स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार द्वारा सामाजिक पुनर्निर्माण हेतु परिवर्तन केा साक्ष्य को रूप में सामाजिक, आर्थिक विकास के प्रारूप को अपनाया गया। भारतीय संविधान में यह स्पष्ट किया गया कि भारत को एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में आधुनिक विकसित समाज बनाना है। इसका अर्थ था कि एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना जहां लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने के साथ-साथ स्वतंत्रता, समानता एवं सामाजिक न्याय प्राप्त हो सके।
इनको प्राप्त करने के लिए संस्थागत क्रियाविधि बनायी गयी और मानवीय तथा भौतिक स्रोतों को संगठित किया गया जिससे संविधान द्वारा निर्देशित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। योजना आयोग द्वारा इस विकास के उद्देश्य के बारे में यह कहा गया कि, ‘‘एक ऐसी विकास की प्रक्रिया को धारण करना जो जीवन स्तर को ऊंचा उठाए एवं व्यक्तियों के लिए धनी बनने और विविधिताओं से परिपूर्ण जीवन जीने के लिए नए अवसर प्रदान कर सके’’।