डीएनए फिंगर प्रिंट जैव तकनीक का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसकी सहायता से किसी बच्चे से संबंधित पैतृक विकार को समाप्त करना, अपराधी को पकड़ना, करोड़ों वर्ष पूर्व की घटनाओं का पता लगाना संभव हुआ है। भारत में इस तकनीक को 1989 में मान्यता मिली। इससे संबंधित भारत का एकमात्र शोध संस्थान सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी केंद्र हैदराबाद में स्थित है। बीजों के मामलों में किसानों के साथ धोखाधड़ी न हो, इसके लिए केंद्र सरकार ने बीज विधेयक में संशोधन के साथ ही डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक को देश के अधिक से अधिक स्थानों पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है।
कृषि मंत्रलयके अनुसार बीजों के डीएनए फिंगर प्रिंट की तकनीक अभी कुछ चुनिंदा लैब और विश्व विद्यालयों में ही उपलब्ध है। इसका विस्तार करने के लिए शीघ्र ही प्रयास शुरू किये जायेंगे। इस तकनीक के तहत बढि़या गुणवत्ता वाले बीजों के फिंगर प्रिंट्स लेकर डाटा बैंक तैयार किया जाता है। यदि किसी भी बीज की गुणवत्ता जांच करनी हो तो उसके फिंगर प्रिंट का डाटा बैंक से मिलान किया जाता है। जांच के नतीजे अमूमन तीन दिन में मिल जाते हैं। किसानों को नकली और घटिया क्वॉलिटी के बीजों से मुक्ति दिलाने के लिए केन्द्र सरकार ने बीज विधेयक में संशोधन का भी फैसला किया है।