्ट्र वह राज्य है जहां 63,805 सड़क हादसे हुए तथा इनमें 13,212 लोगों की मृत्यु हुई। इन सड़क हादसों के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं होता। सड़क हादसों के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं- सड़क की संरचना में कमी, सड़क की बुरी हालत तथा रख-रखाव में कमी, चालक के व्यवहार में कमी तथा वाहनों में सुरक्षा विशेषताओं का अभाव। चालकों में अनुशासन की कमी तथा वाहन अधिनियम का उल्लंघन भी एक प्रमुख कारक है जो हादसों के लिए परिस्थितियां उत्पन्न करता है। ये सभी कारक एक-दूसरे के पूरक हैं और सड़क हादसों के लिए सम्मिलित रूप से परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं।
इसके अलावा आय का बढ़ता स्तर, सड़क यातायात पर अत्यधिक निर्भरता, सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की बुरी हालत तथा शहरों में फुटपाथ की खराब हालत आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिससे प्रतिदिन कुछ न कुछ हादसे एवं हताहत होती ही रहती हैं। इन मुद्दों तथा सड़क एवं यातायात सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है तथा ये आसानी से इन सड़क हादसों का इलजाम एक-दूसरे पर मढ़ते हैं।
मोटरयान अधिनियम, 1986 केंद्रीय कानून हैं। परंतु इस कानून को लागू करनेवाली एजेंसी, पुलिस तथा आरटीओ आदि राज्य सरकारों के अंतर्गत आते हैं। इन कानूनों के क्रियान्वयन यथा यातायात उल्लंघन का जनता द्वारा विरोध किया जाता है और तब आम जनता एवं पुलिस के बीच झड़प भी हो जाती है जहां पुलिस को कोई राजनीतिक मदद नहीं मिलती। आजकल चौड़ी सड़कों पर बड़ी गाडि़यों को बेतरतीब ढंग से चलायी जाती है जिससे बड़े-बड़े सड़क हादसे होते रहते हैं।
सड़क हादसों को रोकने हेतु किए जाने वाले प्रयास
अब प्रश्न यह उठता है कि सड़क हादसों को कैसे रोका जाए और इनसे होने वाली मौतों की संख्या में किस प्रकार कमी की जाए। इसके लिए सबसे पहले तो यह जरूरी है कि दुर्घटना के लिए जिम्मेदार लोग एक-दूसरे को दोष देना बंद करे। ऑटो निर्माताओं को चाहिए कि वे ऑटो निर्माण के दौरान वैश्विक सुरक्षा मानकों का ध्यान रखें और चालक के व्यवहार तथा सड़क निर्माण को दोष न दें। पुलिस को चाहिए कि वे कानून का कार्यान्वयन सही ढंग से करें न कि आरटीओ को बिना किसी जांच के लाइसेंस देने का दोषारोपण करें।
नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया तथा पीएचडी को चाहिए कि सड़क निर्माण के बेहतर डिजाइन का उपयोग करें तथा शहरों को चाहिए कि यातायात संबंधी अवसंरचना में सुधार लाने का प्रयास करें तथा निजी वाहनों के प्रयोग पर लगाम कसें। वाहन चालकों के लिए जरूरी है कि वे ट्रैफिक नियमों का पालन करें, हेल्मेट का उपयोग करें, सीट बेल्ट लगाएं तथा भ्रष्ट कर्मचारियों तथा शहरों के ट्रैफिक को दोष न दें।
मोटर वेहिकल संशोधन अधिनियम 2017 की चर्चा जोरों पर है। सांसदों को चाहिए कि जहां तक संभव हो सके अपने स्तर से बेहतर प्रयास करें, अधिनियम को पारित करें तथा उसमें सड़क सुरक्षा से जुड़े उचित प्रावधानों को लाएं। दंड संबंधी प्रावधान को भी कठोर बनाया जाए। वर्तमान में यातायात नियमों के उललंघन के लिए जो आर्थिक दंड निश्चित किए गए हैं वह 1988 का ही है। इसमें बदलाव लाकर इसे और प्रभावशाली बनाना भी जरूरी है। 1988 से लेकर अबतक पेट्रोल की कीमत में 1988 से 10 गुणा वृद्धि हो चुकी है। अतः आर्थिक दंड में भी 5 गुणा वृद्धि की जानी चाहिए। वाहन तेज चलाना दुघर्टना का एक मुख्य कारण है।