भारत के अधिकांश वन्य जन्तु अब संकटापन्न हो गए हैं क्योंकि उनकी संख्या में तेजी से गिरावट हो रही है। वास्तव में प्राकृतिक आवासों एवं महत्वपूर्ण वन्य जन्तुओं का विनाश ब्रिटिश शासन काल से ही प्रारंभ हुआ था। खाद्य-पदार्थ, खाल, हाथी दांत, कस्तूरी, सींग, समूरदार खाल, ऊन आदि के लिए शिकारी जानवरों के अंधाधुंध संहार, कृषि भूमि में विस्तार, औद्योगिक प्रगति एवं नगरीय विस्तार के लिए व्यापक स्तर पर वन विनाश के कारण भारत में वन्य जन्तुओं की भारी क्षति हुई है। भारत में विभिन्न वर्गों के पौधों एवं जन्तुओं की प्रजातियों को स्पष्ट करना होगा। इसमें जीवीय प्रजातियों की श्रेणियों में ऊंचे पौधों, स्तनधारी जन्तुओं, प्रजनन करने वाले जन्तुओं,रेप्टाइल, जलभूमिया तथा मछलियों को शामिल किया गया है।
भारत के विशिष्ट जन्तुः हाथी, गैंडा, हिरण, ऐण्टीलोप, जंगली भैंसा, जंगली बकरी, नीलगिरी टार, बाघ, चीता, भालू, लघु पुच्छ बन्दर, रीमस बन्दर, पैगोलिन, सारस, बांझ, घडि़याल आदि।
भारत में वन्य जीवों के परिरक्षण तथा संरक्षण के लिए केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों ने कई उपाय किए हैं। इनके अन्तर्गत कानून के अधिनियम, संकटापन्न प्रजातियों की सुरक्षा तथा पक्षी विहारों, अभ्यारण्यों एवं राष्ट्रीय उद्यानों तथा जीवमण्डल आगारों की स्थापना की है। वन्य पक्षी तथा जन्तु सुरक्षा अधिनियम सन् 1887 में पारित किया गया, परन्तु इसे 1912 में बदल दिया गया। इसी तरह 1927 में वन अधिनियम बनाया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वन्य जानवरों की सुरक्षा करना है। भारत वृहद जैव विविधता वाला देश है जहां पौधों, जन्तुओं एवं सूक्ष्म जीवों के समृद्ध जीवीय समुदाय पाए जाते हैं। विश्व में 12 वृहद जैव विविधता वाले देश है, उनमें भारत भी एक है। भारत में पौधों की लगभग 46000 तथा जन्तुओं की 81000 प्रजातियों का अभिनिर्धारण किया गया है। भारत 1994 में कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (CBD) का सदस्य बन गया। CBD का मुख्य उद्देश्य है-
CBD के आधार पर भारत में जैव विविधता के अनेक संरक्षण बनाए हैं-
(1) राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति एवं कार्य योजना- National Biodiversity strategy and Action Plan (NBSAP):
इस योजना के अन्तर्गत एक बोर्ड बनाया गया, जिसके निम्न कार्य हैं-
(2) जैव विविधता अधिनियम
जैव विविधता विधेयक सन् 2002 में लोकसभा द्वारा पारित किया गया तथा वह एक अधिनियम बन गया। इस अधिनियम के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(3) जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल
भारत ने जैव सुरक्षा प्रोटोकाल जिसे कोर्टजेना प्रोटोकॉल ऑन बायोसेफेटी कहते हैं, नामक अनुबन्ध पर हस्ताक्षर किया है। जीवित परिवर्तित जीवों के सुरक्षित हस्तान्तरण संचालन एवं उपयोग के लिए यह प्रोटोकॉल इण्टरनेशनल रेगुलेटरी प्रफ़ेमवर्क है। जैव सुविधा को प्रोन्नत करने के लिए इस प्रोटोकाल में कई विधियों का प्रावधान किया गया है।
भारत सरकार ने जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल पर 5 सितम्बर 2002 को हस्ताक्षर करके अपनी सहमति प्रदान कर दी। भारत सरकार ने वानिकी, वन्यजीव (जैव विविधता) तथा पारिस्थितिकीय संसाधनों के पोषणीय उपयोग सहित प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबन्धन के लिए निम्न का प्रावविधान किया है।
भारत के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त जैवमण्डल आगार
1. नीलगिरी |
1986 |
2. नन्दा देवी |
1988 |
3. नोकरेक (मेघालय) |
1988 |
4. मनास (असोम) |
1989 |
5. सुन्दरवन (पं- बंगाल) |
1989 |
6. मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु) |
1989 |
7. ग्रेट निकोबार |
1989 |
8. सिम्लीपाल (उड़ीसा) |
1994 |
9. डिब्रु-सैरवोवा (असोम) |
1997 |
10. दिहांग-देबांग (अरूणाचल प्रदेश) |
1998 |
11. पंचमढ़ी (मध्यप्रदेश) |
1999 |
12. कंचनजंगा (सिक्किम) |
2000 |
13. अगस्थमलाई (केरल) |
2001 |