नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी-बनाम-यूनियन ऑफ इंडिया (2012) के केस में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को ‘थर्ड जेंडर' के रूप में मान्यता दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अन्य निर्णय में कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को ‘तीसरे लिंग’ का दर्जा देना कोई सामाजिक या चिकित्सीय मामला नहीं है बल्कि यह मामला मानवाधिकार से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स को शिक्षा तथा रोजगार में आरक्षण देने का निर्देश दिया है। ट्रांसजेंडर्स के लिए एचआईवी सीरो-सर्विलांस बनाने का निर्देश। अस्पतालों में ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग वार्ड, हॉस्पिटल बनाने के निर्देश।
कानूनी प्रयास
20 जुलाई, 2016 को केंद्रीय कैबिनेट ने ट्रांसजेंडर (अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2016 पास कर दिया है। दो साल पहले राज्य सभा ने निजी विधेयक, ‘द राइट्स ऑफ ट्रांसजेंडर्स पर्सन्स बिल, 2014 पारित किया था। विधेयक के अनुसार ट्रांसजेंडर्स का उत्पीड़न या प्रताडि़त करने पर किसी भी व्यक्ति को 6 महीने की जेल हो सकती है।
संवैधानिक प्रावधान