वैश्विक स्तर पर रोहिंग्या समुदाय का पलायन एक गहरे संकट में बदल गया है। म्यांमार (पूर्व में यूनियन ऑफ बर्मा) से लाखों की संख्या में रोहिंग्या लोग पलायन कर गए हैं। म्यांमार में इस समुदाय की सर्वाधिक जनसंख्या आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र अराकान (रखाईन) से आती है।
रोहिंग्याओं के खिलाफ म्यांमार के सैन्य अभियान से अशांति ने भयावह रूप ले लिया। इस कार्रवाई में हुई हिंसा की भयावहता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त जायद रा’आद अल हुसैन ने कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुए अत्याचार और उनके घरों को जलाने के तरीकों से ये स्पष्ट होता है कि ये नस्लीय नरसंहार का मामला है। यानी रोहिंग्या मुसलमानों को उनकी इसी पहचान की वजह से उन्हें मिटाने की कोशिश की जा रही है। ध्यातव्य है कि म्यांमार बौद्ध धर्म बहुल देश है, जहां पर रोहिंग्या अल्पसंख्यक हैं, क्योंकि रखाईन क्षेत्र में रहने वाला यह जन समूह इस्लाम धर्म को मानने वाला है।
यह समुदाय उपनिवेश के दौरान ब्रिटिश भारत से जीवन की नई संभावनाओं के लिए, जीविकोपार्जन हेतु और बाद में बांग्लादेश स्वतन्त्रता संघर्ष के समय बांग्लादेश से युद्ध की स्थितियों के दर्द से बचने के लिए पलायन कर बर्मा (अब म्यांमार) में बस गए थे। रोहिंग्या पलायन पर दृष्टिपात करें तो वर्ष 2017 में ही म्यांमार से पलायन कर बांग्लादेश में शरण लेने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की अनुमानित संख्या चार लाख तक पहुंच गई है। जिसमें पहले के शरणार्थियों की संख्या भी मिला ली जाए तो यह लगभग सात लाख है। यही नहीं भारत में भी रोहिंग्या शरणार्थियों की लगभग चालीस हजार जनसंख्या निवासरत है, जिसमें जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा संख्या में लगभग 10,000 रोहिंग्या मुस्लिम हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 14,000 रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के रूप से भारत में रह रहे हैं। इसके अलावा भी रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या सऊदी अरब में चार लाख, पाकिस्तान में दो लाख, थाईलैंड में एक लाख अनुमानित की गई है, साथ ही मलेशिया, इन्डोनेशिया और नेपाल में भी इनकी संख्या लाखों में अनुमानित की जा रही है।
रोहिंग्या शरणार्थियों के मानवाधिकार को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग ने कहा, म्यांमार में हिंसा के कारण बांग्लादेश पहुंचे रोहिंग्या शरणार्थियों को मदद की सख्त जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों का कहना है कि म्यांमार से सुरक्षा की तलाश में बांग्लादेश पहुंचे करीब डेढ़ लाख रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बनाए गए शिविरों की क्षमता पर बहुत असर पड़ रहा है।
हालांकि अब भी म्यांमार सरकार रखाईन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति का जायजा लेने के लिए संयुक्त राष्ट्र और अन्य अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों को पहुंचने की इजाजत नहीं दे रही है। इस समय जब रोहिंग्या संकट बढ़ता जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर म्यांमार की आलोचना हो रही है साथ ही यह दबाव बनाया जा रहा है कि उसे अपने इन रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस अपने देश में निर्भयपूर्वक रहने की स्थितियां बनानी होगी तो भारत में भी नरेंद्र मोदी सरकार अब म्यांमार से अवैध तरीके से आए रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने की तैयारी में जुटी है।
इसी चिंता ने वैश्विक जगत का ध्यान इस संकट की तरफ दिलाया है। यह सही है कि उग्रवाद को समर्थन नहीं दिया जा सकता किन्तु कुछ व्यक्तियों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि संबन्धित समुदाय ही पूरा का पूरा उग्रवादी है या आतंकवादी है और न ही इस बात का समर्थन किया जा सकता है कि सत्ता पूरे समुदाय में सैन्य अभियान के द्वारा हिंसा फैलाए, उस पर भी जब जनता स्थानीय हो जिससे देश की संप्रभुता को भी कोई खतरा नहीं है।