कई बार ऐसा भी होता है जब जंगली जानवर मानव आवास अर्थात गांवों, कस्बों अथवा शहरों में भटक कर चले आते हैं। इन भटके जानवरों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए, यह एक अहम मुद्दा है जिसके दो पक्ष हो सकते हैं- एक कानूनी और दूसरा नैतिक। वर्ष 2014 के एक महत्वपूर्ण निर्णय में उच्चतम न्यायालय द्वारा साडो की लड़ाई वाले खेल जल्लीकट्टु पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगायाथा कि जानवरों की भी अपनी निजता व गरिमा होती है जिनका सम्मान किया जाना चाहिए। इन्हें अवैध आक्रमण अथवा शिकार से बचाना होगा। दुर्भाग्यवश नवंबर 2016 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की अनदेखी करते हुए गुरुग्राम के निकट के गांव मंदवार में एक चीते को मार दिया गया। दिल्ली वन विभाग ने यमुना जैव विविधता पार्क के निकट एक छोटे चीते को पकड़ लिया जिसे सम्भवतः सहारनपुर भेजा जाना था। इस तरह मानव आवासों में चीते के पाए जाने को सकारात्मक तरीके से देखे जाने की जरूरत है। आखिर इस करिश्माई जानवर, जो विलुप्त हो जाने के कगार पर है, का विश्व के सबसे प्रदूषित शहर में आश्रय बनाने की कोई वजह तो होगी। चीते को अपने प्राकृतिक आश्रय से भटका हुआ माना लिया गया था। एक अन्य मामले में गांव वालों ने चीते को मार दिया। ये घटनाएं दो मुद्दों को जन्म देती हैं_ पहला तो यह कि वैसे जानवरों को जो मानवों के इलाके में पाए जाते हैं क्या उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हाल में किया गया और अगर हो तो दूसरा मुद्दा यह है कि क्या यह नैतिक कानूनी रूप से उचित है?
संवैधानिक प्रावधान
जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है- किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता और जीने के अधिकार को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा और किसी तरह से नहीं छीना जा सकता। ठीक इसी तरह किसी जानवर को भी कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी और तरीके से उसकी स्वतंत्रता और जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में यह प्रावधान दिया भी गया है। दुर्भाग्यवश भारत जैसे देश में जब एक मानव से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए उसकी स्वतंत्रता व जीवन जीने के अधिकार से वंचित किया जाता है तो फिर जानवरों के जीने के अधिकार और उसकी स्वतंत्रता को कैसे अक्षुण्ण रखा जा सकता है।
जिस प्रकार संदिग्ध आतंकवादियों और अपराधियों को इंकाउंटर के द्वारा मार दिया जाता है, वैसे ही जंगली जानवर खासकर चीतों को राज्य की तरफ से समर्थित अधिकारियों, कर्मचारियों द्वारा मारा जा रहा है और आम जनता भी इसमें शामिल हो जाते हैं। ऐसी घटनाएं अक्सर भारत में देखी जा रही हैं। चीतों को इस प्रकार मार देने के काफी गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं क्योंकि यह जानवर पहले से ही विलुप्त होने के कगार पर हैं और इनको मार देने से भविष्य में इनके बचे रहने की संभावना भी खत्म हो जाएगी क्योंकि अवैध शिकार और जंगलों के नष्ट होने से इन जानवरों के समक्ष पहले से कठिनाई हो रही है स्वयं को सुरक्षित रखने में। अतः हम न सिर्फ एक जानवर विशेष की हत्या कर रहे हैं बल्कि हम इसकी समस्त प्रजाति को विलुप्त होने के कगार पर भेज रहे हैं।
जब हम जंगली जानवरों/प्रजातियों की चर्चा करते हैं तो प्रायः हम यह समझ लेते हैं कि अगर वह मानव इलाके में है तो उसका मतलब है कि वह अपने प्राकृतिक आश्रय से भटक गए हैं। यमुना के पास नए-नए चीते को लेकर दिल्ली के वन विभाग ने तुरंत यह निर्णय ले लिया कि चीता कहां से भटक कर यमुना नदी के किनारे आ गया होगा जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। बिना किसी मजबूत तर्क के यह मान लिया गया कि यह चीता या तो कलेसर नेशनल पार्क, हरियाणा से भटक कर आया होगा या फिर हस्तिनापुर सेंचुरी से भटक कर आ गया होगा जो कि उत्तर प्रदेश में पड़ता है।