भारत में जैविक कृषि के तीन आयाम हैं जिसे किसानों द्वारा अपनाया जा रहा है।
जैविक कृषि के सिद्धांत (The principles of Oragnic Farning): इंटरनेशनल फेडरेशन फार आर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट (IFOAM) के अनुसार जैविक कृषि की परिभाषा निम्नलिखित सिद्धांत पर आधारित है-
स्वास्थ्य के सिद्धांत (Princeples of Health): जैविक कृषि से मृदा के स्वास्थ्य, पादप, जानवर, मनुष्य तथा गृह आदि की सतत्ता में वृद्धि होनी चाहिए।
पारिस्थितिकी सिद्धांत (Principle of Ecology): जैविक कृषि जीवित पारिस्थितिकी तंत्र व चक्र पर आधारित होने चाहिए।
निष्पक्षता का सिद्धांत (Principle of Fairness): जैविक कृषि के लिए सामान्य वातावरण तथा जीवन की परिस्थितियों के संदर्भ में सुनिश्चितता होनी चाहिए।
देखभाल के सिद्धांत (Principle of Care): जैविक कृषि सावधानीपूर्वक जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से होनी चाहिए ताकि वर्तमान तथा भविष्य की पीढ़ी तथा पर्यावरण की भलाई हो सके।
जैविक कृषि के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
जैविक कृषि गरीबी उन्मूलन तथा खाद्य सुरक्षा में निम्नलिखित विशेषताओं के शामिल होने में योगदान देती हैः
फसल उत्पादन को निरन्तर कायम रखने के लिए जैविक कृषि एक अच्छी पहल है किन्तु, भारत में कम्पोस्ट की कमी, प्रमाणित प्रौद्योगिकियों के प्रचार के लिए संगठित प्रणाली की कमी है।
जैविक सामग्री में पोषक तत्वों का अन्तर है जिससे किसान इसे अपनाने के लिए उत्साहित नहीं होते। कचरे से संग्रह करने और जैविक खाद्य प्रसंस्करण करने में जटिलता है। विभिन्न फसलों के लागत लाभदायकता अनुपात के साथ जैविक कृषि के व्यवहारों को शामिल करने में पैकेज का अभाव है और वित्तीय सहायता के बिना किसानों द्वारा जैविक कृषि को अपनाने में कठिनाइयाँ हैं।
जैविक खेती की प्रगति में कई बाधाएँ हैं। जागरुकता की कमी, विपणन से जुड़ी समस्याएँ, सहायता के लिए अपर्याप्त सुविधाएँ, अधिक लागत होना, जैविक कच्चे माल के विपणन की समस्याएँ, वित्तीय समर्थन का अभाव, निर्यात की माँग को पूरा करने में अक्षमता आदि उन बाधाओं में शामिल हैं।