हाल ही में भारत को ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में सदस्यता प्रदान की गई, इससे पहले दिसंबर 2017 में भारत को वासेनार व्यवस्था में शामिल कर लिया गया है। इससे पहले 27 जून, 2016 को भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में शामिल किया गया था। एमसीटीआर के बाद वासेनार व्यवस्था में भारतीय प्रवेश मूलतः भारत के बढ़ते वैश्विक कद को ही प्रतिबिंबित करता है। आगे उम्मीद की जा रही है कि भारत को जल्द ही सामूहिक विनाश के हथियारों से सम्बंधित अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था (International export control regime) के नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह में भी शामिल कर लिया जायेगा। भारत वर्ष 2001 से ही अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था के तहत आने वाले चार समझौतों में शामिल होने की मांग करता रहा है।
अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था क्या है?
6 अगस्त, 1945 को जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया, उस समय सारी दुनिया ने व्यापक विनाश के हथियारों की भयावहता को देखा। समय बीतने के साथ कई अन्य देशों ने भी परमाणु अस्त्र और उसका प्रयोग करने हेतु मिसाइल तकनीक अर्जित कर ली। वर्तमान में परमाणु अस्त्र और संबंधित मिसाइल तकनीक कुल नौ देशों-संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूके, भारत, चीन, पाकिस्तान, फ्रांस, इस्राइल और उत्तरी कोरिया के पास है। इसके अलावा विश्व के कई देश परमाणु शक्ति और मिसाइल तकनीक अर्जित करने की परोक्ष मंशा रखते हैं ईरान इनमें प्रमुख है।
आतंकवाद भी एक बड़ा खतरा बन के उभरा है, आतंकवादी समूहों की वैश्विक उपस्थिति के दौर में सामूहिक विनाश के हथियारों का प्रसार अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए पहले से अधिक गंभीर चिंता का विषय है। आज सामूहिक विनाश के हथियारों (weapon of mass destruction) से विश्व को पहले से अधिक खतरा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी प्रस्ताव संख्या 1540 में नाभिकीय, रासायनिक या जैविक हथियारों और उनके प्रयोग के साधनों के प्रसार को विश्व शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरा बताया था।
ऐसे में विश्व समुदाय ने एक कुछ संधियों के माध्यम से एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया है जो सामूहिक विनाश के हथियारों के आयात निर्यात पर नियंत्रण रख सके। इसे ही अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था, के तौर पर जाना जाता है।
दरअसल, अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था, विश्व में विभिन्न प्रकार के सामूहिक विनाश के हथियारों के आयात - निर्यात को नियंत्रित करने के लिएचार समझौतों का समूह हैं जिसमें शामिल हैं: पारंपरिक हथियारों पर नियंत्रण और इससे जुड़ी तकनीक व कारोबार पर निगरानी व सहयोग से सम्बंधित वासेनार व्यवस्था, रसायनिक व जैविक हथियारों पर नियंत्रण के लिए बनाया गया आस्ट्रेलिया समूह, उच्च स्तरीय प्रक्षेपास्त्र (Missile) व ड्रोनों के आयत निर्यात उनसे सम्बन्धित प्रौद्योगिकी के प्रसार के नियंत्रण से जुड़ा हुआ प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था और परमाणु ऊर्जा व हथियार से जुड़ी तकनीक पर नियंत्रण के लिए नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह। इनचारों व्यवस्थाओं से जुड़े देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियम तैयार करते हैं लेकिन उनका पालन हर देश को करना पड़ता है।
प्रमुख निर्यात नियंत्रण व्यवस्था
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime - MTCR)
गठनः 1987
सदस्य देशः 35 (चीन तथा पाकिस्तान इसके सदस्य नहीं हैं, भारत इसका नवीनतम सदस्य है इसे 2016 में सदस्यता मिली है)
उद्देश्यः इसका उद्देश्य उच्च स्तरीय प्रक्षेपास्त्र (Missile) व ड्रोनों के आयात निर्यात, उनसे सम्बन्धित प्रौद्योगिकी के प्रसार को नियंत्रित करना है।
प्रमुख बिंदु
वासेनार व्यवस्था (Waasenaar arrangement - WA)
गठनः 1996
सदस्य देशः 42 (चीन नहीं है, भारत इसका नवीनतम सदस्य है इसे दिसंबर 2017 में सदस्यता मिली है)
उद्देश्यः पारंपरिक हथियारों के प्रसार पर नियंत्रण व निगरानी रखना
प्रमुख बिंदु
आस्ट्रेलिया समूह (Australia Group-AG)
गठनः 1985
सदस्य देशः 43 (चीन नहीं है)
उद्देश्यः रसायनिक व जैविक हथियारों पर नियंत्रण
प्रमुख बिंदु
नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group - NSG)
गठनः 1974 (भारत के परमाणु परीक्षण फ्स्माइलिंग बुद्धा' 1974 की प्रतिक्रिया स्वरूप)
सदस्य देशः 48 (भारत व पाकिस्तान नहीं हैं, चीन है, अर्जेंटीना इसका नवीनतम सदस्य है जो 2015 में बना था।)
उद्देश्यः इसका उद्देश्य न्यूक्लियर हथियारों और उनके उत्पादन में इस्तेमाल हो सकने वाली सामग्री, तकनीक एवं उपकरणों के निर्यात को नियंत्रित करना है।
प्रमुख बिंदु