1990 के दशक में इस आंदोलन ने फिर से जोर पकड़ा, क्योंकि तीव्र विकास हेतु भारत में वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण (LPG) की नीतियों को लागू किया गया। जिससे आर्थिक विकास में असंतुलन आ गया तथा असमानता की खाइर् और बढ़ गई। वामपंथी विचार के लोग जहां पहले साहूकारों, जमींदारों को शोषक मानते थे_ अब वहीं नई वैश्विक निजी कंपनियां, औद्योगिक घराने उनके लिए बड़े शोषक बन गए। सबसे बढ़कर इन आर्थिक नीतियों के परिणाम स्वरूप ‘खनन नीति’ में हुए बदलाव से खनिज संपन्न राज्यों में खनिज निकासी के नाम पर यहां के आदिवासी एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को उनकी भूमि से अलग कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप यहां के लोगों की सहानुभूति राज्य के विरुद्ध नक्सलियों के साथ हो गयी।
भारत में वामपंथियों का विचार है कि भारत में उपनिवेशवाद, जमींदारी, जागीरदारी के अवशेष आज भी विद्यमान हैं, जहां पहले यह किसी दूसरे रूप में था और आज यह एक बदले स्वरूप में सामने आ चुका है। जहां आरंभ में यह वामपंथी उग्रवाद पं- बंगाल के कुछ जिलों, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में ही सीमित था, वहीं आज यह और ज्यादा सशक्त होकर नए क्षेत्रें यथा-तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक के कुछ क्षेत्रें के साथ-साथ उत्तराखण्ड में भी देखा गया है।