स्वतंत्रता के बाद से शुरू हुए अनियोजित विकास और दिशाहीन औद्योगीकरण ने नदियों को बहुत नुकसान पहुंचाया। इससे हमें सिर्फ सामाजिक ही नहीं, आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। नदियों पर आधारित कृषि, पर्यटन आदि बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। नदियों के प्रदूषित होने के कारण भूमि भी प्रदूषण से प्रभावित होने लगी। इसका सीधा असर कृषि उपज की गुणवत्ता पर पड़ा। परिणामस्वरूप किसान एवं गांव के साथ-साथ सबकी सेहत पर उल्टा असर पडा।
धीरे-धीरे लोगों ने नदियों में सीवर, औद्योगिक कचरा, पॉलिथीन आदि डालना शुरू कर दिया जिससे आज भारत की नदियां दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित हो गई हैं। दिल्ली में यमुना, कानपुर में गंगा, मुम्बई में मीठी नदी अत्यंत प्रदूषित हो चुकी हैं। इनके नदियों का पानी ही नहीं, अपितु आसपास की भूमि भी प्रदूषित होकर बंजर होती जा रही है। इससे देश की अर्थव्यवस्था एवं नागरिकों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
इन कारणों से नदियों का प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। कई नदियां तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। इसका सीधा असर प्राकृतिक संतुलन पर पड़ रहा है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए हमें नदियों को प्रदूषणमुक्त करना होगा। इसके लिए हमें सबसे पहले नदियों के किनारों से, नदियों के डूब के क्षेत्र से, तथा वेटलैंड से अवैध बस्तियों तथा अवैध निर्माण को हटाना होगा। जिससे नदियों को फैलने का पूरा मौका मिले।
इसके साथ ही साथ देश को नदियों के शुद्ध पानी तथा बारिश के पानी को रोकने के लिए भी हमें बडे़ कदम उठाने होंगे। इसके लिए नदियों को जोडा जाना एक श्रेष्ठ उपाय है। इसी के साथ नदियों पर हर पचास किलोमीटर पर बांध का निर्माण किया जाए। नदियों के तटों पर बड़ी संख्या में वृक्ष लगाए जाएं तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग की बडे़ पैमाने पर व्यवस्था की जाए।
इन सभी उपायों से नदियों के प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके साथ ही साथ बाढ एवं सूखा को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। देश में पीने के पानी की कमी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है।