1. औषधियों के निर्माणः जैव तकनीक ने औषधि उत्पादन के क्षेत्र में एक क्रांति-सी ला दी है। सर्वप्रथम 1982 में इस प्रक्रिया द्वारा इन्सुलिन को प्राप्त करने में सफलता मिली, जिसका व्यापारिक नाम ह्यूमलिन रखा गया। इसने मधुमेह रोगियों के लिए वरदान-सा काम किया है। शरीर में बनने वाले हॉर्मोन, अन्य रोग-प्रतिरोधी प्रतिजैविक प्रोटीन (यथा-इंटरफेरॉन) तथा टीके की उत्तम गुणवत्ता वाले उत्पादन के लिए विशिष्ट रसायनों की प्राप्ति बहुत कम खर्च पर इस तकनीक की प्रगति के कारण संभव हो सकी है।
2. चिकित्सा क्षेत्रः जीन (Genes) की मरम्मत कर रोगों की रोकथाम में जीन चिकित्सा (Gene-Therapy) तथा संतान के आनुवंशिक गुणों को सुधारने तथा उसके दोषों को दूर करने में जीन इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) का उपयोग सुजननिकी (Eugenics) तथा जराविज्ञान (Gerontology) के लिए प्रभावी साबित हुआ है। भ्रूण प्रतिरोधण की तकनीक ने पशुओं की अच्छी प्रजातियों की तेजी से वृद्धि की है तथा अनेक रोगों का सफल इलाज किया है। कृत्रिम प्रजनन द्वारा परखनली शिशु (Test Tube Baby) का विकास भी जैव प्रौद्योगिकी के कारण ही संभव हो सका है।
3. पशुधन संवर्द्धनः जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न विद्याओं, यथा-भ्रूण स्थानांतरण, परखनली निषेचन, भ्रूण परिवर्द्धन, किण्वन आदि द्वारा पालतू पशुओं की दशा में कई तरह के सुधार लाये जा रहे हैं। बी॰एस॰टी॰ (B.S.T.) एक ऐसा कृत्रिम हॉर्मोन है, जो गाय अथवा भैंस के दूध की मात्र को बढ़ा देता है।
4. खाद्य सामग्री, ईंधन तथा रसायन उद्योगः जैव प्रतिकारकों (Bio-Reactors) के प्रयोग से बहुत थोड़े समय में कम लागत तथा कम श्रम द्वारा पौष्टिक एवं परिष्कृत खाद्य सामग्रियों का उत्पादन संभव हो सका है। जैव प्रौद्योगिकी द्वारा शैवाल (Algae) एवं जीवाणुओं (Bacteria) में मूलभूत परिवर्तन करके उन्हें संवर्द्धित तथा परिष्कृत करने में मदद मिली है। इससे पौष्टिक भोज्य पदार्थों तथा शक्तिशाली औषधियों के उत्पादन में भी मदद मिलती है। किण्वन (Fermentation) प्रक्रिया द्वारा अनेक रसायनों, ईंधनों आदि के उत्पादन में सुधार लाया जा सका है।
5. खेती-बागवानी एवं वन विकासः जैव प्रौद्योगिकी द्वारा अब किसी पौधे में नये तथा उपयोगी गुणों को कुछ ही समय में उत्पन्न करना संभव हो गया है। इससे विभिन्न पौधों के हाइब्रिड (Hybrids) भी तैयार किये जा रहे हैं। उदाहरणार्थ, जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर सनबीन (Sunbean) नामक विलक्षण गुणों वाले एक पौधे का विकास फ्रेंचबीन (Frenchbean) तथा सूरजमुखी (Sunflower) दोनों के जीनों को मिलाकर किया गया है। इसी प्रकार, पौधे की प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन क्षमता को बढ़ाकर अधिकाधिक उत्पादकता प्राप्त किया जा सकता है। फसलों में किसी खास प्रोटीन की मात्र में वृद्धि करना भी उससे संबंधित जीनों की नियंत्रण क्षमता में परिवर्तन द्वारा संभव हो सका है।
6. पर्यावरण संरक्षणः जैव रासायनिक खनन एवं औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों के उपचार की जैव प्रौद्योगिकीय प्रणालियां पर्यावरण संरक्षण में काफी मददगार साबित हुई हैं। खनिजों से धातुओं के निष्कर्षण (Extraction) में अयस्कों (Ores) को उपयुक्त घुलनशील स्वरूप प्रदान करने के लिए अनेक प्रकार के जीवाणुओं का प्रयोग किया जाता है। यह प्रक्रिया पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। खनिज तेलों एवं पेट्रोलियम के ड्डोतों से तेल की अधिक प्राप्ति में अनेक सूक्ष्म जीवाणु काफी कारगर साबित हुए हैं।
7. जैव प्रौद्योगिकी कोषः भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और ऑस्टेªलिया के शिक्षा विज्ञान विभाग के बीच हुए समझौते के तहत भारत-ऑस्टेªलिया जैव प्रौद्योगिकी कोष की स्थापना की गई है। कोष के लिए ऑस्टेªलिया सरकार ने 60 लाख ऑस्टेªलियाई डॉलर दिए हैं और पांच वर्षों में इतना ही अनुदान भारत देगा। कोष का समग्र उद्देश्य अनुसंधान गतिविधियाेंं को बढ़ावा देने में सहयोग करना है, जो भारत और ऑस्टेªलिया में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को मजबूत बनाने में पूरक का काम करेंगी। यह भारत और ऑस्टेªलिया के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वैज्ञानिकों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग में सहायता करेगा ताकि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के क्षेत्र में दोनों देशों का भला हो सके। पहले दौर में प्राथमिकता के जिन क्षेत्रें की पहचान की गई है, उनमें बायोमेडिकल उपकरण, स्टेम सेल, टीके, चिकित्सकीय निदान, ट्रांसजेनिक फसलें, न्यूट्रास्यूटिकल्स और खाद्य पदार्थ और बायोरिमेडिएशन शामिल हैं।
8. जैव डीजल परियोजनाः जटरोफा यानी रतनजोत से देश में डीजल तैयार करने के लिए सरकार ने 1430 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी प्रदान की है और परियोजना का क्रियान्वयन कृषि मंत्रलय की संस्था नेशनल ऑयलसीड एवं वेजीटेबल ऑयल डेवलपमेन्ट बोर्ड द्वारा किया जाएगा। रतनजोत के बीज से प्राप्त होने वाले जैव डीजल को मौजूदा डीजल में मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून तथा आईआईटी, दिल्ली, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में रतनजोत की खेती के फील्ड ट्रायल किए गए हैं जो सफल रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर में एक पायलेट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। देश की जलवायु के हिसाब से इसकी कुछ किस्मों की फसल के लिए चयनित किया गयाहै। बीजों के विपणन का जिम्मा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद को सौंपा गया है।
जैव प्रौद्योगिकी पार्क
जैव प्रौद्योगिकी पार्क का उद्देश्य एक जैव प्रौद्योगिकी औद्योगिक क्लस्टर के निर्माण के माध्यम से उत्पाद विकास और नवाचार को सरल बनाना और अनुसंधान तथा नवाचार में सशक्त आधार रखने वाले जैव प्रौद्योगिकीविदों और उद्यमियों को तैयार करना है। केन्द्र और राज्य सरकार, दोनों सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी पार्कों, इन्क्यूबेटरों की स्थापना के साथ-साथ प्रायोगिक परियोजनाओं के द्वारा देश में जैव प्रौद्योगिकी गतिविधियों को बढ़ावा देने का भरपूर प्रयास कर रही हैं। यह देश में जैव प्रौद्योगिकी के व्यावसायिक विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है जिससे नए उद्यामों को प्रोत्साहन और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की स्टार्टअप कंपनियों को बल प्रदान किया जा सके।