ऐसा निवेशक जो किसी विशिष्ट प्रतिभूति (शेयर) के मूल्य बढ़ने की प्रत्याशा रखता है, को बुल या तेजडि़या कहते हैं जबकि मूल्य कम होने की प्रत्याशा रखने वाले निवेशक को बियर या मंदडि़या कहा जाता है। बुल्स चालू कीमत पर अपने पसंद की प्रतिभूतियों या शेयर को खरीद लेते हैं ताकि कीमत अधिक होने पर इनकी बिक्री कर लाभ कमाया जा सके तथा बियर्स चालू कीमत पर अपने शेयरों को बेच देते हैं ताकि प्राइस लेवल कम होने पर उन्हें फिर खरीद सकें। बियर्स प्रायः शेयरों की बिक्री करते हैं जो उनके पास होते ही नहीं। इस प्रकार के सौदे को शार्ट सेलिंग कहते हैं।
डुअल लिस्टिंगः डुअल लिस्टिंग उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसके तहत कोई कंपनी दो अलग.अलग देशों के स्टॉक एक्सचेंजों में खुद को सूचीबद्ध कराती है।
जबदो देशों की दो कंपनियों के बीच कारोबार को लेकर समझौता होता है तो डुअल लिस्टिंग के जरिए दोनों ही देशों में इन कंपनियों के शेयर सूचीबद्ध होते हैं। इससे दोनों ही देशों के स्टॉक एक्सचेंजों में दोनों ही कंपनियों के शेयरों की खरीद.बिक्री की जा सकती है। अभी तक भारत में रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता के न होने व फेमा नियमों आदि के चलते डुअल लिस्टिंग की अनुमति नहीं है।
बाय बैकः किसी कंपनी द्वारा अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बाय बैक कहा जाता है। कंपनी इसके जरिए खुले बाजारों में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर में वृद्धि होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है। इनके प्रभाव से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। इस प्रक्रिया से शेयर कीमत में उछाल आता है। कंपनियां बाय बैक विधि से तब शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी कम हो रही है।