जर्मनी के बॉन शहर में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज (UNFCCC) के पक्षकारों के 23वें सम्मलेन (CoP 23) का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने की विश्व व्यापी कोशिशों को आगे बढ़ाने तथा पेरिस संधि को लागू करने पर चर्चा संपन्न हुई। कॉप 23 के आिखरी दिन कई मुद्दों के समाधान से यह उम्मीद थी कि बैठक समय पर समाप्त होगी। हालांकि, वित्तीय मुद्दों से जुड़े 2 विवादों के कारण ऐसा नहीं हो सका, जिसके कारण यह सम्मेलन अंततः 18 नवंबर, 2017 को समाप्त हुआ।
सम्मेलन में विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ 500 से अधिक गैर सरकारी संगठनों के लोग शामिल हुए। ध्यातव्य है कि इस सम्मेलन का आधिकारिक मेजबान देश फिजी था तथा यह फिजी में आयोजित न होकर जर्मनी के बॉन शहर में आयोजित हुआ। जलवायु सम्मेलन की मेजबानी आम तौर पर अध्यक्ष देश ही करता है। इस बार किसी एशियाई देश को चुना जाना था। फिजी को अध्यक्षता देने का फैसला इसलिए किया गया ताकि दुनिया का ध्यान जलवायु परिवर्तन के बुरे असर की ओर लाया जा सके। लेकिन फिजी जैसे छोटे से देश में इस स्तर पर कॉन्फ्रेंस कराना मुश्किल है। इसी वजह से जर्मनी ने मेजबानी करने की पेशकश की। जलवायु परिवर्तन के लिये संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफसीसीसी का सचिवालय भी बॉन में ही स्थित है। 12 दिवसीय इस सम्मेलन की अध्यक्षता फिजी के प्रधानमन्त्री फ्रैंक बैनिमारामा द्वारा की गई।
प्री-2020 कार्य योजना सम्मेलन के शुरुआती दिनों में पूर्व 2020 जलवायु कार्रवाई से संबंधित एक महत्वपूर्ण विवाद भी उत्पन्न हुआ। यह विवाद विकासशील देशों की चिंताओं पर केंद्रित आपत्तियों से जुड़ा था, कि अमीर देशों ने 2020 तक की अवधि के लिए व्यक्त की गई अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु पर्याप्त प्रयास नहीं किया। ये प्रतिबद्धताएं पेरिस समझौते से अलग हैं, क्योंकि पेरिस समझौता 2020 के बाद लागू होता है। विकासशील देशों की आपत्तियां दो प्रमुख बिन्दुओं पर थीं: पहला, 2020 तक जलवायु वित्त पोषण को प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर देने का वादा, जिसे 2009 में कोपेनहेगन में स्वीकार किया था, को विकसित देशों द्वारा पूरा नहीं किया गया; दूसरा, दोहा संशोधन नामक 2020 तक के लिए क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि, को लागू करने के लिए अभी तक पर्याप्त देशों द्वारा स्वीकृत नहीं किया गया था। उल्लेखनीय है कि प्री-2020 एजेंडा के तहत विकसित देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी अवधि (KP II) की प्रतिबद्धता को अनुमोदित करना है। इसके अंतर्गत विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करनी है और विकासशील देशों को वित्तीय व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है। प्री-2020 कार्ययोजना कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की वित्तीय चुनौतियों को कम करने में मददगार होगी। इससे लोगों का स्वास्थ्य बेहतर होगा, वायु प्रदूषण में कमी आएगी, ऊर्जा सुरक्षा बेहतर होगी और फसलों का उत्पादन बढ़ेगा। सम्मेलन में भारत ने समान विचार रखने वाले देशों के समूह के साथ, विकसित देशों द्वारा प्री-2020 कार्ययोजना के तहत समयबद्ध कार्यवाही की जोरदार मांग की। ध्यातव्य है कि प्री-2020 कार्ययोजना नामक यह एजेंडा नया नहीं है, इस पर वर्ष 2007 से ही चर्चा हो रही है तथा सहमति भी व्यक्त की गई है। पेरिस समझौते के अंतर्गत पोस्ट 2020 अवधि के लिए तेजी से कार्रवाही हुई है, जबकि प्री-2020 से संबंधित कार्ययोजना की गति अभी तक धीमी ही रही है। |
कॉप 23 सम्मेलन मामूली उपलब्धियों के साथ संपन्न हुआ, सम्मेलन में असुरक्षित राष्ट्रों से जुड़ी कुछ समस्याओं का समाधान तो किया गया, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण व बड़े फैसलों को वर्ष 2018 तक के लिए टाल दिया गया। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि कॉप 23 के रूप में जाने वाले 23 वें कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज से किसी बड़े निर्णय की अपेक्षा नहीं थी; इस मीटिंग का लक्ष्य यही था कि पेरिस समझौते के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न देश नियमों और प्रक्रियाओं का मसौदा तैयार करना शुरू कर दें। सीओपी 23, 2015 में संपन्न पेरिस समझौते के बाद हुआ पक्षकारों का दूसरा सम्मेलन था। हालांकि, यह अमेरिका द्वारा इसी वर्ष पेरिस सौदे से वापस हटने की घोषणा के बाद की वार्ता का यह पहला चरण भी था। साथ ही यह किसी छोटे द्वीपीय विकासशील देश (फिजी) द्वारा मेजबान किया जाने वाला पक्षकारों का पहला सम्मेलन भी था।
कॉप-23 में भारतीय पैवेलियन का उद्घाटन केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ- हर्षवर्धन द्वारा किया गया। भारत का प्रतिव्यक्ति उत्सर्जन विश्व औसत का मात्र एक तिहाई है और पूरी दुनिया के कार्बन-डाई-आक्साइड उत्सर्जन में इसका योगदान केवल तीन प्रतिशत है। भारतीय पैवेलियन में अत्याधुनिक तकनीक के जरिये भारत की विरासत, प्रगति, परंपराएं व स्वदेशी प्रौद्योगिकी, आकाक्षाएं और उपलब्धियों की झलक प्रस्तुत की गई। कॉप-23 में भारतीय पवेलियन की थीम थी- ‘वर्तमान का संरक्षण, भविष्य की सुरक्षा' (Conserving Now, Preserving Future)।