राज्यों की विधानपालिका के अन्तर्गत राज्यपाल एवं विधायिका के सदन आते हैं। वर्तमान समय में कुल छह राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है; अर्थात् वहां विधान परिषद भी अवस्थित है। इनमें बिहार, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश शामिल हैं। 22 वर्ष के अंतराल के पश्चात् 2 अप्रैल, 2007 से आंध्र प्रदेश में विधानमडल पुनः द्वि सदनीय हो गया है। ज्ञातव्य है कि आंध्र प्रदेश में विधान परिषद् का सृजन 1957 में किया गया था, किन्तु 1985 में इसे वहां समाप्त कर दिया गया था। किसी राज्य में विधान परिषद की रचना या उसकी समाप्ति राज्य विधानसभा की अनुशंसा पर संसद के एक अधिनियम द्वारा की जा सकती है। विधानसभा के सदस्य प्रत्यक्षतः निर्वाचित होते हैं। विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, जो विधानसभा भंग किये जाने से कम हो सकता है या राष्ट्रीय आपात स्थिति में संसद द्वारा एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।
विधान परिषद राज्य विधानपालिका का उच्च सदन है, जिसके सदस्य कई श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं। इसके सदस्यों में से (क) एक तिहाई विधानसभा द्वारा चुने जाते हैं, (ख) एक-तिहाई स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुने जाते हैं, (ग) कुल सदस्यों की संख्या का बारहवां हिस्सा विश्वविद्यालयीय स्नातकों द्वारा चुना जाता है, (घ) दूसरा बारहवां हिस्सा शिक्षकों द्वारा चुना जाता है तथा (घ) शेष छठा भाग राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है। विधान परिषद की सदस्य संख्या राज्य की विधानसभा की सदस्य संख्या का एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है।
विधायी प्रक्रियाः धन विधेयकों के संबंध में संविधान द्वारा वही प्रक्रिया निर्धारित की गयी है जैसी संसद में है। विधान परिषद किसी धन विधेयक को अधिकतम चौदह दिनों तक रोक कर रख सकती है एवं इस संबंध में उसके द्वारा प्रस्तावित संशोधन विधानसभा के लिए बाध्यकारी नहीं होंगे। जहां तक गैर धन विधेयकों का प्रश्न है, विधान परिषद ऐसे किसी विधेयक को जो विधानसभा से पारित हो कर आता है, तीन महीने से अधिक समय तक नहीं रोक सकती।