केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावेडकर ने ओडिशा में घोषणा की कि 1817 का पाइका विद्रोह को इतिहास की पुस्तकों में ‘स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध’ के रूप में स्थान दिया जाएगा। इसे वर्ष 2018 के पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी पुस्तकों का हिस्सा बनाया जाएगा। उनके मुताबिक इसमें ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह की सूचनाएं हैं ताकि लोगों को विद्रोहों के बारे में तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त हो सके। ज्ञातव्य है कि अभी पाइका विद्रोह की 200वीं वर्षगांठ मनायी जा रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि अभी तक 1857 के सिपाही विद्रोह को ही प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है।
पाइका विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा दिये जाने का आधार
पाइका विद्रोह, ऐसा पहला विद्रोह नहीं है जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम घोषित करने की मांग हुयी है। इससे पहले दक्षिण भारतीय इतिहासकारों ने दीवान वेलु थाम्पी के नेतृत्व में हुये 1808 के त्रवणकोर विद्रोह को भी औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध प्रथम विद्रेाह का दर्जा देने की मांग की थी।
पाइका विद्रोह पाइका विद्रोह 1817 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध ओडिशा में पाइका जाति के लोगों द्वारा किया गया एक सशस्त्र, व्यापक आधार वाला और संगठित विद्रोह था। पाइका ओडिशा की एक पारंपरिक भूमिगत रक्षक सेना थी। वे योद्धाओं के रूप में वहाँ के लोगों की सेवा भी करते थे। पाइका विद्रोह के नेता बक्शी जगबंधु थे। पाइका जाति भगवान जगन्नाथ को उड़ीया एकता का प्रतीक मानती थी। कौन थे पाइका? ओडिशा के गजपति शासकों के अधीन लड़ाकू किसानों को पाइका कहा जाता था। युद्ध के समय ये राजा को अपनी सैन्य सेवा प्रदान करते थे। विद्रोह के कारण
क्यों महत्त्वपूर्ण है पाइका विद्रोह?
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