कश्मीर का मुद्दाः कश्मीर की भू-अवस्थिति का सामरिक महत्व दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होने के कारण से स्वतंत्रता के ठीक बाद से दोनों देशों में इसे लेकर विवाद होने लगे। 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान ने कबीलाइयों की सहायता से कश्मीर पर हमला कर दिया।
महाराजा हरिसिंह ने घबराकर 27 अक्टूबर, 1947 में भारत के साथ कश्मीर के विलय पर हस्ताक्षर कर दिए, जिससे भारत की सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे हटाना आरंभ कर दिया। भारतीय प्रधानमंत्री की शांतिपूर्ण हल खोजने की चेष्ठा में भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में चला गया, जिससे तत्कालीन स्थिति में युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध विराम तथा जनमत संग्रह करवाने को कहा, किंतु सहमति नहीं बनने से जनमत संग्रह टलता रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा गठित कमीशन की अनुशंसा पर जनवरी, 1948 में युद्ध विराम की स्थिति में मौजूद रेखा को लाइन आफ कंट्रोल (LOC) कहा गया। कश्मीर का 32,000 वर्ग किमी- क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर बन गया। अभी तक यह मामला सुलझ नहीं पाया है।
सियाचीन का मुद्दा
सियाचीन जम्मू-कश्मीर के उत्तर में स्थित निर्जन भू-भाग है। आरंभ में यह भारत-पाक के बीच विवाद का मुद्दा नहीं था। 1981 में अमेरिका की संस्था द्वारा पाकिस्तान के हिस्से में सियाचीन को दर्शाया गया जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी। अप्रैल, 1984 में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के माध्यम से पाक सेना को हटाकर भारत ने अपनी चौकियां स्थापित की।
चीन के सिक्यांग क्षेत्रः अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया के स्थानों की निगरानी रखने जाने के लिहाज से इस क्षेत्र का अत्यंत सामरिक महत्व है। वर्तमान में भारतीय फौजें 75.5 R.M. ग्लेशियर को कब्जे में कर अच्छी स्थिति में हैं। यह क्षेत्र PoK एवं पाकिस्तान द्वारा चीन को हस्तांतरित भूमि के बीच अवस्थित त्रिकोणीय क्षेत्र है। सियाचीन का गैर सैन्यीकरण (Demilitrisation of Siyachin) पाकिस्तान चाहता है कि भारत यहां से अपनी सेनाओं को बुला ले। भारत का पक्ष है कि पाकिस्तान NJ9842 की लंबवत रेखा (AGPL) को माने तभी वह अपनी सेनायें बुलाएगा। यह क्षेत्र अत्यंत ठंडी जलवायुवीय दशाओं में अवस्थित है, इस वजह से यहां पर बिना युद्ध किए ही सैनिकों की मृत्यु कभी बर्फीले तूफान में दबकर, कभी ठंडी से हो जाती है। इसी कारणवश इस क्षेत्र के गैर-सैन्यीकरण की बात को विभिन्न मंचों पर उठाया जा रहा है। हालांकि अभी तक इस पर सहमति नहीं बनी है।
सिंधु जल बंटवारा संबंधी मुद्दा
भारत-पाक दोनों देशों की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। ऐसे में दोनों देशों में हिमालय से निकलने वाली सदावाहिनी नदियों के बीच जल का न्यायपूर्ण वितरण नहीं हो पाया है। काफी महत्व है। भारत एक अपर राइपेरियन देश है, वहीं पाकिस्तान एक लोअर राइपेरियन देश। 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत-पाक के मध्य सिंधु जल विभाजन संधि हुई। इसका उद्देश्य सिंधु एवं उसकी सहायक नदियों के जल के बंटवारें का है। इस संधि के तहत पूरे नदी क्षेत्र को तीन नदियों में बांटा गया है_ जिसमें भारत पूर्वी तीन नदियों यथा-सतलज, व्यास एवं रावी का प्रयोग कर सकता है।
पाकिस्तान के द्वारा यह आरोप लगाया जाता रहा है कि भारत बांध का निर्माण कर उसकी जल आपूर्ति को सीमित कर देता है। साथ ही भारत कभी भी ज्यादा पानी छोड़कर पाकिस्तान में बाढ़ की समस्या उत्पन्न कर सकता है। किशनगंगा, तुलबुल, बगालिहार आदि कई नदी परियोजनाओं पर पाकिस्तान के द्वारा अवरोध लगाया गया तथा मामले को अंतर्राष्ट्रीय पंचाट तक लेकर जाया गया।
सरक्रीक का मुद्दा
सरक्रीक पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एवं गुजरात की सीमा पर अरब सागर में स्थित एक दलदली क्षेत्र है। यहां की सीमा का निर्धारण नहीं हो सका, यह क्षेत्र खनिज, तेल एवं गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा है, किंतु सीमा निर्धारण न हो पाने की वजह से दोनों देश इन संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाए हैं। पाकिस्तान का मत है कि भारत की सीमा सरक्रीक के पूर्वी तट पर ही समाप्त हो जाती है। उसके इस मत का आधार वर्ष 1914 में हुआ एक सर्वेक्षण था। समस्या का मूल कारण है, इस स्थान का दलदली होना। 1914 में जहां यह निर्धारित किया गया था, आज यह स्थान 250 Km2 क्षेत्र और बढ़ गया है। भारत का मत है कि 1925 में सिंध एवं कच्छ के शासकों ने बीच जलधारा में सीमा का निर्धारण किया था तथा भारत भी वही सीमा मानता है।