समतावादी शिक्षा व्यवस्था का अभाव, महिला के चरित्र पर संदेह, शराब की लत, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दुष्प्रभाव, महिला को स्वावलंबी बनने से रोकना, पति द्वारा महिलाओं को पीटने अथवा मानसिक यंत्रणा देना, पुलिस द्वारा उत्पीड़न, पंचायतों का एकपक्षीय निर्णय, पुरुष प्रधान समाज।
घरेलू हिंसा का सामाजिक प्रभाव
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों के अनुसार करीब 10.7 करोड़ महिलाएं अपने जीवन काल में किसी-न-किसी तरह की हिंसा सहती हैं। घरेलू हिंसा से महिला के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावनात्मक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
परिवारों, समुदायों और पूरे समाज पर बहुत घातक असर पड़ता है। इसके कारण महिलाओं के काम तथा निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। पारिवारिक रिश्तों, आस-पड़ोस के साथ रिश्तों व बच्चों पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ता है। दहेज हत्या, आत्महत्या, वेश्यावृत्ति बढ़ती है। महिलाएं मानसिक रोगी बन जाती है। महिला की सार्वजनिक भागीदारी में बाधा कार्यक्षमता में कमी, पीडि़त महिला की घर में द्वितीय श्रेणी की स्थिति बन जाती है।
पुलिस की भूमिका
ऐसे मामलों में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की जाती, पति द्वारा महिलाओं को पीटने अथवा मानसिक यंत्रणा देने को पुलिस बड़ा मुद्दा नहीं मानती। चूंकि महिला की शारीरिक चोट पुलिस को दिखाई नहीं देती इसलिए भी वह उसे गंभीरता से नहीं लेती।
घरेलू हिंसा के प्रकरणों में महिला पुलिस कर्मियों का हस्तक्षेप कम कर दिया जाता है, पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर प्रताडि़त महिला को समझौते के लिए विवश करती है या प्रकरण को कमजोर कर देती हैं।