वर्तमान समय में सरकार कन्याभ्रूण हत्या को रोकने और समाज में महिलाओं को उनका स्थान दिलाने की हर कोशिश कर रही है।
गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीकी (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अंतर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करने को कानूनन अपराध बताया गया है।
गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 के अंतर्गत गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में करवा सकती है-
आईपीसी की धारा 313 में स्त्री की सहमति के बिना गर्भपात करवाने वाले के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास से भी दंडित किया जा सकता है।
धारा-314 में बताया गया है कि गर्भपात करवाने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा हुए मृत्यु में 10 वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है, और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना लिया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।
धारा-315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात् उसकी मृत्यु कारित करने के आशय से किए गए कार्य से संबंधित यदि कोई अपराध होता है तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को 10 वर्ष की सजा या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।