जंतु शरीर के बाहर किसी कल्चर पात्र में अंड और शुक्राणु के संयोग व इससे जायगोट बनने की प्रक्रिया को इनविट्रोफर्टिलाइजेशन कहते हैं। इसके लिए स्वस्थ्य नर मादा जंतुओं से क्रमशः शुक्राणु और अंडा प्राप्त करते हैं। फिर उपयुक्त दशाओं में संकलित करके उनसे जायगोट उत्पादित करते हैं। कुछ समय तक इन जायगोट का पात्र कल्चर करके तरूण भ्रूण प्राप्त करते हैं। इसे अंततः स्वस्थ्य एवं उपयुक्त मादाओं के गर्भाशय में प्रतिरोपित किया जाता है जिसे भूण प्रतिरोपण या एम्ब्रयो ट्रांस्पलांटेशन कहा जाता है। यह तकनीक नई नहीं है, लेकिन इस समय भारत में किराये के कोख के बढ़ते चलन के मद्देनजर इनविट्रोफर्टिलाइजेशन विशेष चर्चा में है। वैसे भारत में कानून इनविट्रोफर्टिलाइजेशन पद्धति से बच्चों को पैदा करने की इजाजत नहीं देता है। दूसरी ओर यह समस्या इसलिए भी गंभीर है कि भारत में किराये की कोख का इस्तेमाल भारतीयों से कहीं अधिक विदेशी कर रहे हैं।
दरअसल भारत में इनविट्रोे फर्टिलाइजेशन की पद्धति से औलाद प्राप्त करना अमेरिका और यूरोप से सस्ता एवं सुरक्षित है। इस तरीके से बच्चे प्राप्त करना भारत के मुबंई और गुजरात में उद्योग का दर्जा हासिल कर चुका है और इसका फैलाव अन्य प्रांतों में हो रहा है। फिलहाल भारत में किराये की कोख का बाजार एक हजार करोड़ से लेकर पांच हजार करोड़ रुपयों के बीच है। समस्या यह है कि किसी स्पष्ट कानून के अभाव में विदेशी भारत आकर इनविट्रोफर्टिलाइजेशन तकनीकी के अंतगंत किराये की कोख से बच्चों का सुख तो प्राप्त कर लेते हैं, किन्तु भारतीय कानून की उलझनों की वजह से वे अपने बच्चों को अपने देश नहीं ले जा पाते हैं। सबसे बड़ी परेशानी बच्चों की नागरिकता को लेकर है। इनविट्रोफार्टिलाइजेशन की पद्धति से पैदा बच्चे की नागरिकता को रेखांकित या परिभाषित करना बेहद मुश्किल होता है। इसके कारण बच्चे का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।