वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों के विनाश तथा जैव विविधता के ह्रास एवं क्षय की समस्या अब क्रान्तिक सीमा को पार गई है। प्राकृतिक आवासों एवं वन्य जीवों के संरक्षण की मांग ने विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है ताकि जैव-विविधता का समुचित संरक्षण किया जा सके। जैव विविधता के संरक्षण का प्रथम विश्व स्तरीय प्रयास 1992 में प्रथम पृथ्वी सम्मेलन के समय किया गया। प्रथम पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरो नगर में हुआ था। 178 देशों ने इसमें भाग लिया था, इसके मुख्य लक्ष्य थे-
प्राकृतिक वनों की जैव विविधता अति समृद्ध होती है। वनों के इस महत्व को ध्यान में रखते हुए रियो सम्मेलन में वन संरक्षण पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया गया तथा प्राकृतिक एवं मौलिक वनों की रक्षा करने के लिए मसौदा प्रेषित किया गया परन्तु संयुक्त राज्य अमेरिका की अगुआई में कतिपय विकसित देशों के भारी विरोध के कारण वन संरक्षण के प्रस्ताव पर कोई ठोस सहमति नहीं हो पाई।
रियो सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों ने जैव विविधता में तेज रफ्रतार से हो रहे ”ास पर गहरी चिन्ता जताई। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रहीय पृथ्वी पर पौधों की ज्ञात प्रजातियों की संख्या 40 मिलियन है जिनमें से 10,000 प्रजातियों का मनुष्य के आर्थिक भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक वन्य क्षेत्र प्रकृति संग्रालय के रूप में आदि।
आर्थिक लाभ
जैव विविधता ह्रास (क्षय) (Loss of Diversity)
प्रजाति विलोपन जैव विविधता की हानि की प्रमुख प्रक्रिया है। किसी प्राकृतिक आवास कृषित क्षेत्र, चिडि़याघर या संरक्षित क्षेत्र से जीवीय समुदाय की विशिष्ट प्रजाति के पूर्णतया विलोपन को प्रजाति विलोपन कहते हैं। पृथ्वी पर आर्थिक मानव के अवतरण के पहले प्रजातियों का विलोपन केवल प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा ही होता था परन्तु अब मानव जनित प्रक्रिया, प्रजातियों के विलोपन की प्रमुख प्रक्रिया बन गई है। उदाहरण के लिए मनुष्य के आर्थिक क्रियाकलापों में बेतहासा वृद्धि के कारण प्रजातियों के विलोपन की दर में सन् 1850 के बाद कई गुना वृद्धि हुई है। पाल अरलिक के अनुसार वर्तमान समय में पृथ्वी पर पायी जाने वाली समस्त प्रजातियों के एक तिहाई से दो तिहाई भाग का सन् 2050 के अन्त तक विलोप हो जाएगा।
एक अन्य के अनुसार पृथ्वी पर पायी जाने वाली प्रजातियों की ज्ञात संख्या 40000 है जिनमें से क्रियाकलापों के कारण प्रतिवर्ष विलोपन हो रहा है। इसी तरह सागरीय जल के प्रदूषण एवं तटीय विकास कार्यक्रमों के कारण सागरीय जीवों की प्रजातियां विनष्ट हो रही हैं। इसी को ध्यान में रखकर जैव-विविधता को बचाने के लिए जैव संरक्षण के लिए रियो सम्मेलन में एक प्रस्ताव रखा गया जिसके अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया कि यदि विकसित देश विकासशील देशों की जैव सम्पदा का उपयोग करते हैं तो उन्हें अपनी बायो टेक्नोलॉजी को संबंधित विकासशील देश को मुफ्रत हस्तान्तरित करनी होगी तथा जैव सम्पदा से होने वाले लाभ का हिस्सा भी देना होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किया परन्तु जैव विविधता को समृद्ध बनाने वाले इस प्रस्ताव पर 178 प्रतिनिधि देशों में से 150 देशों ने मुहर लगा दी। जैव-विविधता के संरक्षण के लिए निम्न कार्यक्रमों पर सहमति हुई।
जैव विविधता संरक्षण की विधियां
जैव विविधता संरक्षण की दो प्रमुख विविधियां हैं-
जैव विविधता के संरक्षण की प्राकृतिक आवासों से बाहर संरक्षण की विधि के अन्तर्गत पौधों एवं जन्तुओं की उनके मौलिक एवं प्राकृतिक आवासों के बाहर अन्य स्थानों पर रक्षा एवं उनका संरक्षण किया जाता है। जिन पौधों एवं जन्तुओं को विलोपन का खतरा उत्पन्न हो जाता है, उन्हें उनके मौलिक स्थानों से हटकर अन्यत्र अनुकूल स्थानों पर लाया जाता है तथा मनुष्य द्वारा उनका भरण-पोषण एवं अनुरक्षण किया जाता है। ऐसे क्षेत्रें में बॉटेनिकल गार्डेन, चिडि़याघर, वृक्षोद्यान, जननिक संसाधन केन्द्र, कल्चर कलेक्शन, हैचरी आदि को शामिल किया जाता है। पौधों एवं जन्तुओं की जननिक विविधता के पुनर्नवीकरण, दुर्लभ एवं संकटस्थ प्रजातियों के बीजों तथा जननद्रव्यों को बीज बैंकों तथा जनन द्रव्य बैंकों में रखा जाता है ताकि ऐसी प्रजातियों के जीन को संरक्षित किया जा सके। ऐसे भण्डारण केन्द्रों को जीन बैंक कहा जाता है।