मनरेगा

2 फरवरी, 2006 से प्रारंभ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) 2008.09 से देश के सभी जिलों में लागू है। यह योजना विश्व की ऐसी पहली योजना है जिसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र के अकुशल श्रमिकों को रोजगार की गारंटी दी जाती है। मनरेगा के तहत गरीबी रेखा से नीचे परिवार के एक सदस्य को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। मनरेगा के निरीक्षण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रलय नोडल एजेंसी है। इसमें केन्द्र और राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 90:10 है। योजना में महिलाओं की श्रम भागीदारी 33 प्रतिशत (1/3) सुनिश्चित की गई है। योजना का प्राथमिक उद्देश्य वेतन रोजगार को बढ़ाना है। यह कार्य ऐसे कार्यों के माध्यम से किया जाना है, जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सूखा, वनों की कटाई और मृदाक्षरण आदि गरीबी के मूल कारणों को दूर करे और इस प्रकार सतत विकास को प्रोत्साहन दे। रोजगार गारंटी की यह व्यवस्था कई अन्य उद्देश्यों की भी पूर्ति करती है।

इस व्यवस्था से उत्पादक संपदाओं का निर्माण करने, पर्यावरण की रक्षा करने, ग्रामीण औरतों के सशक्तिकरण, गावों से शहरों की ओर होने वाले पलायन पर अंकुश लगाने और सामाजिक समानता सुनिश्चित करने में सहायता मिली है। मनरेगा के प्रत्यक्ष लाभ रोजगार सृजन, निर्धनता में कमी, आय और खरीद क्षमता में बढ़ोतरी के अतिरिक्त प्राकृतिक संसाधन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। आय और खरीद क्षमता में हुई इस बढ़ोतरी से ही भारत वित्तीय संकट का सामना करने में समर्थ रहा है। 2010.11 में मनरेगा के अन्तर्गत परिवारों को उपलब्ध कराए गए रोजगार का प्रतिशत उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक और हरियाणा में सबसे कम है।

पंचायती राज संस्थाओं के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर 2 अक्टूबर 2009 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का नाम बदलकर ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ करने की घोषणा की। उल्लेखनीय है कि मनरेगा से सर्वाधिक लाभ पाने वाली जनसंख्या तमिलनाडु में है। वर्तमान केंद्र सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्रें के लिए 150 दिन रोजगार उपलब्ध कराने की घोषणा की है।