संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के निदेशक डरिक सोलहिम द्वारा भारत को 2018 के पर्यावरण दिवस की वैश्विक मेजबानी सौंपी गई। संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिल्ली सहित अन्य महानगरों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए भारत के प्रयासों को विश्व के लिए अनुकरणीय बताया गया है। 1972 में संयुक्त राष्ट्र में 5 से 16 जून तक विश्व पर्यावरण पर शुरू हुए सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र आम सभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के द्वारा कुछ प्रभावकारी अभियानों को चलाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना हुई थी। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ इसलिए 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष पर्यावरण दिवस के आयोजन की थीम ‘प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति' रखी गई है।
प्लास्टिक प्रदूषण क्या है?
प्लास्टिक प्रदूषण को भूमि पर विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक सामग्री के संचय के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसके अलावा यह हमारी नदियों, महासागरों, नहरों, झीलों आदि को भी प्रदूषित करता है। एक वस्तु के रूप में दुनिया भर में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। मूल रूप से यह एक सिंथेटिक पालिमर है जिसमें कई कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिक होते हैं और जो ज्यादातर ओलेफिन जैसे पेट्रोकेमिकल्स से प्राप्त होते हैं।
प्लास्टिक सामग्री को मुख्य रूप से थर्मोप्लास्टिक और थर्मोसेटिंग पालिमर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इनके अलावा उन्हें बायोडीग्रेडेबल इंजीनियरिंग और प्लास्टोमेट प्लास्टिक के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि वे कई मामलों में अत्यधिक उपयोगी हैं और वैश्विक पालीमर उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि इसका उत्पादन और निपटान पृथ्वी पर सभी जीवन स्वरूपों के लिए एक बड़ा खतरा है। प्लास्टिक आमतौर पर लगभग 500-1000 वर्षों में खराब हो जाती है।
प्रदूषण का कारण