ड्रोन यह आधुनिक युग का एक नवीन प्रकार का विमान है, इसमें चालाक नहीं होता, इसके स्थान पर इसे सुदूर स्थान से नियंत्रित किया जाता है, इसका प्रयोग जासूसी करने, बिना आवाज किए मिसाइल हमला करने हेतु किया जाता है।
भारत ही नहीं कई अन्य देशों में आम नागरिकों को एक निश्चित ऊंचाई और कुछ खास तरह के ड्रोन उड़ाने की ही इजाजत दी जाती है। लेकिन भारत में इसे लेकर अब तक कोई नियम ही नहीं हैं, लेकिन अब इसमें लाइसेंस जारी करने की बात हो रही है। ड्रोन के साथ क्षमताओं की सीमाएं लगभग हैं ही नहीं। कुछ ड्रोन में आसमान से एक किलोमीटर तक के क्षेत्र की वीडियो फिल्म बनाई जा सकती है या फिर लाइव स्ट्रीम भी किया जा सकता है। यहां तक कि मेमरी में भी वीडियो सेव किया जा सकता है जो इसे काफी खतरनाक भी बना सकता है।
सुरक्षा के लिहाज से देखें तो ड्रोन का इस्तेमाल काफी उपयोगी साबित होता है- कई आधुनिक देशों में पुलिस ड्रोन का इस्तेमाल करती हैं। ड्रोन को ‘आई इन द स्काई’ कहते हैं। आज इसके बारे में कोई कानून नहीं हैं। कहीं इसका इस्तेमाल चिट्टियां पहुंचाने के लिए किया जा सकता है तो कहीं बाढ़ पीडि़तों तक मदद पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। ये सब इसके नए इस्तेमाल हैं और इसके लिए सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो इसको लेकर क्या नियम बनये।
खेती किसानी के क्षेत्र में ड्रोन के उपयोग की असीम संभावनाएं हैं। ड्रोन से आने वाले तूफान का पता लगा सकता है। यही एक कारण है कि नासा, द नेशनल ओशिएनिक और एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नॉर्थरोप ग्रूमेन ने तीन साल तक साथ काम किया तथा तूफान के उठने पर नजर रखने के लिए लॉन्ग रेंज अनमैन्ड एरिअल व्हीकल्स के उपयोग के लिए 30 मिलियन डॉलर का प्रयोग किया। ग्लोबल हॉक ड्रोन्स 30 घंटे तक हवा में रह सकता है और अपने 116 फूट के पंखों के फैलाव के साथ 11000 मील उड़ सकता है। यह तूफानी क्षेत्रें में ठहर सकता है जहां मानव सहित प्लेन पहुंच सकता।
सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी ड्रोन का काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। देश की सीमा पर सुरक्षा के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है। भारत का रुस्तम 2 सबसे आधुनिक ड्रोन है। रुस्तम 2 को अमेरिकी प्रिडेटर ड्रोन की तर्ज पर निगरानी के उद्देश्य से विकसित किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि लड़ाई के दौरान भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
अमेरिका में जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है। द डिपार्टमेंट ऑफ द इंटीरियर, द ब्यूरो ऑफ लैंड मैनेजमेंट और द यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्विस यूएवी का उपयोग कर रहे हैं और वन्य जीवन की आबादी या मैप रोड तथा वेटलैंड्स को मॉनिटर कर रहे हैं। अब भारत में भीड्रोन का इस्तेमाल जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिए किया जाना शुरु कर दिया गया है।
छोटे, कम वजन वाले ड्रोन साधारण मॉडल एअरप्लेन जैसे दिख सकते हैं लेकिन वे हजारों डिजिटल इमेज के साथ लैंडस्केप्स का अवलोकन कर सकते हैं। इससे 3डी मैप तैयार किए जा सकते हैं। मिलिट्री और अन्य सरकारी सैटेलाइट वैसे ही मैप बनाती है, लेकिन तेजी से लोकप्रिया होती यूएवी टेक्नोलॉजी कई गुना सुविधाजनक होती है।
फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव जोखिम भरा होता है। कीटनाशकों के असर से किसानों को गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने की आशंका रहती है। कई बार किसानों की जान भी चली जाती है। सबसे ज्यादा मुश्किल गन्ना, ज्वार, बाजरा, अरहर जैसी ऊंचाई वाली फसलों में आती है। ड्रोन सभी फसलों पर छिड़काव करने में सक्षम है। एक एकड़ के जिस खेत में दो मजदूर दिनभर का समय लेते हैं, वह काम यह ड्रोन केवल आधे घंटे में कर देता है। रिचार्जवल बैट्री से चलने वाले इन ड्रोन पर छिड़काव के लिए बारह से पंद्रह रूपये का खर्च आता है। एक बार में तकरीबन पांच से सात लीटर कीटनाशकों के साथ ये ड्रोन उड़ान भर सकते हैं।
नागरिक उड्डयन मंत्रलय ने नबंवर, 2017 में ड्रोन नियमन से संबंधित मसौदे का प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्तावित मसौदे के अनुसार ड्रोन को चार श्रेणियों में रखा गया है- 250 ग्राम से कम नैनो, 250 ग्राम से ले कर 2 किलो तक माइक्रो, दो किलो से अधिक मिनी और मॉडल एयरक्राफ्रट जो दो किलो से अधिक होता है। ड्रोन उड़ाने वाले को इसके लिए डीजीसीए एक यूनिक आइडेन्टिफिकेशन नंबर लेना होगा। जमीन से 50 फीट की ऊंचाई तक उड़ाए जाने वाले नैनो ड्रोन के लिए ये नंबर लेना जरूरी नहीं है। विमान के उड़ान क्षेत्र में ड्रोन उड़ाने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोलर की इजाजत लेनी पड़ेगी। इसके लिए नजदीकी पुलिस स्टेशन से भी जुड़े रहना होगा। राष्ट्रपति भवन के 30 किलोमीटर, अंतरराष्ट्रीय सीमा के 50 किलोमीटर और हवाई अड्डे के 5 किलोमीटर के दायरे में ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकेगा। साथ ही