यह कार्यक्रम 1988 में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य पूर्ण साक्षरता यानी सन् 2005 तक 75 प्रतिशत के न्यूनतम स्थायी स्तर को प्राप्त करना है। मिशन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 15-35 वर्ष की उम्र के निरक्षरों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने का प्रयास करता है। यह देश के सभी जिलों में चलाया गया। यह मिशन स्थानीय स्तर पर सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजनों के जरिए लोगों को एकजुट करने और साक्षरता को सामाजिक शिक्षा और जागरूकता के व्यापक कार्यक्रम में शामिल करने के उपायों पर निर्भर था। 2011 की जनगणना से पता चलता है कि देश में साक्षरता का स्तर 1991 में 52.21% से बढ़कर 74.04% तक पहुंच गया। किन्तु राष्ट्रीय औसत के इस पर्दे के पीछे बहुत अधिक विसंगतियां, कुछ क्षेत्रें में निरक्षरता, जाति और लिंग आदि जैसे कारणों से मौजूद भिन्नता सिरदर्द बनी हुई है। इतना ही नहीं निरक्षर लोगों की कुल संख्या अब भी बहुत अधिक है।