कार्यात्मक एवं संरचनात्मक जीनोमिक्स
जंतु जीव-प्रौद्योगिकी
जैव सूचना प्रणाली
जैव-विविधता एवं पर्यावरण
अनुसंधान एवं उपयोग
जैव प्रौद्योगिकी से बीमारियों और कीटों की प्रतिरोधी प्रजातियों के जरिए फसल को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करने, रासायनिक तत्वों के इस्तेमाल में कमी लाने और फसली पौधों में दबाव सहने की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है। इस प्रकार अनुत्पादक भूमि पर भी उत्पादक खेती संभव हो सकती है। इससे एक तरफ पर्यावरणीय घटकों से होने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सकता है और दूसरी तरफ फलों और सब्जियों को संरक्षित रखने की अवधि बढ़ाई जा सकती है। कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए आरएफएलजी पर आधारित आनुवांशिकी अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अनुसंधान के महत्व को देखते हुए जैव प्रौद्योगिकी विभाग के चावल, सरसों, अरहर, गेहूं, कपास आदि फसलों पर अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। चौलाई से ज्यादा लाइसिन और सल्फरयुक्त एमीनो अम्ल वाले प्रोटीन का कोड विकसित तथा संश्लेषित किया गया है, जिससे कि खाद्यान्नों में पोषक तत्व बढ़ाए जा सके और बीजों के भंडारण से संबद्ध प्रोटीन के जीनों की कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जा सके। नियोमाइसिन, फास्फोट्रांसफेरेज-प्प् मार्कर जीन में एग्रो बैक्टीरियम के आनुवांशिक तत्वों का उपयोग कर उड़द की बेहतर किस्म विकसित की गयी है।
जैव उर्वरक
जैव उर्वरक से तात्पर्य है ऐसे सूक्ष्म सजीव जीव जीवाणु जो पौधों के उपयोग के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराए। जैव उर्वरक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य नाइट्रोजन उपलब्धता के संदर्भ में है क्योंकि वह वायुमंडल से मुक्त नाइट्रोजन को ग्रहण करके पोषक पदार्थ का निर्माण करता है, जिसका उपयोग पौधे अपनी वृद्धि के लिए करते हैं। भारत में दो प्रमुख जैव उर्वरकों का इस्तेमाल होता है, ये हैं- राइजोबियम और नील हरित शैवाल। राइजोबियम, एजोला, एजोस्पिरिलम, लाइपोफेरम, माइकोराइजा, स्वतंत्र जीवाणु आदि जैव उर्वरक के घटक हैं। राइजोनियम ‘लेग्मूमिनस’ पौधों की जड़ों में गांठ बनाता है तथा वातावरण में मुक्त नाइट्रोजन कोग्रहण कर पोषक पदार्थ का निर्माण करता है।
एजोला तीव्र गति से विकसित होने वाली ‘फर्न’ की प्रजाति है, जो पानी पर तैरती रहती है। माइकोराइजा के द्वारा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण से पौधों को पोषक पदार्थों की आपूर्ति होती है। एजेटोबैक्टर, बेसिलस, पालीमिक्सा आदि स्वतंत्र जीवाणु गेहूं, चावल, फल आदि की फसलों को पोषक पदार्थ उपलब्ध कराते हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने जैव उर्वरक पर ‘टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट एंड डेमोस्ट्रेशन परियोजना’ शुरू की है। ‘ब्लू-ग्रीन-एल्गी परियोजना’ भी चल रही है, जिसका उद्देश्य सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास आधार, शैवालीय जैव उर्वरक के वृहत-स्तरीय अनुप्रयोग के लिए निर्मित करना है।
जैव-कीटनाशक
जैव कीटनाशक तथा जैव रोग नाशक गैर-कारसाइनोजेनिक है। जैव कीटनाशक का मुख्य तत्व बैसिलस थ्यूरिन्जाइएन्सिस है। जैवनाशी के रूप में वाइरसों, बैक्टीरियाओं, कवकों, प्रोटोजोओं एवं चिंचडि़यों का उपयोग किया जाता है। जैविक नियंत्रण का उपयोग मुख्यतः कपास, तिलहन, गन्ना, दलहन तथा फलों एवं सब्जियों के पौधों में होने वाले रोगों उन पर कीटों के आक्रमण से बचाव के लिए किया जा रहा है। जैव कीटनाशकों के व्यापकीकरण को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से दो केंद्रों टीएनएयू और एमकेएनयू में दो जैव नियंत्रण प्रायोगिक संयंत्र लगाए गए हैं।
जंतु जैव प्रौद्योगिकी
भारत में जैव-प्रौद्योगिकी ने पशुओं के नए नस्ल विकसित करने में, नस्ल सुधार में तथा पशुओं के स्वास्थ्य सुधार में विशेष योगदान दिया है। शारीरिक क्रिया प्रणाली में सुधार तथा जीन-प्रत्यारोपण प्रणाली प्रमुख पद्धतियां हैं। भ्रूण हस्तांतरण के दौरान भ्रूण के लिंग को जानने के लिए डी-एन- मार्क्स विकसित किए गए हैं जिसे उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित किया गया है। भ्रूण के लिंग को तय करने का कार्य विशिष्ट बैलों के समूह पर किया गया है। ओपन न्यूक्लिअस ब्रीडिंग के अंतर्गत नर बछड़ों का आनुवांशिक मानवीकरण किया गया है, जो राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रमों के लिए उत्तम शुक्राणु प्रदान करेंगे।
जैव प्रौद्योगिकी सूचना नेटवर्क
जैव प्रौद्योगिकी के सभी पक्षों के बारे में नवीनतम जानकारी की बढ़ती जरूरतें पूरी करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने जैव प्रौद्योगिकी सूचना नेटवर्क निर्मित किया है। यह नेटवर्क शोधकर्ताओं और उत्पादक गतिविधियों को समन्वित सूचना प्रदान करता है। इनमें जैविक आंकड़ों का विश्लेषण, प्रकाशित दस्तावेजों की ब्योरेवार सूचना, आणविक, मॉडलिंग तथा सिमुलेशन की गणना, प्रधान समस्याओं के लिए सॉफ्रटवेयर विकास, जीनोम मानचित्रीकरण, संरचना कार्य, संरचना आधारित दवा डिजाइन, संरचना को क्रमबद्ध करना, संरचना अनुमान, परमाणु उत्पत्ति, जीन पहचान आदि जैसी सेवाएं शामिल हैं।