कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) द्वारा दिया गया अंतरिम फैसला निःसंदेह भारत की कूटनीतिक जीत है, और पाकिस्तान के लिए हार। परन्तु इसे यहीं तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए। इस फैसले से विएना समझौते की अहमियत और अंतरराष्ट्रीय अदालत की प्रासंगिकता भी एक बार फिर रेखांकित हुई है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतिम फैसला होने तक रोक लगा दी है। सुनवाई कर रहे पीठ के ग्यारह न्यायाधीशों ने यह आदेश सर्वसम्मति से सुनाया।
उल्लेखनीय है कि कुलभूषण जाधव को अप्रैल 2017 में पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में फांसी की सुजा सुनाई थी। इस पर रोक लगाने की भारत की अपील को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने त्वरित सुनवाई के योग्य पाया। सुनवाई के क्रम में भारत का पक्ष मजबूत रहा। वहीं सुनवाई के दौरान पाकिस्तान की मुख्य दलील यह थी कि जाधव का मामला जासूसी से संबंधित होने और इस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा का होने के कारण विएना समझौते के दायरे में नहीं आता। परन्तु न्यायालय ने पाकिस्तान के इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया।
विएना समझौता
विएना समझौता गिरफ्रतार किए गए दूसरे देश के नागरिकों को, चाहे वे अपराध के शिकार हों या आरोपी हों, राजनयिक संपर्क तथा कानूनी मदद हासिल करने का भरोसा दिलाता है। वैसे यह समझौता कोई कानूनी बंधन नहीं है, पर इसे वैश्विक आम सहमति प्राप्त है। यदि कोई देश दूसरे देश के नागरिकों के मानवाधिकारों का ध्यान नहीं रखेगा, तो वह दूसरे देशों से अपने लिए वैसे ही व्यवहार की उम्मीद किस आधार पर करेगा? अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने के लिए पाकिस्तान कानूनन बाध्य नहीं है। लेकिन न मानने से संयुक्त राष्ट्र के न्यायिक निकाय की अवमानना का आरोप पाकिस्तान पर लगेगा। फिर, पाकिस्तान बाकी दुनिया में अपने नागरिकों के मानवाधिकारों का ख्याल रखे जाने की अपेक्षा किस आधार पर करेगा?
1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’ का प्रावधान किया था। भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाधव का मामला इसी संधि के तहत उठाया है। इस संधि पर अभी तक 179 देश सहमत हो चुके हैं।इस संधि के तहत कुल 79 अनुच्छेदहैं। इस संधि के अनुच्छेद 31 के तहत मेजबान देश दूतावास में नहीं घुस सकता है और उसे दूतावास के सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठानी है। इसके अनुच्छेद 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्रतार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी पड़ेगी।
गिरफ्तार किए गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना भी देनी पड़ेगी। इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्रतार व्यक्ति का नाम, गिरफ्रतारी की जगह और गिरफ्रतारी की वजह भी बतानी होगी। यानी गिरफ्रतार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुंच देनी होगी। भारत ने इसी अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए जाधव का मामला उठाया है।