पशु पालन का महत्त्व

1. खाद्य पदार्थों में पशुओं का योगदान

दुग्ध उत्पादनः स्तनधारी पशुधन का प्रयोग दूध के रूप में होता है, जिसे आसानी से संसाधित करके अल्प दुग्ध उत्पादो में परिवर्तित किया जा सकता है, जैसे कि दही, पनीर, मक्खन, आईसक्रीम, लस्सी, खोया व मिठाईंयां। पशुधन का प्रयोग इस प्रकार से किये जाने से प्राप्त भोजन व उर्जा उन्हे मारकर खाने की बजाय कई गुणा अधिक होती है।

माँस और अण्डेः पशुधन को मारकर उनके माँस से प्रोटीन व उर्जा प्राप्त की जाती है। अण्डों से भी प्रोटीन व उर्जा प्राप्त की जाती है।

2. खेती-बाड़ी में पशुओं का योगदान

खादः गोबर की खाद का प्रयोग खेतों में डालकर फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता हैं। पशुओं के रक्त व हड्डियों का प्रयोग भी खाद के रूप में किया जाता है। एक बैल से हर रोज लगभग 20 किलो गोबर मिलता है। इस गोबर में 35 गुणा पत्तियां, कूड़ा-करकट, फसल अवशेष आदि तथा 20 गुणा मिट्टी डालकर कम्पोस्ट खाद तैयार की जाए तो एक बैल से 300 टन खाद प्राप्त होती है, जिसे 10 टन एन- पी- होता है जो नमी वाली 145 एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाने की क्षमता रखता है तथा जिससे 40 प्रतिशत कृषि उत्पाद बढ़ता है व गृह एवं ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा मिलता है।

खेत जोतने में: पशु खेतों में कई प्रकार के कार्य जैसे खेती में उपयुक्त उपकरणों को खींचना, कुंए से खेतों के लिए पानी निकालना, जंगलों से लकड़ी उठाना आदि कार्य करते हैं। आज के मशीनीयुग में पशु शक्ति कई विकाशील देशों में अक्षय ऊर्जा का स्त्रेत है।

3. भौतिक सुख में योगदान

पशुधन हमें हमारे सुख के लिए यातायात व ऊर्जा के साधन हमें देते हैं। गधे, घोड़े, बैल, ऊँट तथा याक जैसे पशुओं का प्रयोग यांत्रिक उर्जा के लिए किया जाता है। भाप की शक्ति पहले, पशुधन गैर-मानव श्रम का एकमात्र उपलब्ध साधन था। इस उद्येश्य के लिए के लिए पशुओं का उपयोग आज भी किया जाता है। पशुओं का उपयोग आज भी किया जाता है। पशुओं का उपयोग खेत जोतने के लिए, सामान ढुलाई के लिए तथा सेना में किया जाता है।

4. सामाजिक रूतबा

अच्छे पशुओं का स्वामी बनकर हम समाज में एक अच्छा रूतबा हासिल कर सकते हैं। इसके विपरीत यदि हम अपने पशुओं की देखभाल सही नहीं करते हैं तो हम समाज में अपनी प्रतिष्ठा भी कम करते हैं।

5. भूमि प्रबन्धन

पशुओं की चराई को कभी-कभी खरपतवार तथा झाड़ीयों के नियन्त्रण के रूप में प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उन क्षेत्रें में जहाँ जंगल में आग लगती है, बकरीयों तथा भेड़ों का प्रयोग सूखी पत्तियों का खाने के लिए किया जाता है जिससे जलने योग्य सामग्री कम हो जाती है तथा आग का खतरा भी कम हो

6. दवाईयां बनाने में

वैज्ञानिकों ने अनुंसधान के बाद बकरीयों, भेड़ों और गायों की ऐसी नई नस्लें तैयार की है जो अपने दूध के साथ मानवोपयोगी तत्व भी दूध में प्रदान करती हैं, जिससे दवा निर्माण क्षेत्र में इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है, क्योकि इससे कुछ दुलर्भ दवाओं के उत्पादन मूल्यों में काफी कमी आएगी।

7. वस्त्र उद्योग

पशुधन भेड़-बकरी से ऊन व मौहेर प्राप्त होती है, जिनसे वस्त्र बनाए जाते हैं। पशुओं के चमड़े से जूते, पर्स, जैकेट इत्यादि बनाए जाते है।

8. रोजगार में योगदान

खेती के साथ-साथ पशु पालन लगभग 70 प्रतिशत लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है।

9. अन्य उत्पाद बनाने में

पशुओं के सींग तथा हड्डियों कारखानों में अस्थिचूर्ण तथा अन्य उत्पाद बनाने में प्रयुक्त होते हैं। अस्थिचूर्ण को खनिज पूरक के रूप में पशु आहार में मिलाया जाता है और खाद के रूप में भी प्रयोग होता है।

पशुधन

पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन कई सभ्यताओं में किया जाता रहा है, यह शिकारी-संग्राहक से कृषि की ओर जीवनशैली के अवस्थांतर को दर्शाता है।

पशुधन आर्थिक विकास में अनेक तरह से अपनी भूमिका निभाता है। देश के लगभग 70 करोड़ व्यक्ति कृषि पर निर्भर हैं । इनमें से लगभग 7 करोड़ कृषकों द्वारा पशुपालन किया जाता है। देश में कृषि उत्पादन में पशुपालन का योगदान 30 प्रतिशत है । ग्रामीणों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में पशुपालन काफी सहायक है। एक अनुमान के अनुसार कृषि में पशुश्रम का कुल मूल्य 300 से 500 करोड़ रुपये है। पशुओं के गोबर से खाद प्राप्त होती है। उनके सींग, खुर एवं हड्डियों का चूर्ण बनाकर कई तरह से उपयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रें में यातायात के लिए पशुओं का विशेष उपयोग किया जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग 1.5 करोड़ बैलगाडि़यां हैं। अनेक उद्योगों की आधारशिला भी पशुओं पर निर्भर करती हैं, जैसे - चमड़ा उद्योग, ऊनी उद्योग, वस्त्र उद्योग, मांस उद्योग, डेरी उद्योग आदि मुख्य हैं। भारत में विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रें में यातायात के लिए पशुओं का विशेष उपयोग होता है।

समस्याएं एवं सुझाव

हालांकि पशुधन के मामले में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है परन्तु फिर भी पशुपालन व्यवसाय पिछड़ा हुआ है। भारत में दुधारू पशुओं में दुग्ध की मात्र अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। भारत में पशुपालन व्यवसाय के पिछड़ा होने एवं उनके स्तर में गिरावट के मुख्य कारणों में शामिल हैं - अनुपयोगी पशुओं की अधिक संख्या, निर्धन किसान, अच्छी नस्ल के पशुओं की कमी, पौष्टिक चारे का अभाव, दोषपूर्ण प्रजनन क्रिया, पशुओं के रोग एवं बीमारियों का उचित इलाज का अभाव, पशुओं के क्रय-विक्रय की उचित व्यवस्था न होना और पशुपालन व्यवसाय के प्रति सरकार की उदासीनता का रुख आदि।

पशुधन की उन्नति के लिए सर्वप्रथम सुझाव है कि इसे उद्योग का दर्जा प्रदान किया जाए। जिस प्रकार अन्य उद्योग अनेक प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करते हैं उसी प्रकार यदि पशुपालन व्यवसाय को सुविधाएं प्राप्त होने लगे तो दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर सकेंगे। समय-समय पर पशु-प्रदर्शनियों एवं मेलों का आयोजन और पशुपालन व्यवसाय में लगे दक्ष लोगों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, दूरदर्शन आदि प्रचार माध्यमों से पशुपालन व्यवसाय से होने वाले लाभों से आम जनता को परिचित कराना चाहिए ताकि अन्य व्यक्ति पुशपालन व्यवसाय के प्रति आकर्षित हो सकें। पशु शक्ति बहुमुखी शक्ति है, भारतवासी इससे भली प्रकार से परिचित भी हैं, आवश्यकता है केवल इस ओर ध्यान देने की।