संसद भवन में ‘नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक' (The Comptroller and Auditor General - CAG) द्वारा प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भूजल की अवैध निकासी, बिना अनुमति के पेड़ों की कटाई, अनुपचारित अपशिष्ट जल के निर्वहन (Discharge of Untreated Waste Water) के संबंध में जारी किए गए हरित मानदंडों (Green Norms) का परियोजना के संचालकों द्वारा उल्लंघन किया गया। रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण मंजूरी दिए जाने से पूर्व इन परियोजनाओं के प्रभावों का सही मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है।
पर्यावरण मंत्रलय परियोजनाओं को जिन शर्तों के आधार पर मंजूरी देता है, कंपनियां उनका भी पालन नहीं करती। रिपोर्ट में सरकार की ओर से परियोजनाओं की निगरानी के लिए बेहतर तंत्र नहीं होने की भी बात कही गई है। वर्ष 2008 से 2015 तक 4,534 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। लेकिन स्वयं पर्यावरण मंत्रलय भी इन परियोजनाओं से जुड़ी पर्यावरणीय सुरक्षा की निगरानी करने में असफल रहा है। पर्यावरण मंत्रलय द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई परियोजनाएं जो सामान्य एवं विशिष्ट परिस्थितियों में प्रदान की गई हैं, उसके अंतर्गत ज्यादातर के क्रियान्वयन में निश्चित मानदंडों का उल्लंघन किया गया। इसमें कुछ के परियोजना संचालकों के नाम भी बताए गए हैं, इसमें प्रमुख हैं- ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण' (National Highways Authority of India - NHAI) आदि।
पर्यावरण मंत्रलय द्वारा पर्यावरण के लिए निश्चित मानदंडों का उल्लंघन करने वाले किसी भी कंपनी के विरुद्ध पिछले दो साल के भीतर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई और न ही इन परियोजनाओं पर निगरानी रखने के लिए अपने क्षेत्रीय कार्यालय में कार्य करने वाले किसी अधिकारी को अपदस्थ किया गया। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008-14 के दौरान मंजूर की गई कुल 568 परियोजनाओं की समीक्षा की गई। इनमें से 14 फीसदी योजनाओं को ही निर्धारित समय सीमा यानी 60 दिनों के भीतर मंजूरी मिली, बाकी 86 फीसदी योजनाओं को मंजूरी देने में एक साल या इससे ज्यादा का वक्त लगा। सीएजी के अनुसार इनमें से 25% परियोजनाओं के मामले में पर्यावरण प्रभाव रिपोर्ट सही तरीके से तैयार नहीं की गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण मंत्रलय द्वारा परियोजनाओं को तेजी से स्वीकृति देने के कारण पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। इन परियोजनाओं के क्रियान्वयनकर्ता द्वारा पर्यावरण के लिए आवश्यक कई मूल-भूत बातें जैसे- अपशिष्ट जलों का बिना उपचार किए निर्वहन और परियोजना स्थल के आस-पास के ग्रीन बेल्ट के संबंध में पर्याप्त सजगता आदि का अभाव देखा गया। रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण मंत्रलय वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय नियामक (National Regulator) की नियुक्ति करने में भी असफल रहा है।