वर्तमान लोकतंत्रत्मक राज्य व्यवस्था में सिविल सेवाएं सरकारी तंत्र के अनिवार्य अंग हैं। संसदीय शासन व्यवस्था में प्रशासनिक नीतियों का निर्धारण मंत्री द्वारा किया जाता है, परंतु देश का प्रशासन लोक सेवा अधिकारियों के एक विशाल समूह द्वारा चलाया जाता है। इन अधिकारियों को ‘स्थायी कार्यपालिका का निर्माता’ तथा लोक सेवा आयोगों को ‘लोकतंत्र का संरक्षक’ भी कहा जाता है।
सेवाओं का स्वरूपः स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान के अन्तर्गत लोक सेवाओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जो निम्न प्रकार हैं- 1. अखिल भारतीय सेवाएं, 2. केन्द्रीय सेवाएं, 3. राज्य सेवाएं।