रसगुल्ले का जीआई टैग (Geographical Indication - GI) पश्चिम बंगाल को प्रदान किया गया। ओडिशा ने भी इस पर दावा किया था और पश्चिम बंगाल से इस मुद्दे पर उसका विवाद वर्ष 2015 से चला आ रहा है। जीआई टैग विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation - WTO) द्वारा प्रदान किया जाता है।
भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा इस वर्ष जिन वस्तुओं को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रदान किया गया है, वे हैं- बनावनपल्ली आम (आंध्र प्रदेश), तुलीचंची चावल (पश्चिम बंगाल), पोचमपल्ली इकाट (तेलंगाना), गोबिदोबध चावल (पश्चिम बंगाल), एटीकोपक्का खिलौना (आंध्र प्रदेश), चक्शेशंग शॉल (नागालैंड)। वर्ष 2016-17 में 33 मदों में जीआई टैग प्रदान किया गया है।
जी आई टैग क्या है और यह किस प्रकार प्रदान किया जाता है
भौगोलिक संकेतक मुख्य रूप से उस कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है, जो कि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न होता है।
यह संकेतक इन वास्तविक उत्पादों के उत्पादकों को उत्पाद हेतु संरक्षण प्रदान करता है, जो घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में प्रीमियम मूल्य निर्धारण का आश्वासन देते हैं। एक बार भौगोलिक संकेतक प्राप्त हो जाने के बाद कोई और निर्माता इसी प्रकार के उत्पादों का बाजार में इनके नाम के साथ दुरूपयोग नहीं कर सकता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में, भारत ने ‘भौगोलिक संकेतों के माल (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ को 15 सितंबर, 2003 में अधिनियमित किया। बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Right) के तहत जीआई टैग का अर्थ है कि केवल अधिकृत उपयोगकर्ता (या निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में) पंजीकृत उत्पाद नाम का उपयोग कर सकते हैं। वर्ष 2004-05 में, दार्जिलिंग चाय भारत में पहला जीआई टैग प्राप्त करने वाला उत्पाद बना। भारत के अन्य उत्पाद जिन्हें जीआई टैग प्रदान किया जा चुका है वे हैं, मैसूर रेशम, जयपुर ब्लू मिट्टी के बर्तन, कश्मीरी पाश्मिना, कन्नौज परफ्रयूम, गोवा फेनी और राजस्थान की थेवा पेंटिंग (Rajasthan's Thewa Painting) आदि। दो प्रकार के भौगोलिक संकेतक होते हैं- (i) पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे शैम्पेन, दार्जीलिंग आदि। (ii) दूसरे हैं गैर-भौगोलिक पारम्परिक नाम, जो यह बताते हैं कि एक उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है जैसे अल्फांसो, बासमती आदि।
भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग क्यों महत्वपूर्ण है? जीआई टैग स्थानीय उत्पादन का समर्थन करते हैं और ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक उपकरण हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights - IPR)व्यक्तिगत हितों की सुरक्षा की गारंटी देता है, जबकि जीआई टैग सामूहिक स्तर पर संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है। यदि किसी स्थान विशेष का कोई उत्पाद इस योग्य है कि उसे जीआई टैग प्रदान किया जा सके तो उत्पादक सामूहिक जीआई चिह्न का उपयोग कर सकते हैं, ताकि उनके उत्पादों का व्यावसायिक रूप से गलत इस्तेमाल न किया जा सके। |
भारतीय जीआई अधिनियम में कमियां
भारत ने वर्षों से स्वयं के घरेलू कानूनों में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन लाने या उसमें सुधार करने का कोई प्रयास नहीं किया है। भारत में कई उत्पाद ऐसे हैं जिनका कोई डॉक्यूमेंट्री साक्ष्य भले न हो, लेकिन पीढि़यों से स्थान विशेष पर उनका उत्पादन होता आया है। यदि कोई जीआई के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके लिये क्या दंडात्मक प्रक्रिया अपनाई जाए, इस संबंध में भी अधिनियम में कुछ नहीं कहा गया है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ट्रिप्स केवल न्यूनतम मानक सुरक्षा प्रदान करता है। जीआई के संरक्षण के लिए एक विशेष रूपरेखा पर कहीं भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
‘वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 को वर्ष 2003 में लागू किया गया था, लेकिन भारत अभी तक इसमें व्यापक खामियों को दूर नहीं कर पाया है। अधिनियम में प्रावधान है कि किसी भी उत्पाद को जीआई टैग तभी दिया जाएगा जब उस उत्पाद और क्षेत्र विशेष के अंतर्संबंध को प्रमाणित करने वाला कोई डॉक्यूमेंट पेश किया जाए। दरअसल, समस्या प्रमाणीकरण की नहीं बल्कि स्थगन और उत्पाद के अंतर्संबंध के साक्ष्ड्ढ के तौर पर डॉक्यूमेंट्री साक्ष्य जैसे-गजट जर्नल, समाचार लेख, विज्ञापन सामग्री आदि पेश करने की है। इसके उत्पत्ति के साक्ष्य के रूप में दस्तावेजी प्रमाण उत्पाद और क्षेत्र के बीच के संबंध को सुनिश्चित करने के लिए एक निर्णायक तंत्र साबित हो सकता है। लेकिन भारत जैसे देश में जहां पूर्वाेत्तर की तरह क्षेत्र हैं जहां लिखित इतिहास की तुलना में मौिखक इतिहास ज्यादा व्यापक है, यह प्रावधान एक दुर्दम्य बाधा साबित होता है।