आपदा प्रबंधन आपदा आने की चेतावनी से लेकर उसके पश्चात्, पुनर्वास, पुनर्निर्माण एवं भविष्य के लिए आपदा रोकथाम एवं बचाव इत्यादि कृत्यों तक विस्तारित है। यह संपूर्ण लोक प्रशासन की एक ऐसी विशेषीकृत शाखा है जो प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से उत्पन्न आपदाओं के नीति नियोजन, नियंत्रण, समन्वयन, राहत, बचाव एवं पुर्नवास इत्यादि का अध्ययन करती है। आपदा प्रबंधन एक जटिल तथा बहुआयामी प्रक्रिया है अर्थात् केंद्र, राज्य एवं स्थानीय शासन के साथ-साथ बहुत सारे विभाग, संस्थाएं एवं समुदाय इसमें अपना योगदान देते हैं। यह प्राथमिक रूप से सरकारी दायित्व को इंगित करता है किंतु सामुदायिक एवं निजी सहयोग के बिना यह कार्य अधूरा है।
आपदाएं सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक घटनाएं हैं इसलिए आपदा प्रबंधन का कार्य भी अंतरराष्ट्रीय समन्वय से जुड़ा हुआ है।
इसमें राहत-केन्द्रित दृष्टिकोण के स्थान पर समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है जिसमें आपदा प्रबंधन के समस्त पहलुओं को आच्छादित करते हुए रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारी, कार्रवाही राहत और पुनर्वास को सम्मिलित किया गया है।
संस्थात्मक रूपरेखा
भारत में स्वतंत्रता के समय से ही केंद्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष तथा राज्यों में मुख्यमंत्री राहत कोष बने हुए हैं जिनमें आपदा के दौरान सहायता राशि दी जाती रही है। आपदा प्रबंधन विषय के बारे में संविधान की 7वीं अनुसूची की तीन सूचियों में कोई विवरण नहीं है। प्राकृतिक आपदा के मामले में बचाव, राहत एवं पुनर्वास की मूल जिम्मेदारी सम्बद्ध राज्य सरकारों की है।
केंद्र सरकार की भूमिका भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों की कमी को पूरा करने तथा चेतावनी, परिवहन एवं अनाज की अंतरराष्ट्रीय आवाजाही आदि जैसे अनुपूरक उपाय करने वाले सहयोगी की होती है।तद्नुसार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संरचना (एनडीएमएफ) तैयार की गई है और इसे राज्य/संघ शासित क्षेत्र सरकारों के साथ बांटा गया है ताकि वे अपनी-अपनी योजनाओं को राष्ट्रीय योजना के व्यापक दिशा-निर्देशों के अनुसार संशोधित और अद्यतन कर सकें। राष्ट्रीय योजना में संस्थागत तंत्रें, न्यूनीकरण, रोकथाम उपायों, विधि एवं नीति संरचना, तैयारी और कार्रवाही पूर्व चेतावनी प्रणाली, मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण को शामिल किया गया है।