कन्या भ्रूण हत्याः कन्या भ्रूण को नष्ट किया जाना, संपन्न और शिक्षित परिवारों में भी कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति पाई जाती है। सामान्य धारणा है कि लड़का दहेज के रूप में धन लाता है, जबकि कन्या को दहेज के रूप में धन खर्च करना पड़ता है। लड़कियों को पराया धन समझना, वृद्धावस्था में लड़कों द्वारा सहयोग की धारणा।
छोटे परिवार की अवधारणाः शहरी मध्यम वर्गीय लोगों द्वारा छोटे परिवार को महत्व देना ताकि खर्च कम हो। ऐसे परिवारों की सामान्य धारणा कन्या भ्रूण को समाप्त करना है।
बोस्टन यूनिवर्सिटी द्वारा 2014 में कराए गए शोध के अनुसार पंचायतों के चुनाव में दो बच्चों को अनिवार्य करने के निर्णय से 11 राज्यों में बाल लिंगानुपात में कमी पाई गई।
टेक्नोलॉजी मुद्दाः अल्ट्रा साउंड मशीनों की आसानी से उपलब्धता। तकनीकी प्रगति की वजह से जन्म-पूर्व (प्री-नेटल) लिंग निर्धारण संभव होना तथा कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़ना।
अभिनव चिकित्सा प्रौद्योगिकी और आधुनिक लिंग निर्धारण तकनीक (सेल फ्री फीटल डीएनए टेस्टिंग, अल्ट्रासाउंड स्कैन, एमिनोसेंटोसिस और कोरियोनिक विलस सैंपलिंग) का उपयोग या दुरुपयोग कन्याओं के जन्म से पूर्व ही उनसे छुटकारा पाने के लिए किया जाने लगा है।
सरकार की विफलताः इस विषय में जागरुकता का माहौल बनाने में विफलता। कानून का अप्रभावी क्रियान्वयन। सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए PC-PNDT अधिनियम 1994 लागू किया है तथा इसे कठोरता से लागू करने के लिए 2003 में संशोधन किया है। इस कानून के प्रति जागरुकता का अभाव के कारण लोग यह नहीं जानते कि भ्रूण हत्या अवैध है।