उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के अनुसार 1 अप्रैल, 2017 से बीएस-III इंजन वाली गाडि़यों की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। 1 अप्रैल से देश में केवल बीएस-IV इंजन वाली गाडि़यां ही बनाई और बेची जाएंगी। वास्तव में बीएस का अर्थ ‘‘भारत स्टेज'' है और इससे वाहनों से होने वाले प्रदूषण का पता चलता है। बीएस के जरिए ही भारत सरकार वाहनों के इंजन से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को मापती है। बीएस मानक सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तय करता है। देश में चलने वाले हर वाहन के लिए बीएस का मानक जरूरी है।
भारत में ज्यादातर पेट्रोल चालित यात्री कार पिछले वर्ष से ही बीएस-IV में परिवर्तित होने आरंभ हो गए थे। ऐसा मुख्य रूप से इसलिए किया गया क्योंकि आंतरिक दहन पेट्रोल इंजन (Internal Combustion Petrol Engines) को बीएस-III से बीएस-IV में परिवर्तन करना आसान था। प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए जटिल पोस्ट दहन (Complex Post Combustion) विधियों की आवश्यकता के बिना इंजन द्वारा अधिकांश उत्सर्जन मानकों को पूरा किया जाता है। स्वाभाविक रूप से एस्पिरेटेड आंतरिक दहन इंजन (Aspirated Internal Combustion Engines) जो प्रौद्योगिकी के मामले में थोड़े पुराने हैं उन्हें बीएस-IV के साथ एक बड़े उत्प्रेरक कर्न्वटर (Catalytic Convertor) या दो उत्प्रेरक कन्वटर्स के साथ आपस में मिलाया जा सकता है। द्वितीयक उत्प्रेरक कन्वर्टर को भी पहले या अंत के एक हिस्से के रूप में जोड़ा जा सकता है। पेट्रोल संचालित यात्री कारों को बीएस-III से बीएस-IV में परिवर्तित करना ज्यादा आसान है, क्योंकि इनमें पहले से ही ‘ओबीडी-2 पोर्ट' (OBD-2 Port) लगा दिया गया है।
BS IV के फायदे सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि प्रदूषण का स्तर नियंत्रित रहेगा जिससे सांस लेने के लिए साफ हवा मिल सकेगी। वर्तमान में जो भी गाडि़यां चल रही हैं, उनके इंजन से निकलने वाला धुआं मोटे तौर पर चार तरह के प्रदूषण फैलाता है। कार्बन मोनोक्साइड (CO), हाइड्रोकार्बन (HC), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) और पार्टिकुलेट मैटर (PM)। पेट्रोल इंजन कार्बन मोनोक्साइड और हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन ज्यादा करते हैं, और डीजल इंजन नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर्स का। बीएस-III मानक के मुकाबले बीएस-IV मानक वाले इंजन इस उत्सर्जन में भारी कमी लाएंगे। बीएस-IV इंजन से चलने वाली गाडि़यां बीएस-III के मुकाबले आधे से भी कम प्रदूषण करेंगी। निश्चित तौर पर इसका असर आने वाले दिनों में दिखेगा। भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है और ऐसे में गाडि़यों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने की सख्त जरूरत थी। |
चुनौतियां
डीजल संचालित यात्री वाहन एवं एसयूवी यात्री कार वाहनों का एक छोटा सा हिस्सा है जो बीएस-III से बीएस-IV में परिवर्तित होने वाले वाहनों को थोड़ा प्रभावित कर सकता है क्योंकि महिंद्रा और टाटा मोटर्स जैसे कुछ वाहन निर्माता कंपनियां ग्रामीण और अर्द्ध शहरी बाजारों के लिए बीएस III वाहनों का निर्माण करते हैं। अब ये बीएस III वाहन बाजार में आना बंद हो जाएंगे। हालांकि ये कंपनियां अब बीएस IV उत्सर्जन मानक वाले वाहनों का ही निर्माण करते हैं। पेट्रोल से चलने वाले कारों ने उत्सर्जन नियंत्रण हार्डवेयर के मामले में एक बड़ा परिवर्तन किया है। इसके तहत बड़ी मात्र में उत्प्रेरक कन्वर्टर या डीजल ऑक्सीकरण उत्प्रेरक (Diesel Oxidation Catalyst - DOC) को परिवर्तन किया गया है।
नई बीएस IV कारों के टेलपाइप (Tailpipe) में एक एनओएक्स (NOx) संवेदक लगा होगा जो इस पाइप से निकलने वाले कणों का लगातार मॉनिटर करेगा और उसको फिल्टर करेगा। इसलिए ऑन बोर्ड डायगोनेस्टिक (ON Board Diagnostics - OBD) लगाना अनिवार्य होगा। ताकि ईंजन से निकलने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। इन नई तकनीकों को हालांकि पुरानी तकनीक में शामिल करना कठिन कार्य है।
यात्री कारों एवं दो पहिया वाहनों में तो बीएस III से बीएस IV में बदलाव थोड़े समय में भले ही किया जा सकता है, लेकिन वाणिज्यिक वाहनों में इस प्रौद्योगिकी में बदलाव लाना एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि सभी वाणिज्यिक वाहनों को यांत्रिक स्तर पर परिवर्तित करना एक कठिन कार्य है।
विशेषज्ञों के अनुसार वाहनों से होने वाले उत्सर्जन नियंत्रित इकाईयों को पूरी तरह बीएस IV में बदलना मुश्किल है, क्योंकि अधिकांश वाहनों में पुराने यंत्र लगाए गए हैं, इन्हें अचानक से ही बदला नहीं जा सकता। लेकिन ओबीडी का उपयोग न सिर्फ यात्री वाहनों में बल्कि वाणिज्यिक वाहनों के लिए भी अनिवार्य कर दिया गया है जिसका अर्थ है, सभी वाणिज्यिक वाहन निर्माता कंपनियों के लिए ईसीयू (ECU) आधारित तकनीकों को अपनाना अनिवार्य होगा। यात्री कारों एवं वाणिज्यिक वाहनों में यांत्रिक ईजीआर (Mechanical EGR) का इस्तेमाल आरंभ से ही होता आ रहा है।
भारत वर्तमान में बीएस III उत्सर्जनमानक वाले वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने में असफल रहा है। नए वाहनों में उत्प्रेरक कन्वर्टर या डीजल ऑक्सीडेशन कैटलिस्ट (Catalytic Convertor or Diesel Oxidation Catalyst - DOC) लगाना अनिवार्य कर दिया गया। यह उत्सर्जन के समय निकलने वाले कणों को नियंत्रित करता है और प्रदूषण होने से रोकता है। कुछ बड़े बसों एवं ट्रकों में डीजल ऑक्सीडेशन कैटलिस्ट (Diesel Oxidation Catalyst - DOC), लिन नॉक्स कैटलिस्ट (Lean Nox Catalyst - LNC) और लीन नोक्स ट्रेप (Lean Nox Trap - LNT) और एक यूरिया इंजेक्टर (Urea Injector) को लगाया गया है, जिसे चयनात्मक कैटलिटिक रिडक्शन (Selective Catalytic Reduction - SCR) मॉड्यूल कहा जाता है।
यद्यपि यह तकनीक यूरोप में ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। अभी भारत में यह ज्यादा उपयोग नहीं की जाती है। अतः सभी बीएस III वाहन चाहे वो दो पहिया वाहन हो या यात्री कार या फिर वाणिज्यिक वाहन सभी बीएस III से बीएस IV में पूरी तरह से परिवर्तन करना कठिन है, लेकिन प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु ऐसा करना अनिवार्य है।