भ्रष्टाचार ब्रिटिश विरासतः ब्रिटिशकालीन भारत में उच्चतम सरकारी कर्मचारियों में भ्रष्टाचार जितने व्यापक रूप में प्रचलित था- यह इस बात से स्पष्ट है कि उस समय वायसराय या गवर्नर अपने पद से अवकाश ग्रहण करने से पहले देशी रियासतों का दौरा, राजाओं से विदाई लेने के नाम पर किया करते थे। यद्यपि इसका वास्तविक प्रयोजन उनसे भेंट और उपहार प्राप्त करना होता था। लॉर्ड वेवेल ने 1945 में भारत का वायसराय बनने पर अपनी बेटी फेलेसिटी एन के विवाह के निमंत्रण पत्र प्रमुख धनी भारतीयों तथा 700 छोटी-बड़ी रियासतों के राजाओं को शादी से कई महीने पहले उन सब वस्तुओं की सूची के साथ भेज दिए थे जिन्हें वर-वधू उपहार के रूप में लेना पसंद करेंगे।
प्रशासन का विस्तारः स्वतंत्रता के पश्चात अकस्मात ही ब्रिटिश एवं मुस्लिम अधिकारियों की एक बड़ी संख्या में कमी हो गई जिसके फलस्वरूप एक बड़ी संख्या में विभिन्न श्रेणियों में अनुभव एवं योग्यता को ध्यान में रखे बिना भर्ती की गई। सेवाओं की सुस्थापित परंपराओं में इन कर्मचारियों की कोई आस्था नहीं थी।
नैतिक मूल्यों का हास्य: विकसित जनसमाज में शहरीकरण एवं औद्योगीकरण पर निरंतर बल दिया गया जिससे सामाजिक एवं वैयक्तिक मूल्यों का भौतिक मूल्यों के आगे ह्रास होता है। भौतिक आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं और जो वस्तुएं पूर्ण विलास की वस्तुएं मानी जाती थीं, वे अब जीवन की आवश्यकताएं बनती चली जाती हैं। इनकी प्राप्ति के लिए धन की आवश्यकता होती है। ईमानदारी के तरीकों से धनकमाना काफी कठिन होता है अतः अनैतिक उपायों का सहारा लिया जाता है। पहले अनैतिक कार्य करने में व्यक्ति झिझकता था जबकि आज अनैतिक उपायों से लाभ अर्जित करने में उसे प्रसन्नता होती है।
वेतनों में विषमताः भारत में कर्मचारियों के वेतन में काफी अंतर है। उच्च वेतनों के फलस्वरूप उच्च अधिकारी आरामदेय जीवन व्यतीत करते हैं। प्रत्येक अधीनस्थ अपने वरिष्ठ अधिकारी का अनुसरण करना चाहता है। यदि उसका वेतन कम होता है तो वह अनुचित साधनों से आमदनी करता है। वेतनों में विषमता का व्यापक अनैतिक एवं विनाशकारी प्रभाव होता है।
लालफीताशाहीः भारत में सरकारी दफ्रतरों में काम करने की प्रक्रिया बड़ी जटिल तथा विलम्बकारी होती है। इनमें इतने अधिक नियमों, उपनियमों का जाल फैला हुआ होता है कि कोई भी कार्य शीघ्रता से नहीं होता है। लालफीते से बंधी फाइलों को एक अफसर की मेज से दूसरे अफसर की मेज तक पहुंचने में बड़ा समय लगता है। यह स्थिति रिश्वत और घूस के लिए आधार तैयार करती है। लोग अपना कार्य जल्दी कराने के लिए सरकारी कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार से रिश्वत देने में कोई संकोच नहीं करते हैं। ऐसी राशि को शीघ्र काम कराने वाला धन (Speed Money) कहा है। इस प्रकार की रिश्वतखोरी ऐसे विभागों में अधिक पायी जाती है जहां सरकार के साथ नागरिकों का अधिक संपर्क होता है।
औद्योगिक एवं व्यापारी वर्गः भ्रष्ट करने की योग्यता एवं इच्छा आज के औद्योगिक एवं व्यापारी वर्ग में पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। सटोरिए नए पैसे वाले, तस्करी का धंधा करने वालों के लिए भ्रष्टाचार विभिन्न तरीकों से धन अर्जित करने का सबसे सरल तरीका है। अपना काम निकलवाने के लिए सुरा व सुंदरियां भ्रष्टाचार के नवीन रूप हो गए हैं। व्यावसायिक घरानों द्वारा संपर्क अधिकारियों एवं संबंध कायम रखने वाले व्यक्तियों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया जाता है। ये लोग शासकीय कर्मचारियों को अपने निकृष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करने के लिए धन या अन्य लाभ देते हैं।
निर्वाचन में पार्टी फण्डः भारत में चुनाव काफी महंगे होते जा रहे हैं और चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों को काले धन की जरूरत पड़ती है। चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका के कारण काला धन और भ्रष्ट राजनीतिज्ञ एक-दूसरे के साथ जुड़ गए हैं।