संविधान के अनुच्छेद 14 और 22 (1) के तहत समानता के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों को सक्षम विधि सेवाएं प्रदान करने के लिए एक तंत्र की स्थापना करने के लिए वर्ष 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया।
संविधान में संशोधन कर, अनुच्छेद 39-(क) जोड़कर प्रावधान किया गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436(ए) उन विचाराधीन कैदियों को जमानत पर छोड़ने का प्रावधान करती है, जिन्होंने अपने अभियोग के लिए संभावित अधिकतम सजा का आधा समय जेल में गुजार लिया हो।
धारा 436 में यह प्रावधान किया गया है कि जमानतीय मामलों में बंद उन आरोपियों को एक सप्ताह के बाद उनके निजी मुचलके पर रिहा कर दिया जाए जिनके लिए कोई जमानत देने के लिए तैयार नहीं है।
इसके अलावा, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) और धारा 437(6) में भी तफतीश और न्यायिक कार्यवाही में होने वाली देरी की वजह से विचाराधीन कैदियों को जमानत पर छोड़ने के प्रावधान हैं।