प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी।
तत्कालीन शिक्षा केन्द्रों में नालन्दा, तक्षशिला एवं वल्लभी की गणना की जाती है।
मध्य काल में शिक्षा मदरसों में प्रदान की जाती थी।
भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल से हुई।
1813 ई- के चार्टर में सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एक लाख रुपये की व्यवस्था की गई।
लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के 10 सदस्यों में दो दल बन गये थे। एक आंग्ल या पाश्चात्य विद्या का समर्थक था तो दूसरा प्राच्य विद्या का। प्राच्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच-टी- प्रिंसेप ने किया जबकि इनका समर्थन समिति के मंत्री एच-एच- विल्सन ने किया।
बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रधान चार्ल्स वुड ने 19 जुलाई, 1854 को भारतीय शिक्षा पर एक व्यापक योजना प्रस्तुत की जिसे ‘वुड डिस्पैच' कहा जाता है।
वुड के घोषणा पत्र द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा हेतु 1882 ई- में सरकार ने डब्ल्यू- हंटर की अध्यक्षता में ‘हंटर आयोग' की नियुक्ति की। इस आयोग में 8 सदस्य भारतीय थे। आयोग को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा तक ही सीमित कर दिया गया था।
1917 ई- में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन के लिए डॉ- एम-ई- सैडलर के नेतृत्व में ‘सैडलर आयोग' गठित किया गया।
1929 ई- में ‘भारतीय परिनीति आयोग' ने सर फिलिप हार्टोग के नेतृत्व में शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट हेतु एक सहायक समिति का गठन किया। समिति ने प्राथमिक शिक्षा के महत्त्व की बात की।
हार्टोग समिति की सिफारिश के आधार पर 1935 में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का पुनर्गठन किया गया।
वर्धा योजना को कई नामों से जाना जाता है यथा- बुनियादी शिक्षा, बेसिक शिक्षा आदि। गांधीजी द्वारा 1937 ई- में वर्धा नामक स्थान पर इस योजना का सूत्रपात हुआ। इसमें शिक्षा के माध्यम से हस्त उत्पादन कार्यों को महत्त्व दिया गया। इसमें बालक अपनी मातृभाषा के द्वारा 7 वर्ष तक अध्ययन करता था।
1944 ई- में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल ने ‘सार्जेंट योजना’ के नाम से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की। इसमें 6 से 11 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा दिये जाने की व्यवस्था की गई थी।
डॉ- सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सन् 1948-1949 में उच्च शिक्षा के सुझाव के लिए ‘राधाकृष्णन आयोग’ का गठन किया गया।
1953 ई- में राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान अयोग की स्थापना की गयी।
‘मुदालियर आयोग' या ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग' का गठन सन् 1952-1953 में हुआ। इसने माध्यमिक शिक्षा के लिए सुझाव दिए।
डॉ- डी-एस- कोठारी की अध्यक्षता में जुलाई 1964 ई- में कोठारी आयोग की नियुक्ति की गई। इसने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ या सुझाव दिये।