इस विधि के अन्तर्गत स्त्रेत से नियंत्रित जल प्रवाह पाइप द्वारा प्रवाहित किया जाता है। इस पाइप में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। जिनके द्वारा बूंद-बूंद कर पानी पौधे के जड़ के पास टपकता रहता है। इस विधि का प्रयोग साग-सब्जियों, फूलों, फलदार पेड़ों की सिंचाई के लिए अधिक उपयोगी होता है। महाराष्ट्र में गन्ने की फसलों में भी सफलतापूर्वक यह विधि अपनाई जाती है। इस विधि से नियंत्रित मात्र में पानी, उर्वरक एवं कीटनाशी रसायन प्रभावी ढंग से प्रयोग किये जा सकते हैं। इस विधि से सिंचाई करने पर खरपतवार एवं रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इससे जहां एक ओर श्रमिकों पर व्यय में भारी बचत होती है, वहीं पर कम जल में अधिक सिंचाई की जा सकती है।