जर्मन पत्रिका साइंस एडवांस में प्रकाशित एक शोध आलेख के अनुसार कृत्रिम प्रकाश के कारण पृथ्वी पर रात्रि का अधंकार वर्ष दर वर्ष कम हो रहा है और उसका स्थान एलईडी बल्ब से चकाचौंध रात्रियों ने ले लिया है। एरिजोना यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर हॉज के मुताबिक यह प्रकाश प्रदूषण है जिसका नकारात्मक प्रभाव मानव स्वास्थ्य, पारितंत्र एवं खगोलीय शोध पर देखा जा रहा है या देखा जा सकता है। इस शोध रिपोर्ट के अनुसार रात्रि में पृथ्वी पर कृत्रिम चमक में काफी वृद्धि हो गयी है। शोधकर्त्ताओं ने पृथ्वी पर रात्रि चमक के मापन के लिए सैटेलाइट रेडियोमीटर का इस्तेमाल किया जिसे ‘वीआईआईआरएस’ (Visible/Infrared Imager Radiometer Suite, or VIIRS) नाम दिया गया। रेडियोमीटर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण का मापन करने वाला उपकरण है।
कहां है अधिक प्रदूषणः प्रकाश प्रदूषण विश्व में सभी जगहों पर नहीं है। प्रकाशित शोध आलेख के अनुसार विश्व के 79 देशों में प्रकाश प्रदूषण में वृद्धि हो रही है, उसके मुकाबले केवल 16 देशों में इसमें कमी आ रही है। 39 देशों में प्रकाश प्रदूषण स्तर स्थिर है। यमन एवं सीरिया जैसे गृहयुद्ध से ग्रसित देशों में अध्ययन अवधि में और अंधेरा हो गयी है। वहीं अमेरिका व स्पेन जैसे विश्व के सबसे चमकीले देशों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं है। बदलाव आया है तो दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका एशिया के उदीयमान अर्थव्यवस्था वाले देशों में। रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक गतिविधियों की वृद्धि के सापेक्ष्य प्रकाश उत्सर्जन में भी वृद्धि दर्ज की गई है। वैसे सर्वाधिक प्रकाश प्रदूषित जगह हांगकांग है। वर्ष 2013 में ही इसे सर्वाधिक प्रकाश प्रदूषित जगह का दर्जा मिल गया था।
पहले जहां प्रकाश नहीं होता था अब वहां भी प्रकाश की व्यवस्था की जा रही है। मसलन्, राजमार्गों, सड़कों, पार्क से गुजरने वाले पैदलपथ, शहरों की ओर जाने वाली सड़कों, प्रमुख प्रतिष्ठानों के चारों ओर इत्यादि। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए समुद्री तटों को भी प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रभावः यह रिपोर्ट उन प्राकृतिक प्रणालियों के लिए चिंता का सबब है जो रात्रि के अंधकार में जीवित रहती है। उदाहरण के तौर पर रात्रि में विचरण करने वाले प्राणी (Nocturnal Animals,) जिनमें 30% मेरुदंड वाले प्राणी एवं60% अकशेरूकी प्राणी हैं।
जहां तक मानव स्वास्थ्य की बात करें तो प्रकाश प्रदूषण का सर्केडियन लय (Circadian rhythm), अवसाद, मधुमेह एवं यहां तक कि कैंसर के बीच संबंध दिखता है। सर्केडियन लय शरीर के अंदर की घड़ी है जो हमारे मस्तिष्क के पीछे चल रही है और निद्रा तथा सतर्कता के बीच नियमित अंतराल पर चक्कर लगा रही होती है। प्रकाश प्रदूषण से इस लय में व्यवधान आता है जो अवसाद को बढ़ावा दे सकता है। मेलाटोनिन (Melatonin) नामक हार्मोन, जो प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला हार्मोन है और हमारी निद्रा व जागरण को नियंत्रित करता है, इस प्रकाश प्रदूषण से काफी प्रभावित होगा।
प्रकाश प्रदूषण की वजह से खगोलविदों को अधिक परेशानी होगी क्योंकि वे रात्रि में आकाशीय पिंडों का अध्ययन करते हैं परंतु प्रकाशित जगहों के कारण उन्हें इन पिंडों को देखने में परेशानी होगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार इसके समाधान के रूप में विभिन्न देशों में कम प्रसार वाले लाइट का उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये जो कि गुलाबी या नीला के बजाय अंबेर रंग का हो।
क्या होता है प्रकाश प्रदूषण? प्रकाश प्रदूषण, जिसे फोटोप्रदूषण या ल्युमिनस प्रदूषण (photopollution or luminous pollution) भी कहते हैं, कृत्रिम आउटडोर प्रकाश की अत्यधिक, अप्रबंधित या आक्रामक प्रयोग उपयोग है। कुप्रबंधित प्रकाश रात्रिकालीन आकाश के रंग एवं विषमता को परिवर्तित कर देता है, तारों के प्राकृतिक प्रकाश को मद्धिम कर देता है और सर्केडियन रिदम में व्यवधान डाल देता है। इससे पर्यावरण, ऊर्जा संसाधनों, वन्यजीव, मानव एवं खगोलीय शोध प्रभावित होता है। |