विगत कई दशकों से दक्षिण एवं पूर्वी चीन सागर में चीन तथा अन्य पड़ोसी राष्ट्रों यथा जापान, मलेशिया, वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया व ताइवान के मध्य भू-भागीय तथा सामुद्रिक संप्रभुता के लिए संघर्ष चल रहा है। दक्षिण चीन सागर में सैकड़ों द्वीप स्थित हैं जिनके प्रायः एक से अधिक नाम हैं। दावेदार देश इन द्वीपों के लिए अपनी भाषा के नाम आधिकारिक तौर पर प्रयोग करते हैं। आम तौर पर विवादित द्वीपों के दो से तीन नाम हैं जबकि कई बार कुछ द्वीपों के नाम पांच से छः तक हो जातें हैं।
इनमें कुछ द्वीप जलमग्न हैं जिन्हें ऊंचा करने का कार्य चीन सहित अन्य पड़ोसी देश कर रहे हैं जिनमें वियतनाम प्रमुख है। हाल ही में चीन द्वारा वूडी (Woody) द्वीप पर सैन्य हवाई अड्डा निर्मित करने एवं उसकी लम्बाई बढाने से कई दक्षिण एशियाई राष्ट्र आशंकित है। दक्षिण चीन सागर के अधिकांश क्षेत्र पर चीन अपना परम्परागत अधिकार मानता रहा है इसके लिए वह ‘नाइन डैश लाइन्स' को सैद्धांतिक तौर पर प्रस्तुत करता रहा है जो 1947 में राष्ट्रवादी चीन सरकार द्वारा प्रकाशित ‘दक्षिण चीन सागर के द्वीप’ नामक मानचित्र में इंगित है मूलरूप से इस मानचित्र में ग्यारह डैश्ड लाइने थीं जिनमें से दो को बाद में साम्यवादी चीन ने समाप्त कर दिया था।
प्रमुख विवादित द्वीप समूह इस क्षेत्र के कई द्वीपीय भू-भागों अथवा द्वीपों के निकट समुद्री संसाधनों पर नियंत्रण एवं विदोहन हेतु चीन के साथ कई राष्ट्र द्वीपक्षीय टकराव की स्थिति में है। जैसे वियतनाम और चीन के मध्य ‘पारासेल' एवं स्पार्टली द्वीप समूह, फिलीपींस एवं चीन के मध्य स्कारबोरो शोल द्वीप तथा चीन व जापान के मध्य सेंकाकू द्वीप विवाद का कारण है। इसके अतिरिक्त मलेशिया, इंडोनेशिया, ताइवान तथा ब्रुनेई भी द्वीपीय भू-भागो तथा समुद्री संसाधनों हेतु चीन के साथ संघर्षरत हैं। चीन और वियतनाम के मध्य स्प्राटली द्वीप तथा पारासेल द्वीप के लिए गंभीर विवाद रहा है। 2014 में दोनों देशों के मध्य सूक्ष्म नौसैनिक टकराव हुआ। चीन और वियतनाम के मध्य पारासेल द्वीप विवाद उस समय और तीव्र हो गया जब चीनी नौसैनिक जहाजों ने एक वियतनामी नौका को समुद्र में डुबो दिया। वियतनाम का यह आरोप भी है कि प्रायः विवादित पारासेल द्वीप के समीप उसके तेल उत्खनन प्लेटफार्म के पास चीनी गश्ती नौसैनिक बेड़े अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। साथ ही कई बार चीनी नौसैनिक बेड़ों द्वारा वियतनामी नौकाओं का पीछा किया भी जाना भी तनाव का कारण रहा है। स्प्राटली द्वीप समूह पर चीन के साथ वियतनाम, मलेशिया, ताइवान, फिलीपींस तथा ब्रुनेई की संयुक्त तकरार चलती रहती है, इस द्वीप समूह में 14 प्रमुख द्वीप तथा लगभग 100 रीफ हैं जो की 4-25 लाख वर्ग किलोमीटर सागरीय क्षेत्र में फैले हुए हैं। यहां खनिज तेल के बड़े भंडार हैं तथा प्रमुख मत्स्य उत्पादन केंद्र हैं। इसी प्रकार चीन, फिलीपिंस व ताइवान के मध्य स्कारबोरो शोल द्वीप को लेकर विवाद बना हुआ है यह द्वीप लगभग 150 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2012 में चीन द्वारा इस द्वीप के निकट फिलीपीनी मछुआरों को प्रतिबंधित कर दिया गया था परन्तु 2016 में राष्ट्रपति स्तरीय वार्ता के बाद पुनः फिलीपीनी मछुआरों को इस क्षेत्र में प्रवेश मिल सका। यद्यपि कि तीनों देशों के बीच विवाद अभी भी बना हुआ है। |
चीन में नाइन डैश लाइन्स को ‘ग्रेट सैंड वाल ऑफ चाइना' कहा जाता है। अन्य पडोसी देश चीन के नाइन डैश लाइन्स के तर्क को अंतरराष्ट्रीय संधियों एवं यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सीज (UNCLOS) के विरुद्ध मानते हैं। यही कारण है प्रायः चीन और अन्य देशों के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ध्यातव्य हो कि UNCLOS नियमों के अंतर्गत सागरीय सीमाओं से सम्बंधित सभी प्रकार की बहुपक्षीय सामुद्रिक संधियों को स्वीकार किया गया है। इस कन्वेंशन ने तटीय सीमा से 12 समुद्री मील, 200 समुद्री मील तथा 200 मील की सीमा के पार महाद्वीपीय सागरीय विस्तार के सिद्धांत (कॉन्टिनेंटल शेल्फ थ्योरी) को भी स्वीकृति प्रदान कर रखी है। महाद्वीपीय विस्तार सिद्धांत के अंतर्गत राष्ट्र अपने महाद्वीपीय विस्तार की सागरीय सीमाओं तक संसाधनों का विदोहन कर सकते हैं।
जुलाई 2016 में हेग स्थिति परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) द्वारा चीन के विरुद्ध दिए गए निर्णय से यह मामला विश्व समुदाय के समक्ष प्रकाश में आया। परमानेंट कोर्ट ने निर्णय के अधिकथन में लिखा कि फ्चीन के दक्षिण चीन सागर में स्थित द्वीपों पर अधिकार के एतिहासिक दावे का कोई भी वैधानिक आधार नहीं है और साथ ही चीन ने फिलीपींस के संप्रभु अधिकारों की अवहेलना की है। PCA ने यह भी कहा की बीजिंग के दक्षिण चीन सागर संसाधनों पर भी ऐतिहासिक अधिकार नहीं है चीन द्वारा इस प्रकार के सभी अधिकारों से सम्बंधित दावे अस्वीकार्य होंगे यदि वे UNCLOS द्वारा स्वीकृत ‘एक्सक्लूसिव इकनोमिक जोन’ व्यवस्था के अनुरूप न हों।' यद्यपि फिलीपींस के द्वारा किये गए इस मुकदमे के निर्णय को चीन ने स्वीकार नही किया है। चीन ने यह तर्क दिया है की ट्रिबुनल के निर्णय उस पर बाध्यकारी नहीं हैं जब तक की ये द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से न प्रस्तुत किये जायें। इस पर अमेरिका सहित विश्व समुदाय का दबाव भी चीन को निर्णय मनवाने में सफल न हो सका।