ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में अंतरराष्ट्रीय संधि है जो ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए, चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है जिन्हें ओजोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। यह संधि 1 जनवरी, 1989 तक प्रभावी रहा। इस सम्मेलन की पहली बैठक मई 1989 में हेलसिंकी में हुई तब से इसमें सात संशोधन हुए। 1990 में लंदन, 1991 में नैरोबी, 1992 में कोपेनहेगन, 1993 में बैकांक, 1995 में वियना, 1997 में मांट्रियल और 1999 में बिजिंग में हुआ। ऐसा माना जाता है कि अगर अंतरराष्ट्रीय समझौता पूरी तरह से पालन किया जाए तो 2050 तक ओजोन परत ठीक हो जाएगा। इस उद्देश्य हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन (HCFCs) जैसे पदार्थों के अधिक उत्पादन में प्रतिबंध लगाना है।
जब से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल प्रभाव में आया है, सबसे महत्वपूर्ण क्लोरोफ्रलोरो कार्बन और संबंधित क्लोरीनेड हाइड्रोकार्बन की वायुमंडलीय सांद्रता का स्तर या तो बराबरी पर आ गया है या कम हो गया है। हैलोन सांद्रता का बढ़ना जारी है, क्योंकि वर्तमान में अग्निशमन यंत्रें में संग्रहित हैलोन छोड़ दी गई है, किन्तु उनके बढ़ने की दर कम हुई है। वर्ष 2020 तक इसकी मात्र में गिरावट की उम्मीद है।
इसके अलावा HCFCs की सान्द्रता आंशिक रूप से अत्यधिक तेजी के साथ बढ़ी है क्योंकि कई जगह CFCs के स्थान पर HCFCs का प्रयोग किया जाता है। जबकि कई व्यक्तियों द्वारा प्रतिबंध को नाकाम करने की कोशिश हुई है। उदाहरण के लिए अविकसित देशों से विकसित देशों को CFCs की तस्करी द्वारा, समग्र तौर पर अनुपालन का स्तर उच्च रहा है। परिणामस्वरूप मान्ट्रियल प्रोटोकॉल को अक्सर आज तक का सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय समझौता कहा जाता है।
वर्ष 2001 की रिपोर्ट के आधार पर NASA ने पाया कि पिछली तीन वर्षों में अंटार्कटिका पर ओजोन परत की मोटाई एक समान रही थी। लेकिन 2003 में ओजोन छेद अपने दूसरेसबसे बड़े आकार तक पहुंच गया। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रभावों के सबसे ताजा (2006) वैज्ञानिक मूल्यांकन के अनुसार मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल काम कर रहा है। ओजोन को क्षीण करने वाले पदार्थों के वायुमण्डलीय बोझ में कमी तथा ओजोन परत में सुधार के कुछ शुरुआती संकेत मिल रहे हैं।